किसी भी देश का यदि मुख्य तत्त्व हो तो वह है संस्कृक्ति। भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीन संस्कृतियों में से एक है। हमारी भारतीय संस्कृति पर समय समय पर प्रहार हुए, हो रहे हैं, फिर भी हमारी संस्कृति की निजी पहचान है। भारतीय संस्कृति की अक्षुण्ण धारा बहती रहे और उस निर्झर स्नात से जनता प्रभावित हो, भाविक पीढ़ी अन्जान न रहे और अपनी संस्कृक्ति पर गर्व करें, इसी अनुसंधान से मैंने श्री एच.एल. पटेल कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय में जनवरी 2010 में यू.जी.सी. प्रेरित द्वि-द्विवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की थी। इस संगोष्ठी में कई विद्वान अध्यापकों ने संशोधन लेख प्रस्तुत किये थे, उनमें से प्रमुख कवियों की महत्वपूर्ण कृतियों में निरूपित संस्कृति सम्बन्धित लेखों का चयन करके पुस्तक के रूप में संपादित करने का मैंने विनम्र प्रयास किया है। काफी प्रबुद्ध अध्यापकों के आलेख इस पुस्तक में सम्मिलित नहीं कर पायी इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ। ऐसा करना पिष्टपेषण से बचना है।
श्रेष्ठ कवियों की कृतियों में निरूपित संस्कृति दर्शन को पुस्तक के रूप में रखने की मेरी अभिलाषा थी, जो पूर्ण हुई है। आशा है कवियों ने संस्कृति की गरिमा को बढ़ाया है, पाठक गण तथा सान्निध्य में आने वाले जन संस्कृति को अमर बनाने में सहयोगी होंगे तथा संस्कृति कालजयी बनी रहे, इसी उम्मीद के साथ मैं लेखों को पुस्तक के रूप में आप के सामने रखती हूँ। लेखों का सम्पूर्ण दायित्व लेखकों पर ही है। पुस्तक सम्बन्धित पाठकों का सुझाव मुझे स्वीकार है।
पुस्तक के संपादन कार्य में सहायता प्रदान करने वाले हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रा. मायावंशी साहब का आभार। पुस्तक का प्रकाशन जहाँ से हुआ है उस चिंतन प्रकाशन की भी मैं आभारी हूँ, जिन्होंने अल्प समय में मुद्रणकार्य समाप्त किया है।
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