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प्रेमचन्द, गोर्की एवं लू शुन का कथा साहित्य- Fiction Literature of Premchand, Gorky and Lu Xun

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Specifications
Publisher: Bharatiya Jnanpith, New Delhi
Author Fanish Singh
Language: Hindi
Pages: 207
Cover: HARDCOVER
8.5x5.5 inch
Weight 330 gm
Edition: 2019
ISBN: 9789387919136
HBS728
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Book Description
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पुस्तक परिचय
कहानी अपने लघु कलेवर में तयुगीन समाज का जीता-जागता प्रतिबिम्ब तो है ही एक जीवन्त उपदेष्टा है जो एक मोड़ देकर सत्य पथ पर अग्रसारित करती है। जहाँ तक हिन्दी कहानी साहित्य को प्रेमचन्द की देन है, वह कहानियों की विशाल निधि तथा कहानियों में निहित सच्चाई, आदर्श, यथार्थ और गहराई को देखते हुए मेरी समझ में वे अधिक जीवन्त और खरे दृष्टिगत होते हैं। लगभग यही बात गोर्की के विषय में भी कही जा सकती है। लू शुन तो अपनी कहानियों के लिए ही विश्व साहित्य के पटल पर आए। पुस्तक में इन तीनों महान लेखकों की संक्षिप्त तस्वीर प्रस्तुत करने की कोशिश की गई है जिसे साधारण पाठक भी ग्रहण कर सके और इन तीनों लेखकों की सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का आकलन तुलनात्मक ढंग से करने का प्रयत्न किया गया है। तीनों लेखकों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से जिस संघर्ष की शुरुआत की थी वह सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक जीवन की थी। इन लेखकों के यथार्थवाद और समाजवादी यथार्थवाद का जिक्र होना भी आवश्यक था, क्योंकि तीनों पूँजीवादी एवं विदेशी शोषण के शिकार थे।

लेखक परिचय
जन्म : 15 अगस्त, 1941 को ग्राम नरेन्द्रपुर जिला सिवान (बिहार) में। 15 वर्ष की आयु में प्रयाग हिन्दी साहित्य सम्मेलन से 'विशारद' की परीक्षा उत्तीर्ण की। एम.ए. तथा बी.एल. करने के पश्चात अगस्त, 1967 में पटना उच्च न्यायालय में वकालत आरम्भ की। छात्र जीवन से ही हिन्दी साहित्य से अनुराग था। इनके लेख और यात्रा संस्मरण विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। 1983 में मास्को और 1986 में कोपेनहेगन विश्व-शान्ति सम्मेलन में शामिल हुए। भारत सोवियत मैत्री संघ के प्रतिनिधि के रूप में तत्कालीन सोवियत संघ की पाँच बार यात्रा की। 2006 में ऐप्सो के सात सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल के साथ चीन की यात्रा की। वे अब तक छः महाद्वीपों के 75 देशों की यात्रा कर चुके हैं। हाल में इन्होंने दक्षिण पूर्व एशिया पर अपने भ्रमण के पश्चात एक रोचक पुस्तक की रचना की है। गोर्की और प्रेमचन्द के कृतित्व एवं जीवन दृष्टिकोणों की सादृश्यता से दोनों पर शोध कार्य की प्रेरणा ली और इस विषय में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। हिन्दी साहित्य एवं अन्य सामाजिक विषयों पर इनकी 20 रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। भारतीय सांस्कृतिक सम्बद्ध परिषद के सलाहकार समिति के सदस्य। ऐप्सो के बिहार राज्य परिषद के महासचिव। राज्य के अनेक सांस्कृतिक संस्थाओं के पदाधिकारी। कौमी एकता संदेश के सम्पादक।

दो शब्द
कहानी तद्युगीन समाज का इतिहास दर्पण होते हुए भी कोरा इतिहास नहीं है, बल्कि इतिहास से भिन्न है। भूकम्प लेखी यन्त्र जिस प्रकार भूकम्प तरंग को उठती गिरती लकीरों को दर्शाता है, इतिहास उसी प्रकार वीती घटनाओं का लेखा-जोखा मात्र है। कहानी अपने लघु कलेवर में तद्युगीन समाज का जीता-जागता प्रतिबिम्ब तो है ही एक जीवन्त उपदेष्टा है जो एक मोड़ देकर सत्य पथ पर अग्रसारित करती है। प्रेमचन्द आलोचकों की दृष्टि में प्रथमतः उपन्यासकार और द्वितीयतः कहानीकार ठहरते हैं। पर जहाँ तक हिन्दी कहानी साहित्य को प्रेमचन्द की देन है, वह कहानियाँ की विशाल निधि तथा कहानियों में निहित सच्चाई, आदर्श यथार्थ और गहराई को देखते हुए मेरी समझ है कि प्रेमचन्द अधिक जीवन्त और खरे दृष्टिगत होते हैं। लगभग यही बात गोर्की के विषय में भी कही जा सकती है, वैसे आलोचकों के मतों में पूर्ण एकता नहीं है। लू शुन तो अपनी कहानियों के लिए ही विश्व साहित्य के पटल पर आए।

भूमिका
डॉ. फणीश सिंह हिन्दी के जाने माने प्रतिष्ठित लेखक हैं। वे लगातार सृजन कर्म में लगे रहते हैं। यह बड़ी बात है। उन्होंने साहित्य क्षेत्र में तीन तरह के काम किये हैं-एक तो यह कि प्रसिद्ध विद्वानों और नेताओं के भाषणों का संकलन किया है। इस तरह के एक सौ भाषणों का संग्रह बहुत ही ज्ञानवर्द्धक और उपयोगी है। आज की पीढ़ी अपनी पूर्वज पीढ़ी के समय की परिस्थिति, राजनीति और संस्कृति को जान सकती है। दूसरा काम यह है कि साहित्य से सम्बन्धित विषयों पर भी उन्होंने जम के लिखा है। इस तरह का काम करने वाले हिन्दी में बहुत नहीं हैं। डॉ. फणीश सिंह इस तरह के विरल लेखक हैं। उनका एक और काम है सांस्कृतिक इतिहास लिखने का। दक्षिण पूर्व एशियाई देशों की संस्कृति और सांस्कृतिक सम्बन्ध पर उन्होंने जो लिखा है वह बहुत महत्त्वपूर्ण है। उल्लेखनीय है कि उन्होंने दक्षिण पूर्व एशियाई देशों की यात्रा भी की है भारत के साथ उनके सम्बन्धों को अनुभव भी किया है। यात्रा तो उन्होंने पूरी दुनिया की की है। यात्रा के अनुभवों का आना बाकी है। प्रेमचन्द एवं गोर्की के साहित्य का डॉ. फणीश सिंह ने विशेष अध्ययन किया है। अभी मेरे सामने उनकी ताजा और प्रकाशनाधीन पुस्तक 'प्रेमचन्द, गोर्की एवं लू शुन का कथा साहित्य' है। इस पुस्तक में लेखक ने पहले तो तीनों की कहानियों का तुलनात्मक अध्ययन किया है और फिर उनकी कहानियों का अलग-अलग विश्लेषण प्रस्तुत किया है। एक अध्याय में लेखकीय परिवेश की भी व्याख्या की गयी है। परिवेश को समझने से लेखक को समझने में आसानी होती है इन कारणों से यह एक पठनीय और संग्रहणीय पुस्तक हो गयी है।

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