यह पारंपरिक नहीं है कि किसी पुस्तक की प्रस्तावना दोहे या गाने से लिखी जाए। परंतु दोहे और गाने कम शब्दों में बहुत कुद कह देने में समर्थ होने से लेखक ने इस विधा को चुना है। बहुत से कबीर के दोहे जनमानस में विद्यमान होने से उसके अर्थ वाक्प्रचार में होने से वे यहां नहीं दिए गये तथा हिन्दी में जो गीत दिए गए हैं उसके अर्थ स्वयं शब्द ही वहन कर रहे हैं।
कबीर
कबीर मन निर्मल भया जैसे गंगा नीर पीछे पाछे हरि फिरे कहत कबीर कबीर-सी.डी.एन.: 2019-224
धीरे-धीरे रे मना धीरे सब कुछ होए
माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आए फल होए सी.डी. एन: 2019:224
घर घर दीपक बरै, लखै नहीं अंघ है। लखत लखत लखि परै, कटै जमफंद है।। करन सुनन कछु नाही, नहि कछु करन है। जीते जी मरि रहै, बहुरि नाहि मरन है।।
- सी.डी.एन.: 2019:228
जोगी पड़े वियोग, कहै घर दूर है। पासहि बसत हजूर, तूं चड़त खजूर है।। बाहमन दिछ्छा देत सै घर घर घालि है। मूर सजीवन पास, तू पाहन पालि है।।
ऐसन् साहब कबीर, सलोना आप है। नही जोग नहीं जाप पुंन नहि पाप है।।
- सी.डी.एन: 2019:228
आसन् कर डिंड धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना। पीपर पाथर पूजन लागे, तीरथ वरत मुलाना।। - सी.डी.एन.: 2019:229
हिंदू की दइआ मिहर तुरकन की, दोनों घर से भागी। वह करै जिबर वां झटका मारे, आग दैऊ घर लागी।।
- सी.डी.एन.: 2019:221
या विधि हंसी चलत है हमको, आप कहावे सिआना। कहै कबीर सुनो भई साधो इन में कौन दीवाना।।
- सी.डी.एन.: 2019:229
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