मैं लेखन में रूपक एवं अन्य अलंकारों का प्रयोग करना जानता हूँ। पशुओं को चराने के लिए चरागाह में किस तरह ले जाते हैं वह भी मुझे आता है। मुझे इसका भी थोड़ा बहुत अनुभव है कि सोडा-वाटर की दुकान कैसे चलाई जाती है। मैंने थोड़े समय के लिए पत्रकार के रूप में भी काम किया है। परन्तु अब पिछले बीस वर्षों से अधिकांश रूप से मैं एक लेखक ही रहा हूँ। लेखन ही मेरा असली पेशा है। जब मैं बहुत छोटा था, मुझे पता चल गया था कि मैं लिख सकता हूँ। लेखन ही है जिसने सदैव मुझमें वास किया है और मुझे सबके साथ बाँटा है। इसने सदैव मेरा साथ दिया है, मार्ग दिखलाया है और मुझे इस योग्य बनाया है कि मैं अपनी ओर देख सकूँ। लेखन के द्वारा ही मुझे यह आनन्द प्राप्त हुआ है कि भविष्य की ओर देख सकूँ और भूत की ओर भी। दिन-रात और बार-बार वसन्त की कोयल की तरह लेखन ने मुझे आवाज़ प्रदान की है और ऐसा कभी नहीं हुआ कि मैं लेखन में संलग्न नहीं रहा।
यह सही है कि सांसारिक जीवन के बोझ तले मैं यदाकदा लेखन नहीं कर सका, परन्तु उन स्थितियों में भी मेरे मस्तिष्क में भिन्न-भिन्न प्रकार का चिन्तन और कल्पनाएँ निरन्तर उभरती रही हैं।
मैं नहीं जानता कि मनन के प्रवाह को रोकने या उसको काबू में रख लेने की क्षमता मुझमें है या नहीं, परन्तु मैं इतना अवश्य जानता हूँ कि उन पर लगाम लगाने की इच्छा मैंने कभी महसूस नहीं की है। न जाने कितने ख़याल मस्तिष्क से भाग निकले और कभी वापस न आये। परन्तु ऐसा भी न जाने कितना चिन्तन है जो लगता था कि दूर चला गया है, परन्तु वास्तव में वह मेरे मानस में ही दफन होकर पड़ा हुआ है और काग़ज़ पर कलम रखते ही प्रगट हो जायेगा। लेखन मेरे लिए एक मानसिक आदत बन चुकी है और कविता मेरा उत्कृष्ट निमित्त है। सही या गलत वह मेरे लिए मेरी भावुकता का और मनोभावों का निकास है।
जीवन में किसी भी चीज़ से पारित होने के लिए कविता मेरी वाहक है। कोई अन्तर नहीं पड़ता कि स्थिति कितनी तनावपूर्ण है, केवल एक शब्द, जो मेरे मानस में ढल रहा होता है, उसके कगार पर लटका हुआ मैं, उस स्थिति को झेल ले जाता हूँ। कभी-कभी मेरी यह स्वयं से बातें करने की आदत, विशेषकर उस समय जब मेरी विचार-श्रृंखला शब्दों में ढल रही होती है, वह सरलता के साथ यूँ ही टपक पड़ती है। मुझे उस पर मलाल आता है। प्रारम्भ के एकाकी शब्द श्रृंखला में गुँथ जाते हैं। इस तरह से अगर देखा जाये तो हर उस चिन्तन को जो मेरे मस्तिष्क में कुलबुला रहा होता है और शिखर पर आना चाहता है, मेरी मानसिक आदत उन्हें सँभालकर रखने के लिए एक दैवी वरदान है।
परन्तु मेरे जीवन में एक क्षण ऐसा आया जब इस वरदान को आघात लगा और वह मेरे लिए एक शाप बन गया। मुझे लगा कि सब कुछ जैसे समाप्त हो गया और मैं अपने लेखन का दाह-संस्कार कर अब आगे का जीवन जीने के लिए कुछ और कर सकूँगा। परन्तु कुछ और करने में कामयाबी हासिल करना सम्भव न था। मुझे महसूस हुआ कि मैं केवल एक चलती-फिरती लाश था। मैं क्या करता। मैं अपनी आवाज़ खो चुका था। मुझे लगा कि कुछ दिनों में यह विषाद अलोप हो जायेगा। परन्तु ऐसा नहीं हुआ। मुझे ऐसा लगता था कि जैसे मैं अपने हाथों की सारी शक्ति खो चुका हूँ। कब्र से उठकर मिट्टी को साथ लिए मेरी मानसिक आदत धीरे-धीरे वापस लौट आयी। शायद मैं उतना प्रबल न था कि अपनी आवाज़ को पूरी तरह मार सकूँ। अतः वह एक गर्जना के साथ उठ खड़ी हुई और मुझे अपने अधीन कर लिया और फिर वह हर दिशा में रिसती चली गई जैसे एक जल-स्रोत, जिसको रोकना सम्भव न हो।
इस सुअवसर का लाभ उठाकर मैंने कलम और कागज़ फिर से हाथ में थाम लिए। शब्द तेज़ प्रवाह के साथ बाहर आते चले गये, इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था। कविता एक सर्वोत्तम औषधि है, संजीव पर्वत से आयी अनूठी जड़ी-बूटी। यह कविता ही थी जिसने मुझे पुनर्जीवित किया।
पिछले डेढ़ वर्ष जब मैं चैन्नई में था, मेरी मित्रता श्रीनिवास नटराजन से हुई जो एक बहुत ही अच्छे कलाकार और पेंटर हैं। उस अवधि के दौरान उन्होंने अपना उपन्यास विदम्बनम मेरे लिए ही लिखा था। जिस दिन कवि आत्मानम् का श्रद्धांजलि दिवस था उसके दूसरे दिन मैंने कविता कयामत का दिन (6) जुलाई 2016) जो इस संग्रह में सम्मिलित है, लिखी थी। उस दिन हम कुछ मित्रजन मरीना बीच पर इकट्ठे हुए थे। श्रीनिवास ने मुझसे अनुरोध किया कि मैं एक और कविता लिखूँ, कयामत का दिन के बाद की एक नयी कविता। मैंने वैसा ही किया। वह कविता अब उनके उपन्यास का अंग है।
श्रीनिवास नटराजन ने ही कोषैयिन पडालकल का, जिसकी यह पुस्तक हिन्दी अनुवाद है, मुखपृष्ठ भी डिजाइन किया।
मैंने अपने पिता को, जो पढ़ना-लिखना नहीं जानते थे, दस्तखत करना सिखाया था। मेरे पास उनका एक भी फोटो नहीं है बस उनके दस्तखत हैं जो उन्होंने मेरी दसवीं कक्षा की रजिस्ट्री पर किये थे। उन दस्तखतों को देखता हूँ तो मुझे ऐसा लगता है जैसेकि मैं उन्हीं को देख रहा हूँ। श्रीनिवास ने उन हस्ताक्षर को बहुत ही सुन्दर ढंग से फिर से बनाया और उसे तमिल संस्करण के मुखपृष्ठ पर जड़ा। मैं उनकी इस सृजनता के लिए उनका आभारी हूँ।
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