पिछले कुछ वर्षों से देखने में आया है कि हमारे देश में धर्मान्तरण केवल व्यक्तिगत निर्णय पर न होकर प्रधान बहुसंख्यक के ज्ञान अनुभव व कृपा-दान पर निर्भर है। ऐसे देश के लिये यह और भी व्यंग्यात्मक हो जाता है जहाँ के बहुसंख्यक इतिहास के किसी बिन्दु पर स्वयं एक धर्मान्तरण की प्रक्रिया से गुजर चुके हैं। वर्तमान में उछाले जा रहे तथाकथित आपत्तिजनक धर्मान्तरण-विधियों के एकमात्र उदाहरण, किसी एक धर्म विशेष में आस्था रखने वालों व उसके अनुयायियों-जैसे, मसीही मिशनरियों के ही नहीं है। हिन्दू राजाओं तथा सम्राट अशोक के उपनिवेशीकाल में ब्राह्मणीय हिन्दूवाद तथा बौद्ध धर्म केवल मिशनरीय उत्साह के कारण ही दक्षिण-पूर्व एशिया में फैला। संस्कृतिकरण या ब्राह्मणीकरण भारत में इसीलिए हो सका क्योंकि यह एक मिशनरी धर्म था ।
ब्राह्मणीय मिशनरियों की यह सीमा विस्तार विरासत, बौद्ध, मुस्लिम व ब्रिटिश राज्यों के समय कुछ रुक गयी। आज हमारी इस सदी में राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एक बार फिर ब्राह्मणीय धर्म में सुधार व जागृति, मिशनरीय प्रयासों द्वारा लाई जा रही है। रामकृष्ण मिशन, आसाम हिन्दू मिशन, आर्य समाज, विश्व हिन्दू परिषद् तथा बीसियों अन्य मिशनों, स्वामियों और लाखों डॉलर के भगवानों द्वारा इसे फिर से जागृत किया जा रहा है।
1981 में जब मीनाक्षीपुरम् धार्मिक तनाव में आ गया था, तब यही ब्राह्मणीय मिशन आकर्षणस्वरूप एक अमेरिकन हिन्दू-मिशनरी को मुख्य वक्ता के रूप में वहाँ ले आई । तमिलनाडु राज्य हिन्दू मोर्चा जिसका वार्षिक सम्मेलन फरवरी 1984 में सेलम में हुआ, मुख्य आकर्षण के रूप में इटली के हिन्दू मिशनरियों, अर्जुन नाथास तथा आनन्द स्वरूप स्वामी को ले आया। आज भारत में ऐसे अनेक गोरे (विदेशी) हिन्दू मिशनरी कार्यरत है।
वर्तमान लेखक, सुन्दर राज यही आशा रखते हैं कि प्रत्येक भारतीय यह समझ सके कि सभी धर्मों के मिशनरीय लक्ष्य रहे हैं जिसके अन्तर्गत धर्मान्तरण भी आता है जो आज भी चले आ रहे हैं। अतः एकमात्र मसीही मिशनरी सेवाओं की निन्दा करने का कोई भी प्रयास अनुचित है। इसी के साथ-साथ यह पुस्तक बड़े प्रभावपूर्ण ढंग से इस मत का भी विरोध करती है कि मसीहियत एक अपनीवेशी धर्म है। लेखक युक्तियुक्त ढंग से यह प्रमाणित करता है कि इसके पूर्व कि भारत में एक भी गोरा (विदेशी) दिखाई देता, यहाँ लगभग दस लाख मसीही थे; और यही प्रतिशत मसीहियों का उस समय भी था जब अंग्रेजों ने भारत छोड़ा। इस प्रकार मसीहियत भारत में उतनी ही प्राचीन, पूर्वी व स्वदेशी है जितने कि यहाँ के अन्य मत है।
