जो व्यक्ति इस दुनिया में कुछ महान कार्य करते हैं, उनका बचपन भी निराला ही होता है। कहते हैं कि पूत के पाँव पालने में ही पहचान लिए जाते हैं, इसलिए इस पुस्तक में ऐसे ही महान लोगों के बचपन की झलक मिलती है, जिन्हें पढ़कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे वास्तव में दिव्य आत्माएँ थीं और इस धरती पर कुछ कर गुजरने और लोगों को मार्गदर्शित करने के लिए ही आई थीं। लेकिन इतना ज़रूर है कि जीवन में महान लोगों ने जो कुछ भी किया, उस सबके लिए उन्हें कठिन संघर्ष भी करना पड़ा।
इस पुस्तक में देश के अनेक महान लोगों के बचपन की निराली घटनाओं को सचित्र दर्शाया गया है, ताकि इसे पढ़कर महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा ली जा सके ।
तेजपाल सिंह धामा हिन्दी साहित्यकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं। हमारी विरासत (शोध-ग्रंथ) इनकी प्रसिद्ध रचना है। इन्होंने हैदराबाद से प्रकाशित दैनिक स्वतंत्र वार्ता एवं दिल्ली से प्रकाशित दैनिक विराट वैभव एवं दैनिक वीर अर्जुन के संपादक विभागों में दशकों तक कार्य किया। उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के खेकड़ा शहर में जन्मे तेजपाल सिंह धामा मुख्यतः इतिहास पर लिखने वाले साहित्यकार हैं, जिनकी इतिहास से सम्बन्धित अनेक पुस्तकें छप चुकी हैं। इन्हें अनेक साहित्यिक एवं सामाजिक पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। शहीदों पर लिखने के कारण इन्हें 2017 में संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार ने 'संस्कृति मनीषी' पुरस्कार से सम्मानित किया है। इनके बहुचर्चित उपन्यास अग्नि की लपटें पर ही भंसाली प्रोडक्शन की विवादास्पद फिल्म पद्मावत का निर्माण हुआ है। इन्होंने कई फिल्मों की पटकथाएँ भी लिखी हैं।
हमारा भारत ऋषि-मुनियों का देश है, इसलिए इसकी संतानों में ऋषि-मुनियों का रक्त ही दौड़ रहा है, यही कारण है कि आजकल भारतीय हर क्षेत्र में चहुंमुखी विकास कर रहे हैं। समय-समय पर भारत देश के उत्थान और नवनिर्माण से लेकर इसके चहुंमुखी विकास में देश के असंख्य लोगों का योगदान रहा है, जिनके प्रति हर भारतीय नतमस्तक है। कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही दिखाई दे जाते हैं अर्थात् महान लोगों के लक्षण बचपन में ही पहचान लिए जाते हैं। इस पुस्तक में कुछ ऐसे ही महान लोगों के बचपन की रोमांचक एवं प्रेरक घटनाओं को उकेरा गया है। ये महापुरुष काल एवं समय-सीमा से परे हैं, क्योंकि इनकी प्रेरणा तो लोगों को युगों-युगों तक देती रहेगी।
इस पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें जहां प्राचीन महापुरुषों के बचपन की घटनाएं गहन अनुसंधान के बाद लिखी गई हैं, वहीं किंवदंतियां बने कुछ जीवित महापुरुषों के बचपन की घटनाओं को लेखक ने अंतरंग बातचीत कर उनके जीवन के अनछुए पहलुओं को उकेरा है। सही मायनों में यह पुस्तक सबसे अलग हटकर और बेहद उपयोगी बनाई गई है, ताकि आने वाली पीढ़ी महान लोगों के बचपन को जानकर स्वयं अपनी संतानों को जीनियस बना सके और बालक एवं किशोर इसे पढ़कर प्रेरणा के पथिक बन सकें। इसी आशा और विश्वास के साथ।
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