"जर्द पत्ते दहशतजदा हैं कि पेड़ से गिर कर कहाँ जाएँगे खुश्क आँखों की बेबसी देखो आँख रोती है मगर उसके आँसू नज़र आते नहीं दिल टूट कर टुकड़े-टुकड़े है और पैरहन लहू में नहाया हुआ बोसीदा जिंदगियों के चेहरों में उदासी का डेरा ठहरा सा है उनके होंठों से हँसी गायब है।"
कोशिश बस इतनी सी है कि जिक्र इनका करें तो कैसे करें? बात जब निकली है तो बात इनकी भी होनी चाहिए। मेरा लघु कथा-संग्रह 'चीख' को रचने का उद्देश्य उक्त प्रश्नों से संबंद्ध है। मेरा प्रयास यकीनन यही है कि मैंने अपने इस लघु कथा-संग्रह 'चीख़' में जर्द पीले पत्तों के गिरने के दर्द को बाँटने की कोशिश की है। जिन आँखों का पानी सूख गया है वह इतनी खुश्क हो गई हैं कि रोना चाहें भी तो रो नहीं सकतीं। मैंने इन खुश्क आँखों को पुरनम करने हेतु उसकी बेबसी के बिंदुओं को खोज उन्हें इस संग्रह में दर्ज किया है। लोग कहते हैं टूटा हुआ दिल भी कभी जुड़ा है भला? जी हाँ अगर सकारात्मक सहयोग, साझा साथ हो तो टूटे को भी जोड़ा जा सकता है। इस लघु कथा-संग्रह में मैंने टूटे हुए दिल के टुकड़ों को सहेजने की भरसक कोशिश की है। रीत चुका जिनका समय, बोसीदा किताब की तरह खस्ताहाल है जिनकी जिंदगी, जिन्हें चाहकर भी हँसाना मुश्किल हो। उदासी जिनका ओढ़ना-बिछौना हो। थोड़ी-सी कोशिश है इस लघु कथा-संग्रह के माध्यम से ऐसे उदास चेहरों पर मुस्कान लाने की।
लघु कथा-लेखन के लिए चरित्र और कथानक मुझे अपने आसपास बिखेरे पड़े मिले, मैंने उन्हें एक-एक करके फूल और कलियों की तरह चुन लिया। लघु कथा के परिक्षेत्र में मेरी लघु कथाएँ कहाँ तक समायोजित होतीं हैं यह मेरे पाठक तय करेंगे। लेकिन लघु कथा-लेखन की शुरुआत मैंने प्रतिलिपि ऑनलाइन पत्रिका के माध्यम से की और उसमें जुटे मेरे प्रबुद्ध पाठकों ने अपनी समीक्षा से मेरे हौसले को परवान चढ़ाया। यह मेरा सौभाग्य रहा कि प्रतिलिपि पत्रिका पर मुझे घनिष्ठ मित्र आदरणीय भारती बब्बर जी और आदरणीय शकुंतला गौतम जी, भाई डॉक्टर फैसल रहमान जी मिले। उनका सुविज्ञ पाठक के रूप में मिलना और उन सबकी शानदार समीक्षा प्राप्त होना मेरे लेखन की हौसला अफजाई का आधार थी। लघु कथा-लेखन का जबरदस्त बल मुझे मध्य प्रदेश विश्व मैत्रीय मंच के माध्यम से प्राप्त हुआ। आदरणीय संतोष श्रीवास्तव जी, भाई मुजफ्फर सिद्दीकी जी, श्रद्धेय पितातुल्य गुरु चरणजीत कुकरेजा जी, प्रिय ऑनलाइन सखी महिमा श्रीवास्तव वर्मा जी, दुर्गा सिन्हा जी ने मुझे लघु कथा-लेखन हेतु प्रेरित किया, उनके प्रति आभार व्यक्त करना मेरा नैतिक दायित्व है। इस कड़ी में ज़बरदस्त उड़ान के लिए 'समकालीन व्यंग्य' के माध्यम से मुझे श्रद्धेय रामस्वरूप दीक्षित जी से अपार स्नेह और बेबाक लेखन की प्रेरणा मिली, मैं आजीवन उनकी आभारी रहूँगी।
