अपने प्रारम्भिक वर्षों में जब मैं पूर्व दिशा की यात्रा पर था, तब मुझे ब्राह्ममणों के एक ऐसे समुदाय से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जो एक ऐसी अलौकिक सिद्धि का ज्ञाता था, जिसे वह अपनी धार्मिक शिक्षाओं की ही भांति पवित्र मानता था। अन्य ज्ञान के साथ-साथ उस समुदाय के लोगों ने मुझे अंकों के रहस्यमय महत्त्व का ज्ञान भी करवाया, उन अंकों का मानव जीवन से क्या संबंध है यह भी बताया, जो कि आने वाले वर्षों में न केवल अनुभव के आधार पर सच सिद्ध हुआ, बल्कि मेरे इस प्रयास को भी गति दी कि मैं इस ज्ञान को ऐसे व्यावहारिक ज्ञान में परिवर्तित कर दूं, जिससे कि अन्य लोग न केवल स्वयं लाभ उठा सकें, बल्कि अपने आसपास के लोगों को भी लाभान्वित कर सकें।
हमें यह सदा याद रखना चाहिए कि वास्तव में हिन्दुओं ने ही प्रकृति के नियमों की खोज की और प्रारम्भिक वर्षों में वे ही इनके ज्ञाता भी थे, किन्तु अपने शिष्यों को यह ज्ञान देते समय उनका प्रयास यही रहा कि इसकी मुख्य बातें कहीं साधारण व्यक्ति तक न पहुंच जाएं। परिणामतः कुछ प्रश्नों की कुंजी ही कहीं खो गई और जो सत्य प्राप्त हुए थे, वे सब अन्धविश्वास और छल-कपट की धूल में गुम होकर रह गए। हम आशा कर सकते हैं कि जब कोई उपयुक्त समय आने पर प्रकृति के इस ज्ञान की ओर पुनः ध्यान देगा तो यह ज्ञान समय के साथ पुनः जीवित होगा।
इन भारतीयों के अतिरिक्त प्राचीन काल के मिस्रवासी और बैबी-लोनिया वाले भी अंकों के रहस्यमय अर्थ के ज्ञाता थे। इन्हें यह ज्ञान प्राप्त था कि इन्हें काल-विशेष और मानव जीवन के संदर्भ में किस प्रकार लागू किया जा सकता है। हिन्दुओं ने ही सम्पात के सिद्धान्त (जिसके अनुसार दिन और रात का समय-मान एकदम बराबर होता है) की भी खोज की थी और यह गणना भी की थी कि ऐसी स्थिति प्रति 25,827 वर्ष बाद आती है और इस बात को बाद में आधुनिक विज्ञान ने सैकड़ों वर्षों तक परिश्रम के बाद सच पाया।
यहां उन सभी कारणों व उदाहरणों की विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराना असम्भव है, जिससे कि यह बात सत्य प्रमाणित हो सके कि अंकों में छिपा हुआ रहस्य विश्वसनीय है। यहां यदि मैं यह बताना और सिद्ध करना चाहूं कि अंक 7 अनेक युगों से रहस्यपूर्ण अंक माना जाता है और यह अलौकिक सम्बन्धों की ओर इशारा करता है और 9 का अंक अन्तिम और सम्पूर्णता का द्योतक है जिस पर कि हमारी सब प्रकार की भौतिक गणनाएं निर्भर हैं, तो मेरे पाठकों को इसे जानने में अवश्य दिलचस्पी होगी। किन्तु उथले ज्ञान का ज्ञाता केवल यही मानेगा कि अंक 9 के आगे सभी अंक प्रथम 8 तक के अंक की ही मात्र पुनरावृत्ति हैं। इसका एक सरल उदाहरण देना ही पर्याप्त होगा। 10 का अंक ही लें, इसमें शून्य कोई अंक नहीं है, अतः वह अंक एक की ही पुनरावृत्ति है। अंक 11 यदि हम इस अलौकिक ज्ञान के ज्ञाताओं के अनुसार इसे स्वाभाविक रूप से अर्थात् बाएं से दाएं की ओर जोड़ें तो पुनः 2 का अंक प्राप्त होगा। 12 से 3, 13 से 4 इसी प्रकार 19 तक यही क्रम चलता रहेगा जो पुनः 9 और 1 जोड़ने पर 10 होगा और पुनः एक का अंक प्राप्त होगा। 20 का अंक 2 का द्योतक है। इस प्रकार अनन्त संख्याओं तक यही क्रम विद्यमान है। यौगिक संख्याओं का रहस्यमय प्रतीकस्वरूप, जो दस के अंक से प्रारम्भ होता है, मैं बाद में समझाऊंगा।
इस प्रकार हम यह पाएंगे कि अंकों के भौतिक रूप में एक से नौ तक के अंक ही मूल अंक हैं, जिन पर सब कुछ आधारित है ठीक उसी प्रकार जैसे संगीत के सात मूल सुर होते हैं और वे सात ही मूल रंग होते हैं, जिन्हें मिलाकर नाना प्रकार के अन्य रंग बनते हैं।
इस अलौकिक दर्शन के सर्वाधिक प्राचीन नियमों में हमें एक यह नियम मिलेगा, कि केवल सात का अंक ही ऐसा अंक है, जो उस अनन्त अंक को विभाजित कर सकता है और जब तक अनन्त विद्यमान रहता है तब तक यह अंक भी बना रहता है और इसे जोड़ने पर स्वयं 9 का अंक प्राप्त होता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि वह मूल अंक बनाता है, जिससे सभी भौतिक गणनाएं की जाती हैं, जिस पर मानव जीवन और मनुष्य के विचारों का समूचा भवन खड़ा है।
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