भूमिका
शिकागो विश्वविद्यालय में National Endowment for Humanities नामक संस्था के सहयोग से एक बहुत बड़ी योजना कई साल पहले बनी थी। इस योजना का उद्देश्य हिन्दुस्तान की प्रमुख भाषाओं की साहित्यिक संस्कृति, साहित्यिक और सांस्कृतिक इतिहास से उनके सम्वन्धों, उनके आपसी सम्पकों और साहित्य के बारे में उन भाषाओं में प्रचलित अवधारणाओं का अध्ययन करना था, क्योंकि हिन्दुस्तान ही नहीं, पश्चिम में भी कोई विस्तृत और व्यापक काम इस विषय पर नहीं हुआ है। प्राचीन और आधुनिक हिन्दुस्तान में साहित्य और भाषा और सत्ता में किस प्रकार के सम्बन्ध अस्तित्व में आए ? कोई भाषा 'साहित्यिक भाषा' किस तरह और कब बनती है? किसी भाषा में साहित्य-रचना करनेवालों और साहित्य को बरतने वालों के बीच जो सिलसिले होते हैं, क्या उनकी विशेषता केवल शक्ति पर या केवल लेन-देन के व्यवहार पर आधारित होती है, या कोई आदर्श सभ्यता भी उस पर प्रभाव डालती है ?
इस योजना को Literary cultures in Indian History का नाम दिया गया, और प्राचीन-आधुनिक तमाम बड़ी हिन्दुस्तानी भाषाओं के विशेषज्ञ इकट्ठा किए गए, हर एक ने अपनी विसात भर बहुत अच्छे निबन्ध लिखे और दूसरों के विषयों पर अपनी राय भी दी। हर एक निबन्ध का बहुत ही बारीक और निश्चित आलोचना के बाद मूल्यांकन किया गया। बहस और प्रश्नोत्तर की दृष्टि से हर निबन्ध एक से अधिक बार लिखा गया। प्रस्ताव यह है कि इन निबन्धों को एक या दो भाग में छापा जाए। ये निबन्ध अब अंग्रेजी में उपलब्ध हैं। शिकागो विश्वविद्यालय में संस्कृत के प्रोफेसर शेलडन पॉलक (Sheldon Pollock) इस पूरे प्रोग्राम के निर्देशक (Director) और संस्कृत-साहित्य से सम्बन्धित निबन्धों के लेखक भी हैं।
मेरे जिम्मे Early Urdu पर लेख लिखने का काम सौंपा गया था। उर्दू हिन्दी के सम्बन्धों को सुलझाए बिना Early Urdu का पद अर्थहीन है। अतः मैंने अपनी बात आधुनिक हिन्दी के आरम्भ और उसकी छुपी (और प्रत्यक्ष) राजनीति और उर्दू साहित्यिक संस्कृति पर उसके प्रभाव से शुरू की। इसके बाद मैं इस प्रश्न से उलझा कि उर्दू भाषा यद्यपि दिल्ली के आस-पास पैदा हुई, लेकिन इसमें साहित्य की पैदावार आरम्भ में गुजरात और दकन में क्यों हुई? फिर गुजरात और दकन में सैद्धान्तिक आलोचना और काव्यशास्त्र का उदय तथा इस सिलसिले में अमीर खुसरो और संस्कृत के केन्द्रीय रोल पर भी प्रकाश डाला गया। इसके बाद मैंने निम्नलिखित विषयों की छानबीन की दिल्ली का साहित्यिक परिप्रेक्ष्य पर देर से प्रकट होना, लेकिन दिल्ली के साहित्यिक साम्राज्यवादी स्वभाव के कारण गैर दिल्ली के साहित्यकारों और 'बाहरवालों' का उर्दू की प्रामाणिक सूची (Canon) से बाहर रहना, और फिर अठारहवीं सदी की दिल्ली में नयी साहित्यिक संस्कृति और काव्यशास्त्र का उदय ।
दिल्ली में 'इस्लाहे जबान' (भाषा की शुद्धता) की 'मुहिम' और 'ईहाम' (अन्योक्ति) के आन्दोलन की वास्तविकता क्या है? उस्तादी शागिर्दी का इदारा दिल्ली के अलावा कहीं और क्यों न वजूद में आया? इन प्रश्नों के अलावा 'दिल्ली स्कूल' और 'लखनऊ स्कूल' पर भी इस लेख में विचार प्रकट किया गया है।
कोई तीन-चार साल की मेहनत के नतीजे में मेरा लेख बढ़कर एक पूरी किताब बन गया। इसका संक्षिप्त रूप शेलडन पॉलक की सम्पादित पुस्तक में छप चुका है। मूल अंग्रेजी पुस्तक और उसका उर्दू अनुवाद भी छप चुका है। अब यह हिन्दी अनुवाद छप रहा है।
मैं अनुवादक डॉ. रहील सिद्दीक़ी और डॉ. गोविन्द प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और राजकमल प्रकाशन का भी ममनून हूँ कि उन्होंने ये किताब छापी।
जमीला ने हस्व-मामूल मेरे हर काम को अपनी तवज्जो से आसान बनाया, लेकिन वहाँ का मुआमला दरदिल है।
पुस्तक परिचय
उर्दू भाषा की उत्पत्ति दिल्ली के आसपास हुई लेकिन आरम्भ में इसमें साहित्य की पैदावार गुजरात और दकन में हुई। ऐसा क्यों हुआ, इस पर इस पुस्तक में प्रकाश डाला गया है। फिर गुजरात और दकन में सैद्धान्तिक आलोचना और 'काव्यशास्त्र के उदय तथा इस सिलसिले में अमीर खुसरो और संस्कृत की केन्द्रीय भूमिका को भी इसमें रेखांकित किया गया है।
इसके अलावा इस पुस्तक में जिन विषयों की जाँच-पड़ताल की गई है, वे हैं: दिल्ली का साहित्यिक परिप्रेक्ष्य पर देर से प्रकट होना, दिल्ली के साहित्यिक साम्राज्यवादी स्वभाव के कारण गैर दिल्ली और बाहरी साहित्यकारों का उर्दू की प्रामाणिक सूची से बाहर रहना और अठारहवीं सदी की दिल्ली में नई साहित्यिक संस्कृति और काव्यशास्त्र का उदय।
दिल्ली में भाषा की शुद्धता की मुहिम और अन्योक्ति (ईहाम) के आन्दोलनों की वास्तविकता क्या है, उस्तादी/शागिर्दी का इदारा दिल्ली के अलावा कहीं और क्यों न वजूद में आया? इन प्रश्नों के अलावा 'दिल्ली स्कूल' और 'लखनऊ स्कूल' पर भी इसमें विचार किया गया है।
इसका संक्षिप्त रूप शेलडन पॉलक की सम्पादित पुस्तक में प्रकाशित हो चुका है। हमें उम्मीद है कि हिन्दी के पाठकों को यह पुस्तक बेहद उपयोगी और सूचनापरक लगेगी।
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