प्रस्तुत पुस्तक 'हठ योग विद्या' प्राण विद्या पर लिखी गयी है। वैसे तो नाथ पंथ में हिन्दी तथा संस्कृत में हठयोग पर अनेक पुस्तक रचित हैं जिनमें गुरू गोरख नाथ जी तथा अन्य सिद्धो द्वारा रचित सिद्ध सिद्धान्त पद्धति, गोरक्ष पद्धति, योग बीज, हठयोग प्रदीपिका, गोरखवाणी इत्यादि महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं। प्रस्तुत पुस्तक भी इस पुस्तकीय ज्ञान के आधार पर ही लिखी गई है। इन पुस्तकों का सार लेकर ही यह संक्षिप्त पुस्तक हठयोग विद्या पर लिखी गई है।
इस पुस्तक में भी अष्टांग या षडंग योग का ही वर्णन किया गया है क्योंकि हठयोगियों ने मुख्य रूप से हठयोग को षडंग योग कहा है किन्तु इस पुस्तक में षडंग योग के अलावा मुद्राओं, षट कर्मों, कुण्डलिनी जागरण इत्यादि के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। हठयोगी केवल षडंग योग का विधि पूर्वक अभ्यास करने पर ही भव सागर से तर सकता है।
हठयोग विद्या ही प्राण विद्या या संजीवनी विद्या है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह पुस्तक हठयोगियों के लिए एक महत्वपूर्ण पुस्तक सिद्ध होगी। इस पुस्तक में संक्षेप में ही हठयोग विद्या के बारे में मुख्य-मुख्य बातें वर्णन की गई हैं और हठयोग विद्या की मुख्य तकनीकि प्राणायाम पर विशेष बल दिया गया है। जिसका विधिवत पालन कर हठयोग के शेष अंगों के अभ्यास के लाभ के साथ ही साथ ही साथ योगी अपनी काया सिद्ध कर सिद्ध काय योगी बन सकता है और प्राणो का मन के साथ अपनी आत्म में लय करते हुए परमात्मा में समरस्य एकरूपता को प्राप्त हो सकता है।
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