भारतीय संस्कृति की अवधारणा की प्रमाणिकता को पुष्ट करने में मध्यप्रदेश के पुरातात्त्विक एवं सांस्कृतिक पर्यटन स्थलों की प्रमुख भूमिका है। मध्यप्रदेश का भू-भाग, पुरातात्त्विक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक विरासत से अत्यंत समृद्ध है। भारतीय संस्कृति के समग्र स्वरूप को प्रकाश में लाने में मध्यप्रदेश की संस्कृति का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। प्राचीन स्मारकों, प्राचीन दुगों मंदिरों के अनेक भौतिक-साक्ष्य दृष्टिगत हैं। मध्यप्रदेश के पर्यटन तथा लोक-कला, लोक-संस्कृति, लोकनृत्य, लोक-साहित्य इत्यादि का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भारतीय संस्कृति के क्रमिक विकास की अवधारणा को समझने में मध्यप्रदेश के पुरातात्त्विक एवं सांस्कृतिक पर्यटन स्थलों की प्रमुख भूमिका है। प्राचीन से कला एवं संस्कृति की दृष्टि से भारतभूमि काफी समृद्धशाली रही है। यहाँ पर कला, संस्कृति व पुरातत्व के विविध नवीन सोपान देखने को मिलते हैं। मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक विरासत ने भारत की संस्कृति को एक नवीन दृष्टि प्रदान की है।
भारत के सुविख्यात पुरातत्त्ववेत्ता एवं प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, डॉ. हरीसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय, सागर (म. प्र.) के संस्थापक विभागाध्यक्ष स्वर्गीय के. डी. बाजपेयी के जन्म शताब्दी वर्ष में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रस्तुत शोध पत्रों के माध्यम से, भारतीय संस्कृति में मध्यप्रदेश के योगदान के विविध पक्षों को प्रस्तुत ग्रन्थ में प्रस्तुत किया गया है।
प्रो. नागेश दुबे ने स्नातक, स्नात्कोत्तर एवं पीएच.डी. की उपाधि प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग, डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर (म.प्र.) से प्राप्त कर वर्ष 1998 में इसी विभाग में सहायक प्राध्यापक पद पर कार्यभार ग्रहण किया। अकादमिक कार्यों के साथ ही वर्ष 2014 से निरन्तर इस विभाग में विभागाध्यक्ष पद का भी निर्वहन कर रहे हैं। इनकी विषय विशेषज्ञता प्राचीन भारतीय सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास तथा भारतीय कला एवं स्थापत्य है। इन्होंने अनेक पुरातात्त्विक सर्वेक्षणों एवं उत्खननों में भी सहभागिता की है। इनकी 6 पुस्तके पुस्तकें प्रकाशित हैं। इन्होंने 6 राष्ट्रीय संगोष्ठियों का सफल आयोजन करवाया है तथा 100 से अधिक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में सहभागिता भी की है। इनके 60 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित हैं। इनके शोध निर्देशन में अब तक 18 शोधार्थियों ने शोधकार्य पूर्ण किया है। इनके निर्देशन में ही संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा विभागीय संग्रहालय के लिए स्वीकृत राशि रू. 7.5 करोड़ की परियोजना का भी संचालन किया जा रहा है। श्यामलम संस्थान, सागर द्वारा वर्ष 2023 का विवेकतत्त झा 'पुरातत्त्व एवं संस्कृति सम्मान' से भी प्रो. नागेश दुबे को सम्मानित किया गया।
डॉ. सुल्तान सलाहुद्दीन ने प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्त्व विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर तथा प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग, डॉ. हरीसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय, सागर (म.