मसीही लोग ख्रीष्ट की आज्ञा व उसके मिशन के प्रति समर्पित हैं जो उसने अपने विख्यात "नासरत आख्यान" (लूका 4:18-19) में दिया। यह आज्ञा प्रत्येक मसीही को यीशु की गवाही देने व उसके प्रेम-संदेश को दूसरों तक पहुँचाने को प्रेरित करती है। यह मिशन अनिवार्यरूप से मानव जाति की सेवा ही है। इन दोनों में एक गहरा सम्बन्ध है तथा ये पृथक नहीं किये जा सकते। यह विरोधाभासी है कि भारत के सभी मत समीहियों की सेवा-भावना को ग्रहण तो कर लेते है और उसकी प्रशसा भी करते हैं, परन्तु उस महान् आज्ञा को स्वीकार नहीं करते। प्रायः मसीहियों पर यह आक्षेप लगाया जाता है कि वे अदेशभक्त होते हैं, वे यहाँ की संस्कृति को दूषित कर रहे हैं; और यह कि उनके समाज-सेवा का उद्देश्य धर्म-परिवर्तन होता है। लेखक विश्वस्त विश्लेषणों एवं अभिलेखों सहित प्रमाणित करता है कि मसीही लोग भारतीय है तथा देश की उन्नति तथा एक निष्पक्ष सामाजिक व्यवस्था स्थापित करने में संलग्न हैं।
हम परमेश्वर के आभारी है कि उसने हमारे इस पुस्तक का हिन्दी अनुवाद करने के प्रयास को सफल किया है। अनेक लोगों ने इसमें सहयोग दिया है। विशेषतया 'ट्रेसी' भाई रॉनल्ड बिनय कुमार (बाइवल सोसाइटी ऑफ इण्डिया, दिल्ली शाखा), और भाई सैमुएल एच. लाल (इण्डिया एवर्स होम क्रूसेड, नयी दिल्ली) के प्रति आभारी है जिन्होंने अपना बहुमूल्य समय व समर्पण दिया जिससे यह अनुवाद शीघ्र हो सका । भाई विनय कुमार ने 'पूफ' का संशोधन करने का अतिरिक्त कार्य भी किया। हम परमेश्वर की प्रशंसा उनके तोड़ो (वरदानों) व सेवा के लिये करते हैं, जो उन्होंने उसी की महिमा के लिये किये। इसी पुस्तक के एक छोटे-से अंश का अनुवाद डॉ. विश्वासनाथ (बेक टू द बाइबल, दिल्ली) द्वारा किया गया। लखनऊ पब्लिशिंग हाउस के भाई सनी प्रसाद ने इस उत्तम पुस्तक के हिन्दी अनुवाद को छपा देखने की इच्चा से इस अनुवाद का सम्पादन किया, हम उनके आभारी है। हम जवाहर लाल यूनिवर्सिटी के रिज़वाना अल-जुम के भी आभारी है जिन्होंने इस अनुवाद का सामानान्तर सम्पादन किया। दिल्ली डायोसिस की श्रीमती लता संतराम ने इस अनुवाद से सम्बन्धित अपने कुशल विचार प्रस्तुत किये ।
इसका अंग्रेजी शीर्षक "कन्फ्यूजन कॉल्ड कनवर्जन" इस पुस्तक का सारांश प्रस्तुत करता है। हिन्दी में अन्य समरूपी शीर्षक उचित नहीं थे। वर्तमान शीर्षक दिल्ली डायोसिस (सी. एन. आई.) के आदरणीय बिशप प्रीतम बी. सन्तराम द्वारा सुझाया गया शीर्षक है। मैं 'ट्रेसी' बोर्ड ऑफ गवरनर्स के सदस्यों तथा चेयरमैन, सी.बी. सैमुएल का, उनके इस प्रकाशन में पूर्ण सहयोग देने के लिये आभारी हूँ, विशेषतया रेव्ह. वलसन थम्पू का जिन्होंने आवरण पृष्ठ की कला-धारणा का सुधार किया। मैं रेव्ह, पार्सले, भाई इजीकिएल जोशुआ, रेव्ह. बी. पी. कच्छी, रेव्ह इम्मानुएल जॉर्ज व भाई विलसन का कृतज्ञ हूँ जिन्होंने इस प्रकाशन के प्रति निरन्तर उत्साह एवं सहयोग प्रदान किया, और 'ट्रेसी' स्टाफ का विशेषतया भाई एलेक्स जोजफ का जिन्होंने इस पुस्तक के अनुवाद व प्रकाशन के मुद्रण में सहयोग दिया । हिन्दी की छपाई का कार्य 'ट्रेसी' के लिए एक नया कार्य है, और में भाई बी.के. सिंह (इण्डिया बाइबल पब्लिशर्स, नयी दिल्ली) का आभारी हूँ जिन्होंने इस विषय में अपनी व्यावसायिक सम्मति देकर हमारा बड़ा उपकार किया ।
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist