पुस्तके के बारे में
गुरु नानक (1469-1539) सिख पंथ के प्रवर्तक थे । वे मध्यकालीन भारत के महान् आध्यात्मिक गुरुओं में से थे । उनके जीवन का लक्ष्य यह रहा कि कैसे परस्पर विरोधी सम्प्रदायों के बीच होनेवाले संघर्षो, जिनके चलते भारतीय समाज संत्रस्त था, को समाप्त कर परस्पर सद्भाव कायम किया जा सके । उनका संदेश कर्मकांडों तथा रूढ़ियों से परे उस परम विश्वास के मूल तक पहुँचना था जो परमात्मविवेक का सार-तत्त्व है - एक ऐसी राह, जो जीवन को उदात्त और सौहार्द-भाव से जोड सके, जो दूसरे सभी विश्वासों के प्रति सहिष्णु और दमितों के प्रति करुणापूर्ण बनी रहे तथा न्यायपूर्ण समाज की जोरदार हिमायत करे । गुरु नानक के ये ही आधारभूत सिद्धांत हैं । वे एक पुरोधा के रूप में कर्म-जीवन की संपूर्णता के द्रष्टा और आध्यात्मिकता एवं नैतिकता के हामी थे । वे एक ऐसे निर्दोष समाज के आग्रही थे, जो स्वार्थपूर्ण पुरोहित-प्रपचवाद और ऐहिक दबावों से ग्रस्त न हो सके ।
गुरु नानक की सीख मध्ययुगीन हिन्दी और पंजाबी की भक्ति कविताओं के रूप में सुरक्षित है । इन रचनाओं को विभिन्न राग-रागिनियों के साथ गाया जाता रहा है और ये भारतीय साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं ।
लेखक परिचय
अनुक्रम
1
जीवन ओर शिक्षण
7
2
गुरु नानक की समन्वय साधना
16
3
परब्रह्मा की उदात्त संकल्पना
20
4
प्रमुख रचनाएँ
28
5
भाषा और प्रभाव
33
6
कवि रूप में
37
नैतिक अन्वेषण
40
8
करुणा का संदेश
48
9
सामाजिक विवेक
54
10
देश के प्रति रागात्मक संवेदना
62
11
ईश्वरीय प्रेम की तन्मयता
68
12
योग के बारे में
76
13
आध्यात्मिक उत्कर्ष का साधना-पथ परिशिष्ट : ग्रंथ-सूची
80
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