प्र.) से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। इन्होंने 'पुरातत्त्व' विषय में यूजीसी नेट परीक्षा पास की है। इन्होंने संग्रहालय विज्ञान, प्रागैतिहास, शैलचित्र कला, पुरातात्त्विक उत्खनन एवं अन्वेषण में विशेषज्ञता हासिल की की है। इनके द्वारा अशोकनगर जिले में विद्यमान 50 से अधिक नवीन पुरास्थलों सहित 6.6 करोड़ वर्ष पुराने वृक्षों के जीवश्मों की भी खोज की गई। विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में इनके 10 से अधिक शोधपत्र प्रकाशित हैं। उन्होंने विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों / सम्मेलनों में 30 से अधिक शोध पत्र भी प्रस्तुत किए हैं। इनके द्वारा एक-एक राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं राष्ट्रीय वेबिनार का भी सफल आयोजन कराया गया है। साथ ही इन्होंने संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा विभागीय संग्रहालय के लिए स्वीकृत परियोजना के निर्माण में भी सहयोग किया है। आप वर्तमान में शासकीय महाविद्यालय, शाढ़ौरा, जिला अशोकनगर, मध्य प्रदेश में इतिहास विभाग में अतिथि सहायक प्राध्यापक के रूप में कार्यरत हैं।
मध्यप्रदेश का गौरवशाली इतिहास हमारे लिये सदैव प्रेरणा का स्वर्णिम स्त्रोत रहा है। पूर्व में चेदि, जेजाक, भुक्ति, विध्यप्रदेश, मध्यप्रांत, संयुक्त प्रांत आदि नामों से यह क्षेत्र संबोधित होता था। वर्तमान मध्यप्रदेश की सीमाएं अधिक पुरानी नहीं है। नवीन मध्यप्रदेश का पुर्नगठन सन 1956 ई. में हुआ। मध्यप्रदेश की संस्कृति प्राचीनकाल से ही विविधताओं से भरी हुई है। प्राक् इतिहास एवं आद्य इतिहास की संस्कृति के अंतर्गत मध्यप्रदेश में प्राप्त होने वाली, प्रागैतिहासिक चित्रकला की निरंतरता यहाँ के शैलाश्रयों में दर्शित हुई है।
मालवा का पूर्वी भाग दशार्ण जनपद के नाम से प्रसिद्ध हुआ, जिसकी राजधानी विदिशा थी। पश्चिमी भाग अवन्ति कहलाया, जिसका मुख्य केन्द्र उज्जयिनी हुई। आधुनिक विध्यप्रदेश का अधिकांश भाग चेदि जनपद के नाम से प्रसिद्ध था, जो जेजाकभुक्ति और बुन्देलखण्ड के नाम से ज्ञात है। इसके पूर्व भाग का नाम करूष जनपद था, जो बाद में बघेलखण्ड कहलाया।
भारतीय संस्कृति की अवधारणा की प्रमाणिकता को पुष्ट करने में मध्यप्रदेश के पुरातात्त्विक एवं सांस्कृतिक पर्यटन स्थलों की प्रमुख भूमिका है। मध्यप्रदेश की संस्कृति ने भारतीय संस्कृति के विविध सांस्कृतिक तत्त्वों को विकसित होने में प्राकृतिक सुषमा से परिवेष्ठित हैं। मध्यप्रदेश में पुरातात्त्विक एवं सांस्कृतिक पर्यटन स्थल विद्यमान हैं।
मध्यप्रदेश का भू-भाग, पुरातात्विक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक विरासत से अत्यंत समृद्ध है। रायसेन जिले में स्थित भीम बेटका-खरवई प्रागैतिहासिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यहाँ के शैलचित्र विश्व प्रसिद्ध हैं। भोपाल, रायसेन, होशंगाबाद, पचमढ़ी, विदिशा, शिवपुरी, सागर, मंदसौर, अशोकनगर, दमोह तथा कतिपय अन्य जिलों में प्रागैतिहासिक काल से लेकर नव-पाषाणकाल ताम्रपाषाणकाल तथा ऐतिहासिक काल के चित्रित शैलाश्रयों से यहाँ के प्रमाणिक साक्ष्य मिले हैं। नव-पाषाणकाल ताम्राष्मकाल में मध्यप्रदेश अत्यन्त समृद्ध रहा है। एरण (सागर) में किये गये पुरातात्त्विक उत्खननों से नव-पाषाणकाल ताम्रपाषाणकाल एवं ऐतिहासिक कालों की सामाजिक-सांस्कृतिक जन-जीवन की झाँकी सुलभ हुई है। भारतीय संस्कृति के पुरातात्त्विक स्वरूप को प्रकाश में लाने में मध्यप्रदेश की संस्कृति का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
भारत के मध्यभाग में स्थित मध्यप्रदेश में प्राचीन मंदिरों, देवी-देवताओं की असंख्य प्रतिमाओं, उत्कीर्ण अभिलेखों, विविध राजवंशों के सिक्कों, अभिलिखित मृण्मुद्रांकों के अतिरिक्त महाजनपद काल से लेकर मध्यकाल तक के प्रचुर पुरावशेष विद्यमान हैं। प्राचीन स्मारकों, प्राचीन दुर्गों किलों के अनेक भौतिक-साक्ष्य दृष्टिगत होते हैं। पर्यटन तथा लोक-कला, लोक-संस्कृति, लोकनृत्य, लोक-साहित्य इत्यादि का भी भारतीय संस्कृति में अप्रतिम योगदान है।
भरहुत (सतना), साँची, सतधारा, सोनारी आदि स्थलों के बौद्ध स्तूप विश्व प्रसिद्ध हैं। बेसनगर गरुड़ध्वज स्तम्भ में उल्लेखित अभिलेख से पता चलता है कि यूनानी राजदूत 'हेलियोडोरस' ने भगवान वासुदेव की उपासना से प्रभावित होकर 'भागवतमत' के प्रति श्रृद्धा व्यक्त की थी। मथुरा के पश्चात् बेसनगर-विदिशा, भागवतमत का प्रधान केन्द्र रहा है।
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