प्राणियों के शरीर का निर्माण एवं पोषण आहार से ही होता है। आहार का जीवन में अत्यधिक महत्व है। शरीर के स्वास्थ्य की दृष्टि से यदि देखा जाय तो आहार जीवनीशक्ति का मुख्य घटक है। इसी के द्वारा धातुओं का पोषण, रक्षक और क्षतिपूर्ति होती है। हमारा स्वास्थ्य भी अधिकतर आहार पर ही निर्भर है। आहार से ही बल, वर्ण और तेजस की प्राप्ति होती है। आहार के बिना हम जीवित नहीं रह सकते। सामान्य रूप से यदि कहे कि आहार ही जीवन का आधार है तो कोई गलत नहीं होगा। सभी प्राणियों का स्थूल शरीर आहार से उत्पन्न होता है तथा आहार से ही बढ़ता है। इसी को उपनिषदों में अन्नमय कोष कहा गया है। इसलिए जीवन में आहार से बढ़कर अन्य कोई उपयोगी पदार्थ नहीं है।
स्वास्थ्य की दृष्टि से तो आहार का अत्यन्त महत्व है किन्तु वैचारिक दृष्टि से भी आहार सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। जैसा हम आहार ग्रहण करते हैं वैसे ही हमारे विचार हो जाते हैं। एक सामान्य सी कहावत है-जैसा खायें अन्न वैसा हो जाये मन। उपनिषदो में भी कहा गया है- "आहार शुद्धो सत्वशुद्धि, सत्व शुद्धो ध्रुवा स्मृतिः" अर्थात् आहार की शुद्धि से बुद्धि की शुद्धि होती है, बुद्धि की शुद्धि होने पर अज्ञान का आवरण हट जाता है और शुद्ध ज्ञान की प्राप्ति होती है। आहार का जीवन में सर्वाधिक महत्व है। जिसके पास ज्ञानरूपी धरोहर होती है उसके जीवन की सभी समस्याओं का निवारण हो जाता है।
आध्यात्मिक जगत में भी ज्ञान की ही महत्ता है। क्योंकि ज्ञान ही जीवात्मा के बन्धनों को काटकर मोक्ष या मुक्ति प्रदान करता है। और, ज्ञान की प्राप्ति के लिए आहार का शुद्ध होना नितान्त आवश्यक है। इसलिए योग एवं अध्यात्म शास्त्रों में आहार पर विशेष बल दिया गया है। योग शास्त्रों में पथ्य अर्थात् क्या खायें और अपथ्य अर्थात् क्या नहीं खायें इसपर विशेष चर्चा की गई है। साथ ही, योग साधना में महत्वपूर्ण यौगिक आहार एवं मिताहार का विशेष रूप से निर्देश दिया गया है।
आहार की उपर्युक्त चर्चा की दृष्टि से जब हम शास्त्रों का अवलोकन करते हैं तो कहीं पर भी आहार से सम्बन्धित सभी बातों का वर्णन एक स्थान पर प्राप्त नहीं होता। इसी विचार के परिणामस्वरूप मन में आया कि सरल भाषा में आहार से सम्बन्धित एक ऐसी पुस्तक की रचना की जाय जिससे सामान्य जन उसको पढ़कर अपने स्वास्थ्य को ठीक रख सके और जीवन में उसका लाभ ले सके।
साथ ही, योगजिज्ञासु साधक भी इस पुस्तक के द्वारा योग साधना से आत्मोन्नति कर सके। इसी दृष्टि से हमने इस पुस्तक की रचना का प्रयास किया है। आशा है सभी शुधीजन पाठक इससे अवश्य ही लाभान्वित होंगे। यदि कहीं पर पाठकों को इसमें कोई त्रुटि या कमी अनुभव हो तो हमें अवगत कराने का कष्ट करें जिससे पुस्तक के अगले प्रकाशन में उसका सुधार किया जा सके।
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