गुजरात एक गौरवशाली प्रदेश है। औद्योगिक दृष्टि से संपन्न होने के साथ-साथ यह प्रदेश सांस्कृतिक चेतना से भी समृद्ध है। इस प्रदेश की भाषा गुजराती अत्यंत श्रुतिमधुर है और उसमें लिखा गया साहित्य भी उच्च कोटि का है। यह उल्लेखनीय है कि इस प्रदेश में धर्माश्रय और राजाश्रय में हिन्दी खूब फूली-फाली है। यहाँ प्राचीन काल से ही हिन्दी की एक प्रशस्त परंपरा विद्यमान रही है और सैकड़ों कवियों ने गुजराती में लिखने के साथ-साथ हिन्दी में भी लिखा है। आज भी गुजरात के अनेक साहित्यकार हिन्दी में उच्च कोटि के साहित्य का सृजन कर रहे हैं।
पश्चिमांचल के इस सर्वाधिक संपन्न प्रदेश ने व्यापार-व्यवसाय और उद्योग-धंधों के लिए भारत के सभी प्रदेश के लोगों को आकर्षित किया है, जिनमें हिन्दी भाषियों की संख्या सर्वाधिक है। यहाँ के औद्योगिक प्रतिष्ठानों, निगमों, बैंकों, प्रशासनिक सेवाओं, स्कूल-कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में बाहर से आकर बसे हिन्दीभाषी पर्याप्त संख्या में हैं। इनमें से कितने ही लोग साहित्य में भी रुचि रखते हैं और हिन्दी में कविता, कहानी, उपन्यास आदि लिखते हैं।
संविधान के द्वारा राजभाषा के रूप में मान्य हो जाने के कारण आधुनिक काल में हिन्दी का हिन्दीतर प्रदेशों में विशेष प्रचार-प्रसार हुआ है। हिन्दी-प्रचार की दृष्टि से भी गुजरात अग्रगण्य है। प्रतिवर्ष पाँच से छह लाख छात्र स्वैच्छिक संस्थाओं के द्वारा ली जानेवाली हिन्दी परीक्षाओं में बैठते हैं। गुजरात के स्कूल-कॉलेजों में हिन्दी में पठन-पाठन का समुचित प्रबंध है। गुजरात में आठ विश्वविद्यालय हैं और आठों में एम.ए., पी-एच.डी. तक हिन्दी का पठन-पाठन हो रहा है। इन विश्वविद्यालयों में लगभग तीन सौ शोधार्थियों को हिन्दी में पी-एच.डी. की उपाधि मिल चुकी है और दो सौ से अधिक शोधार्थी शोध में प्रवृत हैं। इन शोधार्थियों में से अधिकांश शोध करने के साथ-साथ मौलिक साहित्य एवं अनुवाद के द्वारा हिन्दी साहित्य को समृद्ध कर रहे हैं।
इस प्रसंग में यह भी उल्लेखनीय है कि गुजरात राज्य ने अपने स्थापना काल से ही गुजराती के साथ हिन्दी को भी राज्यभाषा के रूप में स्वीकार किया है। भारत भर में गुजरात ही एक ऐसा हिन्दीतर प्रदेश है, जिसने निज भाषा के साथ हिन्दी को भी राज्यभाषा के रूप में मान्य किया है।
उपर्युक्त कारणों से गुजरात सरकार ने इस प्रदेश में हिन्दी भाषा-साहित्य के उन्नयन, प्रोत्साहन एवं प्रचार-प्रसार के लिए हिन्दी साहित्य अकादमी की स्थापना की है। अस्तित्व में आते ही नव निर्मित अकादमी की कार्यकारिणी ने यह निर्णय किया कि गुजरात में रहकर हिन्दी में लिखने वाले विद्यमान रचनाकारों की एक परिचय पुस्तिका प्रकाशित की जाय। मर्यादा यह रखी गई कि केवल उन्हीं रचनाकारों के परिचय पुस्तिका में समाविष्ट किये जाएँ, जिनकी कम-से-कम एक पुस्तक प्रकाशित हो चुकी हो ।
अकादमी ने संपादन का उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य प्रो. भूपतिराम साकरिया को सौंपा। उन्होंने इस कार्य को निश्चित समय में निष्ठा के साथ पूरा किया, इसके लिए मैं उनका आभारी हूँ ।
आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि इस पुस्तक का पहला संस्करण प्रकाशन के एक वर्ष के अंदर ही हाथों-हाथ बिक गया। पुस्तक का यह तृतीय संशोधित-परिवर्द्धित संस्करण आपके हाथों में है।
यद्यपि विद्वान् संपादक ने यह कार्य पूरी सतर्कता और सावधानी से किया है, फिर भी संपर्क के अभाव में कोई परिचय छूट गया हो तो कृपया, हमें सूचित करें । आगामी संस्करण में उसका समावेश किया जा सकेगा ।
आशा है, गुजरात के वर्तमान हिन्दी साहित्यकारों की यह परिचय-पुस्तिका हम सबके लिए उपयोगी सिद्ध होगी ।
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