भारत के स्वर्णिम काल गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद उत्तरी भारत में अराजकता उत्पन्न हो गई। तब हर्षवर्धन (590-647 ई.) ने सुदृढ़ साम्राज्य स्थापित करके राजनीतिक स्थिरता प्रदान की, परंतु उनके बाद हिंदू शासकों का पतन शुरू हो गया। अखंड भारत का लोलुप विदेशी आक्रांताओं द्वारा जिस तरह दमन किया गया, वह क्रम पृथ्वीराज चौहान और अंतिम हिंदू शासक हेमचंद्र विक्रमादित्य 'हेमू' के बाद अंतिम सीमाएं लांघ गया। मुसलमान शासकों ने हिंदू संस्कृति, प्रतीकों, धार्मिक प्रतिष्ठानों को नष्ट करने में कोई कोर-कसर शेष न छोड़ी। व्यापक स्तर पर धर्मांतरण किया गया। तत्पश्चात आंग्ल शासकों ने भी धर्मांतरण और भारतीय लघु उद्योगों और शिक्षा पद्धति को नष्ट-भ्रष्ट करना अपने शासन का अभिन्न कार्य बना लिया था। तत्पश्चात दमनचक्र से त्रस्त भारत ने पराधीनता की बेड़ियां काटने के लिए अंगड़ाई ली। सन 1857 के विफल विद्रोह के बाद 1947 में स्वतंत्र भारत राष्ट्र के क्षितिज पर भगवान भास्कर का उदय हुआ। यद्यपि स्वतंत्रता से पूर्व ही कांग्रेस नाम के संगठन में त्रुटियां एवं दोष बहुतायत में घुल गए थे, इस विचार-निर्वात की स्थिति में भी भारत को विश्व गुरु बनाने और भारत में परम वैभव मंडित करने के लिए पूजनीय डॉ. केशव हेडगेवार ने विजयादशमी के दिन नागपुर में 27 सितंबर सन् 1925 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। इसी क्रम को अग्रसारित करते हुए भारतीय राजनीतिक एवं आर्थिक चिंतन को वैचारिक दिशा देने वाले पुरोधा तथा भारतीय जनसंघ के पूर्व अध्यक्ष पं. दीनदयाल उपाध्याय ने 'मानव एकात्म दर्शन' का सूत्रपात किया।
पं. दीनदयाल उपाध्याय के विचार प्रवाह से अनुप्राणित दीनदयाल उपाध्याय रचना-संचयन ऐसा संकलन सिद्ध हुआ, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शलाका पुरुष पं. दीनदयाल उपाध्याय के अलौकिक चिंतन और प्रज्ञा का साक्षात वाङ्मय है। पं. दीनदयाल उपाध्याय ने बंबई में 22 से 25 अप्रैल, 1965 के मध्य मानव, समाज, राष्ट्र और प्रकृति के पारस्परिक संबंधों की मीमांसा करते हुए अपने चार अध्यायों के माध्यम से भारतीय जनसंघ की विचारधारा की आधारशिला रखी, जो कालांतर में मानव एकात्मवाद के रूप में जाना गया और इसे बाद में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी विचारधारा के तौर पर अंगीकार किया। राष्ट्र धर्म पत्रिका और उसके बाद संघ के मुखपत्र पांचजन्य के प्रकाशन के क्रम में मां शारदा की असीम कृपा से उनकी लेखनी से जो निःसृत हुआ, वह मानव एकात्मवाद के वृहद् अंगों को समेटे हुए था। इन अध्यायों में वेद वर्णित मानव के संपूर्ण सृष्टि से संबंध के अध्याय को उन्होंने वर्तमान संदर्भों में व्यापक दृष्टिकोण से आलोकित किया। मानव और जीव मात्र के लिए जितनी खरी कसौटी पर इस एक दर्शन ने समग्र चिंतन प्रस्तुत किया है, उसका अन्य दर्शनों में सर्वथा अभाव दिखता है। ऐसे आलेखों से गुंथी एक माला है दीनदयाल उपाध्याय रचना-संचयन। साठ के दशक में विभिन्न लेख-मालाओं में उन्होंने जिन ऐतिहासिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और सामाजिक चिंताओं को रेखांकित किया, वे संपूर्ण मानवता संग अखंड भारत के लिए प्रकाशपुंज सिद्ध हो रही हैं। समाजवादी नीतियों वाली शासन प्रणाली के विद्रूपों को उजागर करते हुए उन्होंने इस माध्यम से भारत के गौरवमयी स्वर्णिम काल का संकल्पना पत्र प्रस्तुत किया।
मानव एकात्म दर्शन' के माध्यम से पं. दीनदयाल उपाध्याय ने व्यक्ति से ब्रह्मांड तक के संबंध को परिभाषित करते हुए 'अखंड भारत' का स्वप्न निद्रित भारतीय मानस में संचारित किया। एकात्म मानववाद को सर्पिलाकार मंडलाकृति द्वारा समझा गया, जिसमें यह स्पष्ट होता है कि कैसे केंद्र में व्यक्ति, व्यक्ति से जुड़ा हुआ एक घेरा परिवार, परिवार से जुड़ा हुआ एक घेरा-समाज, जाति, फिर राष्ट्र, विश्व और फिर अनंत ब्रह्मांड को अपने में समाविष्ट किये है। इस आकृति से यह समझ आता है पूरी दुनिया ब्रह्मांड से लेकर व्यक्ति तक एक श्रृंखला में जुड़ी हुई है और सभी का अस्तित्व एक दूसरे पर निर्भर है, यहां जीने के लिए कोई संघर्ष नहीं है। वे मानते हैं कि भारतवर्ष में विश्व बंधुत्व और सहिष्णुता की चरम कोटि समाहित है, किंतु अरब और पश्चिम की जीवनशैली में असहिष्णुता का कोई पारावार नहीं है। मुगलों, अंग्रेजों, फ्रांसीसियों और डचों की साम्राज्यवादी भावनाएं, एशियाई लोगों पर किए गए अत्याचार, ईसाई और मुस्लिम धर्मों के समक्ष अन्य धर्मों को हेय मानने और भीषण युद्ध की श्रृंखला असहिष्णु मनोवृत्ति का परिचायक है। पश्चिम में अपने से इतर जातियों के प्रति सम्मान और श्रद्धा का भाव उत्पन्न नहीं हुआ है। वे अपने साम्राज्यवादी दर्शन से पूरे विश्व को हांकना चाहते हैं।
"
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist