गुजरात भारत के पश्चिमांचल का सर्वाधिक समृद्ध एवं सुसंस्कृत प्रदेश है। इस प्रदेश के लोक-व्यवहार और बोलचाल की भाषा गुजराती है। गुजराती भाषा में लिखा गया प्राचीन एवं मध्यकालीन साहित्य परिमाण एवं गुणवत्ता दोनों दृष्टियों से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। नरसिंह मेहता, प्रेमानन्द और दयाराम जैसे महाकवि इस भाषा में हुए हैं। आधुनिक काल में उमाशंकर जोशी और सुन्दरम् जैसे सुकवियों ने अखिल भारतीय ख्याति प्राप्त की है। स्व. उमाशंकर जोशी को उनके काव्य 'निशीथ' पर ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ था ।
गुजरात में, गुजराती क़ी ही नहीं, हिन्दी काव्य-रचना की भी प्रशस्त परंपरा रही है। मध्यकाल में यहाँ के कवियों ने गुजराती में लिखने के साथ-साथ डिंगल, ब्रज, अवधी और खड़ी बोली में सुन्दर ग्रंथों का प्रणयन किया है। यहाँ के धर्म-संप्रदायों ने हिन्दी को धर्माश्रय और राजाओं ने राजाश्रय प्रदान किया था । वैष्णव, स्वामिनारायण, जैन, संत और सूफ़ी संप्रदायों के आश्रय में यहाँ के कवियों के द्वारा हिन्दी में विपुल साहित्य रचा गया है। यहाँ के राजाओं ने स्वयं हिन्दी में रचनाएँ की हैं और उनके आश्रय में हिन्दी साहित्य खूब फूला-फला है। कच्छ के महाराव लखपतसिंह ने तो सन् १७४९ ई. में कच्छ भुज में ब्रजभाषा-पाठशाला (काव्यशाला) की स्थापना की थी, जिसमें ब्रजभाषा में कविता करना सिखाया जाता था। न केवल गुजरात में, बल्कि सारे देश में यह अपने ढंग की एकमात्र काव्यशाला थी। यह संस्था भारत के स्वतंत्र होने तक विद्यमान रही । तत्पश्चात् राजाओं के राज्य समाप्त हो जाने के कारण, राजाश्रय के अभाव में यह संस्था काल कवलित हो गई। इस काव्यशाला ने अपने दो सौ वर्षों के कार्यकाल में सैंकड़ों व्रजभाषा-कवि तैयार किए । गुजरात के सुप्रसिद्ध कवि ब्रह्मानन्द और दलपतराम इसी काव्यशाला में प्रशिक्षित हुए थे ।
हिन्दी की तरह उर्दू शेरोशायरी की भी परंपरा पुराने जमाने से गुजरात में रही है। सूफ़ी फकीरों ने गूजरी (पुरानी हिन्दी-उर्दू) भाषा में मसनवियाँ लिखीं हैं। आधुनिक उर्दू शायरी के बाबा आदम 'वली' गुजरात के थे । उनकी मजार अहमदाबाद में हैं। सूरत, भरुच, बड़ौदा, पालनपुर और अहमदाबाद उर्दू शायरी के मशहूर केन्द्र रहे हैं। आज भी गुजरात में उर्दू शायरी पुरबहार में है, जिससे प्रभावित होकर अनेक हिन्दी कवि भी ग़ज़ल, नजम और रुबाइयाँ लिख रहे हैं।
यह सुविदित तथ्य है कि आधुनिक काल में महर्षि दयानन्द सरस्वती और महात्मा गाँधी के सत्प्रयत्नों से हिन्दी भाषा को अखिल भारतीय लोकप्रियता प्राप्त हुई थी । भाषावार प्रांत रचना के पश्चात् जब सब राज्यों की स्वभाषाएँ राज्य भाषाएँ बनीं, तब गुजरात ही एक ऐसा राज्य है, जिसने गुजराती के साथ हिन्दी को भी अपनी द्वितीय राज्यभाषा के रूप में स्वीकार किया। गुजरात राज्य की भाषा विषयक इस उदार नीति के कारण यहाँ के स्कूल, कॉलेज और युनिवर्सिटियों में हिन्दी के पठन-पाठन को पर्याप्त प्रोत्साहन मिला है। गुजरात में आज आठ विश्वविद्यालय हैं और आठों में एम. ए. और पीएच. डी. तक हिन्दी के पठन-पाठन की समुचित व्यवस्था है। इन विश्वविद्यालयों से अब तक ४०० अनुसंधित्सु पीएच. डी. की उपाधि प्राप्त कर चुके हैं और लगभग इतने ही शोधरत हैं। युनिवर्सिटियों के अतिरिक्त गूजरात विद्यापीठ और गुजरात प्रान्तीय राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के द्वारा भी गुजरात के गाँव-गाँव और घर-घर तक हिन्दी पहुँची है। कहने का तात्पर्य यह कि हिन्दीतर प्रदेश होते हुए भी गुजरात में हिन्दी काव्य-रचना के लिए अनुकूल वातावरण था, जिसके कारण आधुनिक युग में हिन्दी कविता को पुष्पित पल्लवित होने के लिए पर्याप्त अवकाश मिला है।
आजादी से पहले हिन्दी, हिन्दीभाषी प्रदेश की भाषा थी। उसके बाद भारतीय संविधान द्वारा राजभाषा के रूप में मान्य हो जाने के कारण अब वह सारे देश की संपर्क-भाषा है। कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से कोहिमा तक वह परिव्याप्त है। देश की सामासिक संस्कृति को व्यक्त करने वाली सशक्त राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी उभर रही है। हिन्दी के इसी अंतर्मांतीय रूप को गुजरात के परिप्रेक्ष्य में देखने का यह एक विनम्र प्रयास है।
गुजरात प्रदेश में पुराने समय से चली आ रही हिन्दी काव्य-परंपरा का अवलोकन कर चुकने के पश्चात् अब हम इस प्रदेश की समकालीन हिन्दी कविता पर विचार करेंगे ।
आज की कविता के लिए कितने ही शब्द प्रचलित हैं, जैसे कि अर्वाचीन कविता, आधुनिक कविता, समसामयिक कविता, समकालीन कविता आदि । पर्यायवाची होते हुए भी इन काल सापेक्ष शब्दों की अवधारणाएँ भिन्न-भिन्न हैं। 'अर्वाचीन' शब्द कालवाचक है; जो प्राचीन नहीं, वह अर्वाचीन है। 'आधुनिक' में अंग्रेजी के 'मॉडर्न' शब्द की छाया है, किन्तु हिन्दी साहित्य के इतिहासों में आधुनिक काल भारतेन्दु से प्रारंभ होकर आज तक चल रहा है। कालवाची होने के साथ-साथ यह शब्द समाजवाची भी है। औद्योगीकरण और अर्थव्यवस्था भी इसमें समाविष्ट है। इसी प्रकार 'समकालीन' शब्द हम जिस काल में रह रहे हैं, उस काल के दो-चार दशकों का ही वाचक है, अतः हमने इनमें से 'समकालीन' शब्द को चुना है, क्योंकि यह शब्द उन सभी अर्थों को ध्वनित कस्ता है जो अर्वाचीन और आधुनिक में गर्भित हैं। इसके अतिरिक्त यह गुजरात के कवियों की हिन्दी कविता पर पूरी तरह लागू भी होता है।
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