पुस्तक परिचय
प्राचीन भारत में कित्ररों का उल्लेख साहित्य, धर्मग्रंथों और सांस्कृतिक परंपराओं में विशेष रूप से मिलता है। किन्नरों का वर्णन बुद्धि, विद्या और बल में सामर्थ्य रखते हुए चित्रित किया गया है। किन्नरों को अक्सर अद्वितीय गुणों और क्षमताओं वाले प्राणी के रूप में देखा गया है, जो देवताओं और मनुष्यों के बीच एक सेतु का कार्य करते थे। उनके सामाजिक, सांस्कृतिक, और आध्यात्मिक महत्व को विभित्र प्राचीन ग्रंथों और ऐतिहासिक संदर्भों में व्यापक रूप से वर्णित किया गया है। महाभारत में कित्रर रूप में शिखंडी और ब्रह्नलला का स्थान विशेष है। वाल्मीकि कृत रामायण के उत्तरकांड में वर्णित किन्नरों की प्रत्यक्ष उपस्थिति मिलती है।
किन्नरों की सामाजिक स्थिति हमेशा से ही एक बहस का मुद्दा रही है। हालांकि, समय के साथ इस समुदाय ने अपनी पहचान और अधिकारों के लिए संघर्ष किया और समाज में सम्मान प्राप्त करने के लिए कई कदम उठाए। इस संघर्ष और संघर्ष के हिस्से के रूप में किन्नर अखाड़े की स्थापना की गई। किन्त्रर वर्ग के उत्थान और समाज में पर्याप्त सम्मान दिलाने के उद्देश्य को चरितार्थ करने के लिए किन्नर अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी प्रयासरत है।
लेखक परिचय
प्रोफेसर विवेकानंद तिवारी धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं राजनीतिक विषयों के विद्वान हैं। तिवारी टोला, भभुआ, कैमूर (बिहार) में जन्मे, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से शिक्षित प्रो० तिवारी की १५० से ज्यादा पुस्तकें और २५०से ज्यादा शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। अनेक संस्थाओं से प्रो. तिवारी को प्राप्त सम्मानो में 'भारत-भारती सम्मान', 'मालवीय शिक्षा सम्मान', 'राष्ट्र गौरव सम्मान', 'यू०पी० गौरव सम्मान', 'शारदा शताब्दी सम्मान' एवं 'महाशक्ति सम्मान' विशेष उल्लेखनीय हैं। सम्प्रति आप अम्बेडकर पीठ (हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला) के अध्यक्ष है।
पुरोवाक्
वर्ष 2019... प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर हुआ कुंभ एक नए अध्याय का साक्षी बना। यह पहला अवसर था जब यहां पहली बार किन्नर अखाड़े ने पेशवाई जुलूस निकाला। पेशवाई जुलूस निकाल कर किन्नर अखाड़े ने इतिहास रच दिया था। कुंभ में ऐसा पहली बार हुआ था, जब 13 की जगह 14 अखाड़ों को पेशवाई का अधिकार मिला। चौदहवें अखाड़े के रूप में किन्नर अखाड़े को शामिल किया गया था। बहुचरा माता किन्नर समुदाय की आध्यात्मिक देवी हैं। किन्नर अखाड़ा हिंदू परंपरा में उत्पत्ति का दावा करता है। 2019 कुंभ मेला पहला मेला था जहां किन्नर समुदाय ने एक अखाड़े के रूप में भाग लिया था। 2019 में कुंभ मेले में अखाड़े ने नाटक, संगीत, नृत्य और पेंटिंग सहित विभिन्न कलाओं को प्रस्तुत किया था।