हिन्दी साहित्य अकादमी का एक उद्देश्य गुजरात के कवियों और लेखकों के हिन्दी कृतित्व को प्रकाश में लाना है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अकादमी अपने स्थापना काल से ही प्रयत्नशील रही है। प्रस्तुत ग्रंथ इसी दिशा में किया गया एक प्रयास है।
कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि हिन्दीतर प्रदेशों में लिखा गया हिन्दी साहित्य, हिन्दीभाषी प्रदेशों में लिखे जा रहे साहित्य के समकक्ष नहीं है। ऐसा माननेवालो से मेरा विनम्र निवेदन है कि प्रसाद, पंत, निराला और महादेवी तो हिन्दीभाषी प्रदेश में भी एक-एक ही हुए हैं। वैसे कवि यदि हिन्दीतर प्रदेशों में न हों तो यह स्वाभाविक ही है। जहाँ तक गुजरात का सवाल है, इस प्रदेश में हिन्दी कविता की प्रशस्त परंपरा रही है। यहाँ स्तरीय कविता लिखी गई है, लिखी जा रही है और उसकी तटस्थ समीक्षा भी हो रही है। प्रस्तुत ग्रंथ इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
हिन्दी साहित्य अकादमी ने यह निश्चय किया कि गुजरात के मूर्धन्य हिन्दी कवियों के कृतित्व पर एक समीक्षा ग्रंथ तैयार किया जाय। शताधिक कवियों में से इस ग्रंथ के लिए कवियों, समीक्षकों का चयन करना एक कठिन कार्य था। अतः अकादमी की कार्यकारिणी ने यह निर्णय किया कि इस संकलन में उन्हीं मूर्धन्य, प्रतिष्ठित, चर्चित कवियों को लिया जाय जिनके एकाधिक काव्य-संग्रह प्रकाशित हों और जिनकी पहचान गुजरात के बाहर भी बन चुकी हो। इसी प्रकार समीक्षाएं भी गुजरात के जानेमाने समीक्षकों से लिखवाई जाएं ।
इस निर्णय के पश्चात अकादमी ने यह उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य गुजरात के वरिष्ठ विद्वान, डॉ. गोवर्द्धन शर्मा को सौंपा। शर्माजी ने यह कार्य अत्यंत सतर्कता, सावधानी और निष्ठा के साथ पूरा किया है। उन्होंने गुजरात के विभिन्न क्षेत्रों से विभिन्न विधाओं में लिखनेवाले १९ कवियों और १९ सुधी समीक्षकों का चयन किया है। तत्पश्चात प्राप्त समीक्षाओं को काटछाँट कर उन्होंने एकरूपता प्रदान की है तथा उन्हें कवियों के नामों के अकारादि कमानुसार ग्रंथ में प्रस्तुत किया है। पुस्तक के अंत में उन्होंने परिश्रमपूर्वक दो बोधवर्धक परिशिष्ट जोड़कर इस ग्रंथ को अत्यंत उपयोगी बना दिया है। परिशिष्ट-१ में उन्होंने समकालीन हिन्दी कवियों की २०० से अधिक काव्य-कृतियों की सूची दी है और परिशिष्ट-२ में उन्होंने उन विद्वान समीक्षकों का परिचय दिया है, जिन्होंने गुजरात के समकालीन कवियों पर समीक्षाएँ लिखी है।
इस प्रकार, डॉ. गोवर्द्धन शर्मा द्वारा संपादित इस ग्रंथ की जितनी प्रशंसा की जाय कम है। इस ग्रंथ से गुजरात के समकालीन हिन्दी कवि और समीक्षक तो प्रकाश में आयेंगे ही, हिन्दी भाषा-साहित्य का वह सामासिक स्वरूप भी उजागर होगा, जो हिन्दीतर प्रदेशों में आकार ले रहा है।
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