लेखक परिचय
गुजरात-राजस्थान सीमा पर स्थित माडली गाँव में 7 मई 1912 को जनमे पन्नालाल पटेल का प्रारम्भिक जीवन काफ़ी अस्त-व्यस्त रहा। विधिवत् शिक्षा केवल आठवीं तक हुई। स्कूल छोड़ने के बाद कुछ वर्षों तक साधु की संगति में गाँव-गाँव भटकते हुए जीवन के भरपूर खट्टे-मीठे अनुभव प्राप्त किये। अपने सहपाठी उमाशंकर जोशी से आकस्मिक भेंट और उनकी प्रेरणा से लेखन में प्रवृत्त हुए। पन्नालाल पटेल पन्नालाल पटेल के साहित्यिक जीवन का प्रारम्भकविताओं से हुआ, लेकिन वे एक कथाकार के रूप में प्रसिद्ध हुए। गुजराती में उनके 28 कहानी-संग्रह प्रकाशित हैं। कहानी के अतिरिक्त उन्हें उपन्यास-लेखन में अद्भुत सफलता मिली। उन्होंने लगभग 30 उपन्यास लिखे। उनमें मलेला जीव (1941) और मानवीनी भवाई (1947) गुजराती साहित्य की सर्वाधिक उल्लेखनीय कृतियाँ मानी जाती हैं। श्री पटेल ने 2 नाटक, आत्मकथा और बाल-साहित्य की कई रचनाओं से भी गुजराती साहित्य को समृद्ध किया है। 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' (1985) से सम्मानित श्री पन्नालाल पटेल का 6 अप्रैल 1989 को देहावसान हो गया।
पुस्तक परिचय
गूँगे सुर बाँसुरी के पन्नालाल पटेल के लेखन में, विशेष करके इनके छोटे-बड़े चरित्रों में ऐसा कुछ है जिसे अव्याख्येय कहना चाहिए। अल्पशिक्षित होना इस लेखक के लिए श्रेयस्कर सिद्ध हुआ। उमाशंकर जी ने 'सापना भारा' एकांकी-संग्रह में उत्तर गुजरात की बोली का पहली बार सफल प्रयोग किया था। एक दिशा खुल गयी थी। साहित्य केवल पण्डितों की प्रशिष्ट भाषा का विषय नहीं, मैं अपनी बोली में भी साहित्य-सर्जन कर सकता हूँ। ज़िन्दा भाषा को एक अपूर्व अर्थ तक पहुँचाने का पुरुषार्थ कर सकता हूँ। सारे उपमान मेरे परिवेश की सृष्टि में ही सुलभहैं! दूसरी दिशा मनुष्यत्व की संकल्पना को लेकर खुल गयी। मनुष्य को संकल्पना में-विभावना में-'कन्सेप्ट' में बाँधकर चरित्र के रूप में आलेखित करती रचनाओं का अपना मूल्य है ही, परन्तु पन्नालाल के कुछ हृद्य चरित्र संकल्पनाओं से मुक्त हैं, उनका अनजानापन, सीधा-सच्चा-सहज रूप स्पृहणीय है।
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