पिछले पचास या सौ वर्षों में विज्ञान का अभूतपूर्व विकास हुआ है। विज्ञान द्वारा अनेक आश्चर्यजनक आविष्कार मनुष्य के सामने आये हैं। विज्ञान ने जिन नवीन सिद्धान्तों की स्थापना की है उन द्वारा कई चिर-प्रचलित 'धार्मिक' मान्यताएं धराशायी हो गई हैं। चूँकि विज्ञान की पद्धति ऐसी है कि वह प्रायः प्रयोग (Practical) द्वारा अपने सिद्धान्त को प्रत्यक्ष रूप में प्रमाणित कर सकता है, इसलिए आज विज्ञान में लोगों की अधिक आस्था है और जहाँ भी वह किसी धार्मिक सिद्धान्त का विरोध करता है वहाँ प्रायः लोग विज्ञान ही में विश्वास करते हैं। परन्तु दूसरी ओर हम यह देखते हैं कि वैज्ञानिक साधनों से सुख-सामग्री पाकर भी बहुत-से मनुष्य चैन की नींद नहीं सो सकते। इसके अतिरिक्त, कई उच्चकोटि के वैज्ञानिकों ने स्वयं भी धर्म की आवश्य-कता को स्वीकार किया है।
इस प्रकार आज धर्म और विज्ञान के बारे में लोगों का कोई एक निश्चित मन्तव्य नहीं है परन्तु इसमें संदेह नहीं कि दोनों का अपना-अपना महत्त्व है। इस पुस्तक में हमने धर्म और विज्ञान दोनों के अपने-अपने स्थान और कर्त्तव्य का परिचय देने का यत्न किया है। परमपिता परमात्मा शिव ने इन दोनों से सम्बन्धित वर्तमान में जो महावाक्य उच्चारण किये, उनके आधार पर प्रकाशित किये गये लेखों को, इस पुस्तक के रूप में संग्रहीत किया गया है। आशा है कि पुस्तक द्वारा पाठकों को इस विषय पर प्रकाश मिलेगा।
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