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हिन्दी व्याकरण- Hindi Grammar

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Specifications
Publisher: Chintan Prakashan, Kanpur
Author Kamta Prasad Guru
Language: Hindi
Pages: 472
Cover: PAPERBACK
8.5x5.5 inch
Weight 500 gm
Edition: 2021
ISBN: 9789385804618
HBO521
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Book Description

भूमिका

यह हिंदी व्याकरण काशी नागरीप्रचारिणी सभा के अनुरोध और उत्तेजन से लिखा गया है। सभा ने लगभग पाँच वर्ष पूर्व हिंदी का एक सर्वांगपूर्ण व्याकरण लिखने का विचार कर इस विषय के दो-तीन ग्रंथ लिखवाए थे, जिनमें बाबू गंगाप्रसाद एम.ए. और पं. रामकर्ण शर्मा के लिखे हुए व्याकरण अधिकांश में उपयोगी निकले। तब सभा ने इन ग्रंथों के आधार पर अथवा स्वतंत्र रीति से, विस्तृत हिंदी व्याकरण लिखने का गुरुभार मुझे सौंप दिया। इस विषय में पं. महावीरप्रसाद जी द्विवेदी और पं. माधवराव सप्रे ने भी सभा से अनुरोध किया था, जिसके लिए मैं आप दोनों महाशयों का कृतज्ञ हूँ। मैंने इस कार्य में किसी विद्वान् को आगे बढ़ते हुए न देखकर अपनी अल्पज्ञता का कुछ भी विचार न किया और सभा का दिया हुआ भार धन्यवादपूर्वक तथा कर्तव्यबुद्धि से ग्रहण कर लिया। उस भार को अब में पाँच वर्ष के पश्चात्, इस पुस्तक के रूप में यह कहकर सभा को लौटाता हूँ कि-

'अर्पित है, गोविंद, तुम्हीं को वस्तु तुम्हारी।'

इस ग्रंथ की रचना में मैंने पूर्वोक्त दोनों व्याकरणों से यत्र-तत्र सहायता ली है और हिंदी व्याकरणों के आज तक छपे हुए हिंदी और अँगरेजी ग्रंथों का भी थोड़ा-बहुत उपयोग किया है। इन सब ग्रंथों की सूची पुस्तक के अंत में दी गई है। द्विवेदी जी लिखित 'हिंदी भाषा की उत्पत्ति' और ब्रिटिश विश्वकोष' के 'हिंदुस्तानी' नामक लेख के आधार पर, इस पुस्तक में, हिंदी की उत्पत्ति लिखी गई है। अरबी, फारसी शब्दों की व्युत्पत्ति के लिए मैं अधिकांश में राजा शिवप्रसाद कृत 'हिंदी व्याकरण' और प्लाट्स कृत 'हिंदुस्तानी ग्रामर' का ऋणी हूँ। काले कृत 'उच्च संस्कृत व्याकरण' से मैंने संस्कृत व्याकरण के अंश लिए हैं।

सबसे अधिक सहायता मुझे दामले कृत 'शास्त्रीय मराठी व्याकरण' से मिली है, जिसकी शैली पर मैंने अधिकांश में अपना व्याकरण लिखा है। पूर्वोक्त पुस्तक से मैंने हिंदी में घटित होने वाले व्याकरण विषयक कई एक वर्गीकरण, विवेचन, नियम और न्यायसम्मत लक्षण, आवश्यक परिवर्तन के साथ लिए हैं। संस्कृत व्याकरण के कुछ उदाहरण भी मैंने इस पुस्तक से संग्रह किए हैं।

पूर्वोक्त ग्रंथों के अतिरिक्त अँगरेजी, बैंगला और गुजराती व्याकरणों से भी कहीं-कहीं सहायता ती गई है।

इन पुस्तकों के लेखकों के प्रति मैं नम्रतापूर्वक अपनी हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करता हूँ।

हिंदी तथा अन्यान्य भाषाओं के व्याकरणों से उचित सहायता लेने पर भी, इस पुस्तक में जो विचार. प्रकट किए गए हैं, और जो सिद्धांत निश्चित किए गए हैं, वे साहित्यिक हिंदी से ही संबंध रखते हैं और उन सबके लिए मैं ही उत्तरदाता हूँ। यहाँ यह कह देना अनुचित न होगा कि हिंदी व्याकरण की छोटी-मोटी कई पुस्तकें उपलब्ध होते हुए भी हिंदी में, इस समय अपने विषय और ढंग की यही एक व्यापक और (संभवतः) मौलिक पुस्तक है। इसमें मेरा कई ग्रंथों का अध्ययन और कई वर्षों का परिश्रम तथा विषय का अनुराग और स्वार्थत्याग सम्मिलित है। इस व्याकरण में अन्यान्य विशेषताओं के साथ-साथ एक बड़ी विशेषता यह भी है कि नियमों के स्पष्टीकरण के लिए इनमें जो उदाहरण दिए गए हैं, वे अधिकतर हिंदी के भिन्न-भिन्न कालों के प्रतिष्ठित और प्रामाणिक लेखकों के ग्रंथों से लिए गए हैं। इस विशेषता के कारण पुस्तक क में यथासंभव, अंधपरम्परा अथवा कृत्रिमता का दोष नहीं आने पाया है। पर इन सब बातों पर यथार्थ सम्मति देने के अधिकारी विशेषज्ञ हैं।

