प्रस्तुत पुस्तक 'हरसिंगार' चयनित लेखों का संकलन है, साहित्यिक लेखों का झरोखा है। लेखों में प्रकाश और प्राणवायु दोनों की उपस्थिति हो, यह प्रयास रहा है। यह लेखों का चारु चयन, पुष्प गुच्छ, गुलदस्ता है जिसमें विभिन्न रंगों के पुष्पों का सौन्दर्य बिखरा है। यह प्रयास कितना अच्छा बन पड़ा है इसका अवलोकन, मूल्यांकन सुधी पाठक ही करेंगे।
"जड़ चेतन गुण दोषमय, विश्व कीन्ह करतार।
संत हंस गुनगहहिं पय परिहड़ि वारि विकार ॥"
यदि विद्यार्थी, सुधी पाठक को कुछ मिल सकेगा तो मैं इसे भगवान् आशुतोष (आशुतोष) का अनुग्रह मानूँगा।
व्योमकेश की कृपा के बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता। तुलसी ने अपने मंगलाचरण में, आत्मनिवेदन में लिखा है
"नाना पुराणा निगमागम सम्मतम् यत् रामायणे निगदितम क्वचिदन्यतोपि 'स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथगाथा भावा निबंध यति मंजुलमातनोति ।'
यही हमारा (मेरा और मेरी धर्मपत्नी प्रोफेसर डाक्टर उमा मिश्र का) आत्म निवेदन है। यही अपनी बात है।
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