मेरे अंतस में छुपे बैठे लेखक को उभारने का श्रेय हम सबके श्रद्धेय गुरु विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, जनपद बाँदा के गौरव चंद्रिका प्रसाद दीक्षित 'ललित' जी, आदरणीय नरेंद्र पुंडरीक जी का रहा। आदरणीय रामलखन कुशवाहा जी ने मेरे लेखन को पढ़कर अत्यंत सकारात्मक संबल देकर मेरा उत्साहवर्द्धन किया, मैं सदैव उनकी आभारी रहूँगी। मेरे लेखन पर अपनी तार्किक दृष्टि रखकर मुझे अजीम कवि सुल्तान अहमद के कविता-संग्रह की समीक्षा लिखने के लिए प्रेरित करने वाले महान साहित्यकार और अजीम शख्सियत श्री हरियश राय जी और 'आर्यकल्प' पत्रिका के संपादक आदरणीय लोलार्क द्विवेदी जी जिन्होंने अपनी पत्रिका में मेरी लिखी समीक्षा, कविता और कहानियों को जगह दी, मैं उनकी सदैव आभारी रहूँगी और उनके प्रति हार्दिक आभार ज्ञापित करती हूँ। पश्चिम बंगाल से प्रकाशित 'शब्दाक्षर' पत्रिका में मेरी कहानियों को जगह देने वाली अनामिका सिंह को भी तहेदिल से शुक्रिया।
आदरणीय आनंद किशोर जी, अग्रज जवाहरलाल जलज जी, मेरे बड़े भाई गोपाल गोयल जी, 'माटी' पत्रिका के प्रधान संपादक आदरणीय सरस जी, 'माटी' पत्रिका की सुविज्ञ संपादक डॉक्टर सुधा त्रिपाठी जी ने सदैव अपना अमूल्य समय निकाल कर मेरी रचनाओं को पढ़ा और पूर्ण पारदर्शिता के साथ आंकलन करते हुए मेरा मार्गदर्शन भी किया। मैं अपनी अनुजा की सदैव आभारी रहूँगी। इसी क्रम में मेरे भाई सुधीर सिंह जी मेरे लेखन को दिशा देने का मूलाधार रहे क्योंकि शायद वह एक अजीम शख्सियत और लाजवाब पाठक हैं और साहित्य में उनकी पैनी दृष्टि मुझे मेरे लेखन में सुधार के लिए इंगित करती रही, मैं उनकी सदा आभारी रहूँगी। इसी क्रम में सोशल मीडिया में पोस्ट की गई मेरी लघुकथाओं को पढ़कर मेरे अग्रज जनपद बाँदा की शान योगगुरु प्रकाश साहू जी, पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष राजकुमार राज जी, जनाब सैय्यद अहमद मगरबी जी, अनुज महान समाजसेवी अमित सेठ भोलू जी, श्रीमती आरती खरे, आरती माथुर, नाजिश नबी, ज्योत्स्ना पुरवार दी, नसीमा सिद्दीकी, डॉक्टर मनोरमा यादव, डॉक्टर अंजना जादौन, डॉक्टर पंकज सिंह मेरी कविताओं और लघुकथा को सराहना कर मेरी हौसला अफजाई करती रहीं, मैं उनके प्रति भी आभार ज्ञापित करती हूँ। मैं अपने अभिन्न आत्मीय मित्र जो मेरे लेखन को पढ़ने का समय जुटाते हैं, मेरी कहानियों, कविताओं, लघुकथाओं की तार्किक समीक्षा करते हैं और लेखन का संबल भी प्रदान करते हैं, मैं उनको भला कैसे बिसरा सकती हूँ इसलिए मेरी अग्रजा डॉक्टर, कवि, समाजसेवी शबाना रफीक, प्रोफेसर दीपाली गुप्ता, डॉक्टर जयंती सिंह, डॉक्टर सपना सिंह, श्रीमती श्रद्धा निगम, श्रीमती उमा पटेल, श्रीमती छाया सिंह, श्रीमती आशा सिंह, मेरी बालसखा अणिमा खरे, गारिमा खरे की सदैव आभारी रहूँगी। राष्ट्रीय खो-खो एसोसिएशन के नामित सदस्य भागवत प्रसाद मेमोरियल इंटर कालेज के प्रबंधक श्री अंकित कुशवाहा जी भी अक्सर मेरी कविता और लघुकथा को पढ़कर उसकी सराहना करते मैं उनके प्रति भी हार्दिक आभार ज्ञापित करती हूँ।
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