संसार में जितने भी कलह-क्लेश हैं, उनका मूल कारण किसी-न-किसी दिव्य गुण ही का अभाव है। एक मनुष्य और दूसरे मनुष्य में जो अन्तर है, वह भी किसी-न-किसी दिव्य गुण ही की कमी के कारण से है। अतः अवगुणों एवं दुर्गुणों को छोड़ने तथा गुणों को धारण करने के लिए प्रेरित करना ही संसार के सभी दर्शनों एवं धर्म-ग्रन्थों का लक्ष्य है।
सभी दिव्य गुणों के अतुल भण्डार तो भगवान स्वयं ही हैं। वे ही धर्म-ग्लानि के समय अवतरित होकर आसुरी लक्षणों को छोड़ने तथा दैवी सम्पदा को धारण करने के लिए मार्ग-प्रदर्शना देते हैं।
जो मनुष्य भगवान की मूर्ति मानते हैं, वे जन्म-जन्मान्तर भक्ति-भाव से उस पर फूल चढ़ाते हैं और जो भगवान की कोई प्रतिमा नहीं मानते वे वचनों द्वारा भगवान को श्रद्धा रूप पुष्प अर्पित करते हैं। परन्तु जब भगवान स्वयं अवतरित होते हैं तो वे भक्तों को दिव्य गुणों का गुलदस्ता स्नेह-भेंट के रूप में देते हैं।
वर्तमान समय दिव्य गुणों के भण्डारी परमपिता परमात्मा ने प्रजापिता ब्रह्मा के श्री-मुख से दिव्य गुणों के बारे में जो मार्ग-प्रदर्शना दी है, उसी के आधार पर यह पुस्तक लिखी गई है। इसलिए इसका नाम 'दिव्य गुणों का गुलदस्ता' रखा गया है। इसमें प्रभु के स्नेह की सुगन्धि है।
इसे आम बोलचाल की भाषा में लिखा गया है ताकि जिन्हें भाषा का अधिक ज्ञान नहीं हैं, वे भी इससे लाभान्वित हो सकें ।
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