कुछ लोगों का मत है कि हिंदी के 'सर्वागपूर्ण' व्याकरण में मूल विषय के साथ-साथ साहित्य का इतिहास, छंदोनिरूपण, रस, अलंकार, कहावतें, मुहाविरे आदि विषय रहने चाहिए। यद्यपि ये सब विषय भाषाज्ञान की पूर्णता के लिए आवश्यक हैं, तो भी ये सब अपने आप में स्वतंत्र विषय हैं और व्याकरण से इनका कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है। किसी भी भाषा का 'सर्वागपूर्ण' व्याकरण वही है, जिससे उस भाषा के सब शिष्ट रूपों और प्रयोगों का पूर्ण विवेचन किया जाय और उनमें यथासंभव स्थिरता लाई जाय। हमारे पूर्वजों ने व्याकरण का यही उद्देश्य माना है' और मैंने इसी पिछली दृष्टि से इस पुस्तक को 'सर्वागपूर्ण' बनाने का प्रयत्न किया है। यद्यपि यह ग्रंथ पूर्णतया सर्वागपूर्ण नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इतने व्यापक विषय में विवेचन की कठिनाई और भाषा की अस्थिरता तथा लेखक की भ्रांति और अल्पज्ञता के कारण कई बातों का छूट जाना संभव है, तथापि मुझे यह कहने में कुछ भी संकोच नहीं है कि इस पुस्तक से आधुनिक हिंदी के स्वरूप का प्रायः पूरा पता लग सकता है।

यह व्याकरण, अधिकांश में, अँगरेजी व्याकरण के ढंग पर लिखा गया है। इस प्रणाली के अनुसरण का मुख्य कारण यह है कि हिंदी में आरंभ ही से इसी प्रणाली का उपयोग किया गया है और आज तक किसी लेखक ने संस्कृत प्रणाली का कोई पूर्ण आदर्श उपस्थित नहीं किया। वर्तमान प्रणाली के प्रचार का दूसरा कारण यह है कि इसमें स्पष्टता और सरलता विशेष रूप से पाई जाती है और सूत्र तथा भाष्य, दोनों ऐसे मिले रहते हैं कि एक ही लेखक पूरा व्याकरण, विशद रूप में लिख सकता है। हिंदी भाषा के लिए वह दिन सचमुच बड़े गौरव का होगा, जब इसका व्याकरण 'अष्टाध्यायी' और 'महाभाष्य' के मिश्रित रूप में लिखा जायगा, 'पर वह दिन अभी बहुत दूर दिखाई देता है। यह कार्य मेरे लिए तो, अल्पज्ञता के कारण, दुस्तर है; पर इसका सम्पादन तभी संभव होगा, जब संस्कृत के अद्वितीय वैयाकरण हिंदी को "एक स्वतंत्र और उन्नत भाषा समझकर इसके व्याकरण का अनुशीलन करेंगे। जब तक ऐसा नहीं हुआ है, तब तक इसी व्याकरण से इस विषय के अभाव की पूर्ति होने की आशा की जा सकती है। यहाँ यह कह देना भी आवश्यक जान पड़ता है कि इस पुस्तक में सभी जगह अँगरेजी व्याकरण का अनुकरण नहीं किया गया है। इसमें यथासंभव संस्कृत प्रणाली का भी अनुसरण किया गया है और यथास्थान अँगरेजी व्याकरण के कुछ दोष भी दिखाए गए हैं।

मेरा विचार था कि इस पुस्तक में मैं विशेषकर 'कारकों' और 'कालों' का विवेचन संस्कृत की शुद्ध प्रणाली के अनुसार करता; पर हिंदी में इन विषयों की रूढ़ि अँगरेजी के समागम से, अभी तक इतनी प्रबल है कि मुझे सहसा इस प्रकार का परिवर्तन करना उचित न जान पड़ा। हिंदी में व्याकरण का पठन-पाठन अभी बाल्यावस्था ही में है; इसलिए इस नई प्रणाली के कारण इस रूखे विषय के और भी रूखे हो जाने की आशंका थी। इसी कारण मैंने 'विभक्तियों' और 'आख्यानों' के बदले 'कारकों' और 'कालों' का नामोल्लेख तथा विचार किया है। यदि आवश्यकता जान पड़ेगी तो ये विषय किसी अगले संस्करण में परिवर्तन कर दिए जायेंगे। तब तक संभवतः विभक्तियों को मूल शब्दों में मिलाकर लिखने के विषय में कुछ सर्वसम्मत निश्चय हो जायगा।

इस पुस्तक में, जैसा कि ग्रंथ में अन्यत्र (पृष्ठ 78 पर) कहा है, अधिकांश में वही पारिभाषिक शब्द रखे गए हैं, जो हिंदी में 'भाषाभास्कर' के द्वारा प्रचलित हो गए हैं। यथार्थ में ये सब शब्द संस्कृत व्याकरण के हैं, जिससे मैंने और भी कुछ शब्द लिए हैं। थोड़े बहुत आवश्यक पारिभाषिक शब्द मराठी तथा बँगला भाषाओं के व्याकरणों से लिए गए हैं और उपर्युक्त शब्दों के अभाव में कुछ शब्दों की रचना मैंने स्वयं की है।

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