पुस्तक परिचय
गाँधी और दलित भारत-जागरण महात्मा गाँधी को केन्द्र में रखकर विभिन्न ज्वलन्त विषयों पर चिन्तन-लेखन करनेवाले श्रीभगवान सिंह की एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक है। इससे पहले गाँधी और हिन्दी राष्ट्रीय जागरण शीर्षक से उनकी एक पुस्तक प्रकाशित और चर्चित हो चुकी है।
श्रीभगवान सिंह रूढ़ हो चुकी परिभाषाओं, अवधारणाओं का पुनःपाठ करते हुए उनमें निहित सार्थक मन्तव्यों को रेखांकित करते रहे हैं। ऐसी स्थिति में उनके द्वारा प्रतिपादित विषय स्वतः नवीन निष्कर्षों तक पहुँच जाते हैं। प्रस्तुत कृति 'गाँधी और दलित भारत-जागरण' में लेखक ने दलित शब्द की परिधि व्यापक करते हुए पराधीन अर्थात् दलित भारत के जागरण में गाँधी और अम्बेडकर की भूमिका पर सांगोपांग विचार किया है। अस्पृश्यता निवारण-जागरण, स्त्री-जागरण अर्थात् स्त्री सशक्तीकरण का उभार, मातृभाषा एवं राष्ट्रभाषा-जागरण एवं स्वराज्य-जागरण अध्यायों के अन्तर्गत लेखक ने गाँधी के विराट योगदान को आधुनिक विमर्शों के बीच ला खड़ा किया है। इस प्रकार व्यापक सामाजिक सन्दर्भों के साथ उन्होंने गाँधी दर्शन का एक ऐसा पुनःपाठ प्रस्तुत किया है जिसमें अनेकानेक वादों-विवादों-संवादों की समीक्षा भी सम्भव हुई है। श्रीभगवान सिंह ने गाँधी वाङ्मय में उपलब्ध मौलिक गाँधी साहित्य को विवेचन का आधार बनाया है, इसलिए पुस्तक की प्रामाणिकता असन्दिग्ध है।
उल्लेखनीय है कि लेखक किसी भी प्रकार की वैचारिक शिविरबद्धता से दूर रहा है। यही कारण है कि उनके लेखन में विचारधारा सम्बन्धी सन्तुलन स्पष्ट दिखाई देता है। प्रवाहपूर्ण भाषा, सुगम शैली, तीक्ष्ण तर्कपद्धति और निर्भान्त निष्कर्षों से युक्त यह विचारोत्तेजक पुस्तक पाठकों को निश्चित रूप से एक नयी दृष्टि प्रदान करेगी।
लेखक परिचय
जन्म : 1 जनवरी 1954, निखतीकलाँ, जिला- सिवान, बिहार।
शिक्षा: पटना विश्वविद्यालय से राजनीतिशास्त्र में एम.ए., जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए., एम.फिल., पी-एच.डी.।
प्रकाशित पुस्तकें शोध एवं आलोचना-हिन्दी साहित्य और नेहरू, आधुनिकता और तुलसीदास, आलोचना के मुक्त वातायन, गाँधी और हिन्दी राष्ट्रीय जागरण।
नाटक - शकुन्तला का द्रोह, यमराज की अदालत, सुकरात मरता नहीं। सम्पादन भाषा विविध सन्दर्भ। रेडिया नाटक-औरत की आवाज, परिधि, रत्ना से राम, बिन पानी सब सून, सुकरात, आँगन के पार (सभी आकाशवाणी, भागलपुर से प्रसारित) ।
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में साहित्यिक समीक्षाएँ एवं * राजनीतिक लेख प्रकाशित ।
सम्प्रति स्नातकोत्तरें हिन्दी विभाग, तिलका माँझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर (बिहार) में अध्यापन।
भूमिका
गाँधीजी पर मेरी यह दूसरी पुस्तक है। पहली पुस्तक 'गाँधी और हिन्दी राष्ट्रीय जागरण' नाम से छप चुकी है। दरअसल, यह पुस्तक लिखते हुए ही मुझे प्रस्तुत पुस्तक के विषय को लेकर दूसरी पुस्तक लिखने की आवश्यकता महसूस हुई।
'गाँधी और हिन्दी राष्ट्रीय जागरण' में मैंने यह दिखाने की कोशिश की है कि गाँधीजी के चिन्तन एवं कर्म का दायरा सिर्फ राजनीतिक-सामाजिक सरोकारों तक सीमित नहीं था, बल्कि वे भाषा एवं साहित्य के प्रति भी काफी जागरूक थे। देश को विदेशी भाषा अँग्रेजी की दासता से मुक्त कराने के लिए उन्होंने विभिन्न प्रान्तों की मातृभाषाओं तथा पूरे राष्ट्र के लिए सम्पर्क भाषा के निमित्त राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी का देशव्यापी प्रचार किया। राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी को स्वीकार करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मानसिकता तैयार करने में, या यूँ कहें, हिन्दी जागरण को पूरे राष्ट्रीय जागरण का एक अभिन्न अंग बनाने में गाँधीजी की अतुलनीय भूमिका रही। साथ ही उन्होंने अपनी सामाजिक-राजनीतिक कार्रवाईयों के प्रचार-प्रसार में साहित्य का भी काफी उपयोग किया। इन दो बातों को केन्द्र में रखकर ही यह पुस्तक लिखी गयी। किन्तु गाँधीजी के अन्य पक्षों की चर्चा इस पुस्तक में न कर पाने का मलाल रह ही गया। प्रस्तुत पुस्तक उस मलाल को दूर करने की दिशा में एक छोटा प्रयास है।
प्रस्तुत पुस्तक का शीर्षक बहुतों को अटपटा लग सकता है। बात या तो भारतीय नवजागरण की होती है या फिर हिन्दी नवजागरण की या दलित-जागरण की।