छंद का इतिहास भारतीय साहित्य और कविता के विकास का एक महत्वपूर्ण अंग है। छंद वह संरचना या मापदंड है जिसके अनुसार कविता या पद्य की रचना की जाती है। यह प्राचीन समय से भारतीय साहित्य में मौजूद है और इसकी विभिन्न शैलियाँ और प्रकार समय के साथ विकसित हुए हैं।
वर्तमान परिवेश में नए रचनाकारों के लिए छंद का महत्व साहित्य और कविता की गहरी समझ विकसित करने, भावनाओं की सटीक अभिव्यक्ति, और परंपरा से जुड़े रहने के संदर्भ में बहुत अधिक है। हालाँकि आज की कविता में छंदमुक्त रचनाएँ भी प्रचलित हैं, लेकिन छंदबद्ध कविता का महत्व अब भी बरकरार है।
छंदबद्ध कविता रचनाकार को एक निश्चित अनुशासन में काम करने की प्रेरणा देती है। यह मापदंडों और नियमों के भीतर रहते हुए भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाए रखने में सहायक होता है। नए रचनाकारों के लिए यह अनुशासन उनके काव्य कौशल को निखारने में मदद करता है। छंदबद्ध रचना करते समय, शब्दों का चयन बहुत सोच-समझकर करना पड़ता है ताकि वे छंद के मापदंडों में व्यवस्थित हो सकें। यह शब्दावली के प्रति संवेदनशीलता और भाषा की गहरी समझ को विकसित करता है, जो किसी भी साहित्यकार के लिए मूल्यवान गुण होते हैं।
छंद का अध्ययन और प्रयोग नए रचनाकारों को भारतीय साहित्यिक परंपरा से जोड़ता है। यह उन्हें उस धरोहर का हिस्सा बनाता है, जिसे कालिदास, तुलसीदास, सूरदास जैसे महान कवियों ने समृद्ध किया है। यह साहित्यिक इतिहास और संस्कृति को समझने और उसका सम्मान करने की भावना को बढ़ावा देता है।
छंदबद्ध कविता अपने लयबद्ध स्वरूप के कारण एक विशिष्ट संगीतात्मकता और सौंदर्य प्रदान करती है। यह पाठक और श्रोता दोनों के लिए एक सुखद अनुभव बनाती है। यह विशेष गुण किसी भी कविता को अधिक प्रभावी और यादगार बनाता है।
छंदबद्ध काव्य में सीमित शब्दों में गहरी भावनाओं को व्यक्त करना होता है, जिससे रचनाकार को अपनी भावनाओं को संक्षेप में और सटीक रूप से व्यक्त करने की कला आती है। यह नए रचनाकारों के लिए अपनी लेखनी को धारदार बनाने का एक सशक्त माध्यम है।
आधुनिक दौर में, जहाँ छंदमुक्त कविता प्रचलित है, छंदबद्ध रचनाएँ लिखना नए रचनाकारों को एक विशिष्ट पहचान और प्रतिस्पर्धात्मक लाभप्रदान कर सकता है। यह उन्हें एक अलग पहचान दिलाने में मदद कर सकता है।
उपर्युक्त कथन का सार यह है कि वर्तमान समय में, जब साहित्य के नए रूपों का विकास हो रहा है, छंदबद्ध कविता की महत्ता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। नए रचनाकारों के लिए छंद न केवल एक तकनीकी कौशल है बल्कि यह एक सांस्कृतिक और साहित्यिक धरोहर से जुड़े रहने का माध्यम भी है। छंद का ज्ञान और प्रयोग उन्हें अधिक समृद्ध, सृजनशील और विविधतापूर्ण साहित्यिक अनुभव प्रदान कर सकता है।
विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत विगत छह वर्षों से विविध साहित्यिक गतिविधियों के माध्यम से नए रचनाकारों के लिये सदैव मार्गप्रशस्त करने का कार्य कर रही है। उसी कड़ी में संस्था के ओजस्वी संस्थापक व छंद विधा की गहरी समझ रखने वाले आ० दिलीप कुमार पाठक 'सरस' जी के अथक परिश्रम व समर्पण के परिणाम स्वरूप यह पुस्तक 'छंदज्ञान भाग 1' का प्रथम संस्करण प्रकाशित हो रहा है। यह उनका एक महत्वपूर्ण प्रयास है, जो नए रचनाकारों को छंद लेखन की कला में सक्षम बनाने के लिए समर्पित है। इस पुस्तक में छंद के विधान की सरलता पूर्वक व गहराई से विवेचना की गई है, साथ ही विभिन्न छंदों के उदाहरण प्रस्तुत किए गए हैं, ताकि पाठक व्यावहारिक समझ प्राप्त कर सकें। छंद व मात्राभार के संक्षिप्त परिचय के साथ कुल 21 छंदों के माध्यम से, यह पुस्तक छंद लेखन के प्रारंभिक चरण में बहुत ही सहायक सिद्ध होगी, और भविष्य में भाग 2, भाग 3 आदि में इस ज्ञान का और विस्तार किया जाएगा। इस पुस्तक का उद्देश्य छंद लेखन की कला में गहराई से प्रवेश करने और इसे सुलभ बनाने का है।
इस पुस्तक के प्रकाशन में प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से सहयोगी सभी साथियों का हम हृदय से आभार प्रकट करते हैं। हमें पूरा विश्वास है कि निश्चित रूप से छंद विधा में रुचि रखने वाले रचनाकारों के लिये यह पुस्तक एक वरदान एवं साहित्य के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित होगी।
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