श्री शिवप्रसाद गुप्त के अनुरोध से स्वर्गी श्री रामदास गौड़ ने हिन्दुत्व लिखना प्रारम्भ किया। गुन जो की इच्छा थी और अब भी है कि प्रत्येक धर्म के सम्बन्ध में एक ऐसा ग्रन्थ प्रकाशित कराया जाय कि केवल उसी को देखने से उस धर्म की भूमिका और क्रमविकाश का पूरा ज्ञान पाठक को हो तथा जो अधिक अध्ययन करना चाहते हों उन्हें भी मालूम हो जाय कि क्या पढ़ना चाहिये। केवल यही नहीं, एक उद्देश्य यह भी था कि उस धर्म को माननेवालों की संस्कृति का भी अच्छा ज्ञान पाठक को हो। इसी उद्देश्य की सिद्धि के लिये श्री रामदास गौड़ने 'हिन्दुत्व' लिखना प्रारम्भ किया। वह लिखकर पूरा हो जाने पर भी बहुत दिन तक इस विचार से पड़ा रहा कि अन्य विद्वानों को दिखाकर इसमें आवश्यक संशोधन करा लिये जाएँ। इस विचार से ग्रन्थ एक दो विद्वानों के पास भेजा भी गया पर कतिपय कारणों से वे कुछ न कर सके। इस प्रकार व्यर्थ समय जाता देख कर अन्त में यही निश्चय किया गया कि ग्रन्थ ज्यों का त्यों, अर्थात् जैसा गौड्जीने प्रस्तुत किया था, प्रकाशित कर दिया जाय। संशोधन का कार्य द्वितीय संस्करण के लिये, यदि वह अवसर प्राप्त हो, छोड़ दिया गया। तदनुसार छपाई का कार्य संवत् १९९२ विक्रमीय में प्रारम्भ और सं. १९९४ वि. में समाप्त हुआ पर इसके साथ ही, हमारे दुर्भाग्य से, गौड़जी की इहलीला का अन्त हो गया। अतः कहा जा सकता है कि 'हिन्दुत्व' ही गौड़जी की स्वदेश को अन्तिम देन है। पर हमारे दुर्भाग्ये से वह अपूर्ण ही रह गयी।
'हिन्दुत्व' वस्तुतः विश्वकोष (एनसाइक्लोपीडिया) है। हिन्दू धर्म के सम्बन्ध में कोई बात ऐसी नहीं है जिसका इसमें यथास्थान समावेश न हुआ हो। इतना कार्य तो गौड़जी ने स्वयम् ही कर दिया है। पर ऐसे ग्रन्थ के लिये एक भूमिका की आवश्यकता थी जिसमें हिन्दू धर्म का इतिहास बताया जाता और जो ग्रन्थ आज उपलब्ध है वे टीका की कसौटी पर कसे जाते। यह कार्य बहुत परिश्रम का तो था ही, साथ ही इसके लिए गम्भीर और विस्तृत अध्ययन की भी आवश्यकता थी। गौड़जी ही इसके योग्य थे और आप इसकी तैयारी भी कर रहे थे। स्यात् कुछ लिखा भी था पर वह आपके कागज पत्रों में नहीं मिला। किसी अन्य विद्वान से यह कार्य करा लेने का यत्न किया जा रहा है पर अभी तक इसमें सफलता प्राप्त नहीं हुई है, क्योंकि जो विद्वान् है और जिनमें विवेचन की शक्ति भी है उन्हें अवसर नहीं है। इसलिए महीनों यह ग्रन्थ अप्रकाशित रह गया। पर अब यही उचित समझा गया कि जो है उसे ही प्रकाशित कर दिया जाय तथा भूमिका लिखवाने का यत्न भी जारी रखा जाय। उपयुक्त भूमिका तैयार हो जाने पर वह स्वतन्त्र पुस्तक के रूप में प्रकाशित कर दी जाय।
अतः जो है वही जनता के सामने उपस्थित किया जाता है। प्रकाशक का विश्वास है कि हिन्दुत्व के सम्बन्ध में जो सज्जन कुछ जानने की इच्छा रखते हैं उनके लिए यह ग्रन्थ परम उपयोगी सिद्ध होगा। वेद, वेदाङ्ग, दर्शन, स्मृति, इतिहास, पुराण, तन्त्र, सम्प्रदाय, पन्ध आदि क्या है और उनमें क्या है, इन सब प्रश्नों का उत्तर देनेवाला केवल हिन्दी में हीं नहीं प्रत्युत समस्त भारतीय साहित्य में स्यात् यही एकमात्र ग्रन्थ है। इसकी उपयोगिता तभी सफल होगी जब हमारे देश के विद्वान इस विषय के अधिकतर अध्ययन में इस ग्रन्थ को अपना चिरसहायक पायेंगे।
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