'राम कथा सार' में मेहरोत्रा जी ने बालकांड में प्रभु के अवतार के आधार से प्रारंभ कर राम कथा की लगभग सभी महत्वपूर्ण घटनाओं को आत्मसात कर क्रमशः अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है। वन गमन के प्रसंग में निषाद राज से मिलन के पश्चात मुनि भारद्वाज के आश्रम में याज्ञवल्क्य एवं भारद्वाज के संवाद को अत्यंत रोचक ढंग से वर्णित किया गया है।
भारद्वाज आश्रम से चित्रकूट तक की यात्रा, मार्ग में आम जनता का राम लक्ष्मण एवं सीता को देखकर आश्चर्यचकित होना तथा मुग्ध होना, भरत का वापस अयोध्या आने पर पिता की मृत्यु एवं प्रिय भ्राता के वन गमन का समाचार सुनकर दुखी होना, गुरुजनों एवं मंत्रीगण तथा माता को लेकर भाई राम को मनाने के लिए चित्रकूट की यात्रा तथा यात्रा के दौरान पुनः निषादराज से मिलन एवं प्रभु राम द्वारा विश्राम किए गए स्थलों को प्रणाम करते हुए चित्रकूट की यात्रा का सजीव एवं कारुणिक वर्णन करने का प्रयास कवि द्वारा किया गया है।
वनप्रवास के दौरान सीता जी का हरण, लंका जाकर हनुमान जी द्वारा सीता की खोज, तत्पश्चात राम-रावण युद्ध, श्री राम का 14 वर्ष व्यतीत करने के पश्चात अयोध्या वापसी एवं अयोध्या के राज सिंहासन पर विराजमान होने तक का संपूर्ण वर्णन अत्यंत मार्मिक ढंग से कवि द्वारा किया गया है। कविता की भाषा को आमजन के लिए ग्राह्य होने के दृष्टिकोण से अत्यंत सरल एवं सहज रखा गया है। सहजता एवं सरलता बनाए रखने के लिए कहीं-कहीं छंद एवं लय में व्यतिक्रम अवश्य हुआ है, किंतु कुल मिलाकर यह रचना रामायण की सभी घटनाओं को सार रूप में क्रमशः अभिव्यक्त करने का एक ईमानदार प्रयास है। मेहरोत्रा जी की इस काव्य रचना के लिए मेरी बहुत शुभकामनाएँ।
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