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आधुनिक हिन्दी गद्य साहित्य का विकास और विश्लेषण- Development and Analysis of Modern Hindi Prose Literature

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Specifications
Publisher: Bharatiya Jnanpith, New Delhi
Author Vijay Mohan Singh
Language: Hindi
Pages: 709
Cover: HARDCOVER
9x6 inch
Weight 850 gm
Edition: 2015
ISBN: 9789326352475
HBS463
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Book Description
पुस्तक परिचय
प्रख्यात आलोचक विजय मोहन सिंह की पुस्तक 'आधुनिक हिन्दी गद्य साहित्य का विकास और विश्लेषण' में आधुनिकता को नये सिरे से परिभाषित और विश्लेषित करने की पहल है। काल विभाजन की पद्धति भी बदली, सटीक और बहुत वैज्ञानिक दिखलाई देगी। साहित्य के विकासात्मक विश्लेषण की भी लेखक की दृष्टि और पद्धति भिन्न है। इसीलिए हम इस पुस्तक को आलोचना की रचनात्मक प्रस्तुति कह सकते हैं। पुस्तक में आलोचना के विकास-क्रम को उसके ऊपर जाते ग्राफ से ही नहीं आँका गया है। युगपरिवर्तन के साथ विकास का ग्राफ कभी नीचे भी जाता है। लेखक का कहना है कि इसे भी ती विकास ही कहा जाएगा। लेखक ने आलोचना के पुराने स्थापित मानदंडों को स्वीकार न करते हुए बहुत-सी स्थापित पुस्तकों को विस्थापित किया है। वहीं बहुत-सी विस्थापित पुस्तकों का पुनर्मूल्यांकन कर उन्हें उनका उचित स्थान दिलाया है। पुस्तक में ऐतिहासिक उपन्यासों और महिला लेखिकाओं के अलग-अलग अध्याय हैं। क्योंकि जहाँ ऐतिहासिक उपन्यास प्रायः इतिहास की समकालीनता सिद्ध करते हैं, वहीं महिला लेखिकाओं का जीवन की समस्याओं और सवालों को देखने तथा उनसे जूझने का नज़रिया पुरुष लेखकों से भिन्न दिखलाई पड़ता है। समय बदल रहा है। बदल गया है। आज की महिला पहले की महिलाओं की तरह पुरुष की दासी नहीं है। वह जीवन में कन्धे से कन्धा मिलाकर चलनेवाली आधुनिक महिला है। वह पीड़ित और प्रताड़ित है तो जुझारू, लड़ाकू और प्रतिरोधक जीवन शक्ति से संचारित भी है।

लेखक परिचय
जन्म : 1 जनवरी 1936, शाहाबाद (बिहार) में। शिक्षा: एम.ए., पी-एच.डी.। कार्यक्षेत्र की दृष्टि से 1960 से 1969 तक आरा (बिहार) के डिग्री कॉलेज में अध्यापन। अप्रैल, 1973 से 1975 तक दिल्ली विश्वविद्यालय के रामलाल आनन्द महाविद्यालय में अध्यापन। अप्रैल, 1975 से 1982 तक हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला में सहायक प्रोफ़ेसर। 1983 से 1990 तक भारत भवन, भोपाल में 'वागर्थ' का संचालन। 1991 से 1994 तक हिन्दी अकादमी, दिल्ली के सचिव । 1964 से 1968 तक पटना से प्रकाशित होने वाली पत्रिका 'नई धारा' का सम्पादन। नेशनल बुक ट्रस्ट से प्रकाशित यूनेस्को कूरियर के कुछ महत्त्वपूर्ण अंकों तथा एन.सी.ई.आर.टी. के लिए राजा राममोहन राय की जीवनी का हिन्दी अनुवाद। प्रकाशन : पाँच आलोचना की पुस्तकें। 'टट्टू सवार', 'एक बंगला बने न्यारा', 'ग़मे हस्ती का हो किससे...!' तीन कहानी संग्रह। 'कोई वीरानी-सी वीरानी है...' उपन्यास। 1960 के बाद की कहानियों का एक चयन और उसका सम्पादन। हिन्दी की प्रायः सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में 100 से अधिक रचनाएँ प्रकाशित।

पूर्वकथन
अपनी किसी पुस्तक की भूमिका लिखना मेरे लिए असुविधा का विषय रहा है; एक तो शुद्ध आलस्य के कारण। दूसरा यह मानकर कि पाठक शायद बहुत-सी बातें समझ न सके, उसे अलग से समझाना जरूरी है! यह पाठक के विवेक पर अविश्वास करना होगा। तीसरा यह कि ऐसा कुछ रह गया है 'जो कहा नहीं गया' उसे अलग से कहना जरूरी है। यह पुस्तक इतिहास नहीं है, आधुनिक हिन्दी गद्य साहित्य के विकास का विश्लेषण है। इतिहास न कहने पर जोर इसलिए है कि हिन्दी में अभी तक जो साहित्य के इतिहास लिखे गये हैं (अपवाद स्वरूप एक हद तक शुक्ल जी के इतिहास को छोड़कर) वे इतिहास के नाम पर लेखकों और पुस्तकों के सूचीपत्र अधिक रहे हैं। ऐसा भी नहीं है कि वे साहित्येतिहास की किसी विशेष वैज्ञानिक पद्धति से लिखे गये हों। अधिकांशतः वे वैसे ही खतियाकर रख दिये गये हैं। फिर उनका जोर 'कालविभाजन' और उनके शीर्षकों को लेकर रहा है जो एक अप्रासंगिक किस्म की फतवेबाजी ही रही है। हाँ इस पुस्तक में आधुनिक को लेकर मेरा मतभेद जरूर रहा है। सामान्यतः आधुनिकता की विशेषताओं को लेकर और उससे जुड़े विशेष भावबोध को समझे बिना छापाखाना, टेलीफ़ोन, रेलवे आदि के आगमन के आधार पर आधुनिक युग का आगमन घोषित कर दिया गया है। अब चूँकि आधुनिकता को बहुत कुछ परिभाषित कर दिया गया है और उसकी विशेषताओं को रेखांकित किया जा चुका है इसलिए इस पुस्तक में इस सन्दर्भ में आधुनिकता को नये सिरे से परिभाषित तथा विश्लेषित करने की चेष्टा की गयी है।

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