सम्पूर्णानन्द भारतीय राजनीति के उन प्रमुख नेताओं में से एक थे, जिन्होंने युवावस्था में ही राजनीति में प्रवेश लिया और अंतिम समय तक भारत भूमि की सेवा हेतु तत्पर रहे। समाजहित को उन्होंने सदैव सर्वोपरि स्थान दिया और देश तथा जनसाधारण की समस्याओं का निःस्वार्थ समाधान पूरी निष्पक्षता, निर्भीकता और बुद्धिमता से किया।
सम्पूर्णानन्द के विषय में छुट-पुट विवरण कई स्थानों पर मिलते हैं, परन्तु वह उनके जीवन व गतिविधियों का एक मिला-जुला सा संक्षिप्त परिचय ही दे पाते हैं, अतः लेखिका ने प्रस्तुत शोध प्रबन्ध में उनके बहुआयामी व्यक्तित्व एवं कृतित्व का एक विशेष पक्ष अर्थात् राजनीति में उनकी भूमिका को उजागर करने का प्रयास किया है। प्रस्तुत ग्रंथ में सम्पूर्ण भारत की राजनीतिक व सामाजिक परिस्थितियों का संदर्भ लेते हुए उनके मुख्य कार्यक्षेत्र मुख्यतया उत्तर प्रदेश व राजस्थान में उनकी विभिन्न गतिविधियों का ब्यौरा प्रस्तुत किया गया है। डॉ० सम्पूर्णानन्द ने उत्तर प्रदेश में काफी समय तक मंत्री व मुख्यमंत्री पदों का कार्यभार संभाला तथा उन्होंने राजस्थान में राज्यपाल होने का दायित्व निभाया। इन पदों पर रहने के अतिरिक्त राजनीति में उनकी अन्य विभिन्न गतिविधियों को भी जानने का प्रयास किया गया है। प्रस्तुत ग्रंथ में उनके समाज सुधार के कृतित्व जो कि जनसाधारण से जुड़े थे का भी उल्लेख किया गया है क्योंकि यह किसी भी देश की राजनैतिक गतिविधियों का आधार होती है।
प्रस्तुत ग्रन्थ को छः अध्यायों में विभक्त किया गया है। प्रथम अध्याय 'पृष्ठभूमि' है जिसमें समकालीन राजनैतिक आर्थिक व सामाजिक स्थितियों का परिचय देने का प्रयास किया गया है। द्वितीय अध्याय में सम्पूर्णानन्द का जीवन वृतान्त है जिसमें डॉ० सम्पूर्णानन्द का संक्षिप्त जीवन परिचय प्रस्तुत किया गया है। तृतीय अध्याय 'पराधीन भारत में सम्पूर्णानन्द की राजनीतिक गतिविधियाँ' दो भागों पूर्व मंत्रित्व काल व मंत्रित्व काल में विभक्त है।
प्रस्तुत अध्याय में तत्कालीन परिस्थितियों व उनमें सम्पूर्णानन्द की भूमिका की चर्चा की गयी है, जबकि भारत परतंत्रता की जंजीरों से जकड़ा हुआ था और स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु संपूर्ण देश में जनव्यापक आंदोलन हो रहे थे। चतुर्थ अध्याय 'स्वाधीन भारत में सम्पूर्णानन्द की राजनीतिक गतिविधियाँ' तीन भागों में विभक्त है। प्रथम भाग में मंत्रित्व काल (1949-1954) की गतिविधियों की चर्चा है जबकि दूसरे व तीसरे भाग में क्रमशः मुख्य मंत्रित्वकाल (1954-1960) राज्यपाल काल (1962-1969) में किये गये प्रमुख कार्यों का उल्लेख है। प्रस्तुत अध्याय में स्वाधीन भारत में राष्ट्र निर्माण के क्षेत्र में सम्पूर्णानन्द के योगदान का विश्लेषण है। पंचम अध्याय 'समाज निर्माण में सम्पूर्णानन्द का योगदान' है जिसमें समाज निर्माण के प्रति सम्पूर्णानन्द के विचार, दर्शन एवं कृतित्वों का उल्लेख है। अंत में उपरोक्त विषयों के अध्ययन व विश्लेषण के पश्चात् उसका संक्षेप में उपसंहार प्रस्तुत किया गया है।
प्रस्तुत विषय में संबंधित सामग्री संकलन हेतु विभिन्न प्राथमिक व द्वितीयक स्रोतों की मदद ली गयी जिनमें तत्कालीन पत्र पत्रिकाओं में छपे लेखों, विधान सभा की कार्यवाही इत्यादि के अतिरिक्त सम्पूर्णानन्द के निकटतस्थ व्यक्तियों जिनमें उनके शिष्य लीलाधर शर्मा पर्वतीय, उनके मित्र कैलाश नाथ मिश्र से लिये गये साक्षात्कार प्रमुख हैं। परिवार के निकटतम् सदस्यों जिनमें पुत्रवधू माधुरी शामिल हैं से विषय संबंधी चर्चा के आधार पर भी कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी प्राप्त की गई है।
शोधकर्जी ने प्रस्तुत शोध ग्रंथ हेतु विभिन्न पुस्तकालयों में उपलब्ध सामग्री का उपयोग किया। उत्तर प्रदेश राजकीय अभिलेखागार, लखनऊ, काशी विद्यापीठ लाइब्रेरी वाराणसी, नागरी प्रचारिणी सभा लाइब्रेरी वाराणसी, भारतीय लोक प्रशासन संस्थान, नई दिल्ली, नेहरू स्मारक संग्रहालय, नई दिल्ली, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय लाइब्रेरी वाराणसी, सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग, उ०प्र० का पुस्तकालय, अमीरूद्दौला पब्लिक लाइब्रेरी लखनऊ, टैगोर लाइब्रेरी, लखनऊ विश्वविद्यालय, लाला लाजपत राय लाइब्रेरी लखनऊ, विधान सभा पुस्तकालय उ०प्र० मुख्य हैं।
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