यह पुस्तक महात्मा गांधी के धर्म-अधर्म, सत्य, सत्यताह, अहिंसा, ईश्वर, आत्मा, शस्त्रवत, आत्मा की आवाज आदि अनेक दार्शनिक शब्दों को उनके गांधी-दर्शन के रूप में परिभाषित करती है और उनके स्वराज्य संघर्ष को राम के संवर्ष से तथा रामकथा के प्रसंगों, संदभों व उपलब्धियों से स-थ-रू कराती है। महात्मा गांधी अपने उद्द्योधन, लेखन ही नहीं अपने व्यक्तिगत जीवन में भी हर समय राम को याद करते रहे और यह पुस्तक गांधी के राममय होने का लेखा जोखा है।
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