कन्नौज का भू-भाग उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में विंध्याचल पर्वत के मध्य में स्थित है। प्राचीन काल में यह क्षेत्र ऋषि-मुनियों एवं रामायण तथा महाभारत की सत्पुरुषों का निवास स्थान था। छठीं शताब्दी के उत्तरार्ध में कन्नौज की उन्नति दिखाई देती है। इस काल में कन्नौज मौखरियों की राजधानी बनी एवं मौखरियों के पतनोपरांत थानेश्वर के राजा हर्षवर्धन का कन्नौज पर नियंत्रण हुआ। अब मगध के स्थान पर कन्नौज राजनीतिक गुरुत्वाकर्षण का केंद्र हो गया। कन्नौज के राजा हर्षवर्धन ने राष्ट्रीय अखण्डता के परंपरागत आदर्श का निर्वहन किया जिसके लिए जीवन भर संघर्ष करना पड़ा इसी कारण से भारतीय इतिहास में हर्ष का नाम महान शासको की सूची में अंकित है। पुष्यभूति वंश के उपरांत अनेक राजवंशों जैसे प्रतिहारों एवं गाहड़वालों की राजधानी यहीं पर विद्यमान थी। इसी कारण से 12वीं शताब्दी तक यह उत्तरी भारत के सर्वश्रेष्ठ नगर के रूप में विद्यमान रही। कन्नौज बौद्धिक क्षेत्र के रूप में भी विख्यात था। संगोष्ठी में मुख्य रूप से मूर्धन्य विद्वानों द्वारा प्रस्तुत शोध पत्र को समाहित किया गया है। आशा है कि राष्ट्रीय संगोष्ठी का यह कार्यवृत युग युगीन कन्नौज का ऐतिहासिक मूल्यांकन का मार्गदर्शन करने में सहायक होगा।
डॉ संजय कुमार सिंह प्रथम श्रेणी में स्नातकोत्तर उपाधि, मध्य पूर्व गांगेय क्षेत्र में नगरीकरण विषय पर पी.एच.डी 20051 राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय शोध ग्रंथो में अब तक 18 शोध प्रकाशित। अकादमिक संस्थाओं तथा समितियों के आजीवन सदस्य । वर्तमान समय में डॉ भीमराव अम्बेडकर राजकीय महाविद्यालय अनौगी कन्नौज, में इतिहस विषय में विभागाध्यक्ष हैं। प्राक्तन सहायक आचार्य दिग्विजय नाथ स्नातकोत्तर महाविद्यालय गोरखपुर एवं दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर।
डॉ सुमन शुक्ला वर्तमान में रामसहाय राजकीय महाविद्यालय शिवराजपुर कानपुर नगर में इतिहास विभाग में विभागाध्यक्ष है। लगभग 24 शोध पत्र अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय जनरल्स में प्रकाशित हो चुके हैं। जिनमें चार शोध पत्रों को उत्कृष्ट लेखन हेतु पुरस्कृत भी किया जा चुका है। 2011 में यूजीसी द्वारा स्वीकृत वृहद शोध परियोजना में सहायक शोध निदेशक के पद पर कार्य किया। नई शिक्षा नीति पर दो राष्ट्रीय सेमिनार एवं एक कार्यशाला का आयोजन कराया गया है। जनजातीय इतिहास पर आपकी एक पुस्तक प्रकाशित है। एक राष्ट्रीय एवं दो अंतरराष्ट्रीय जनरल्स में इतिहास विषय के संपादक मंडल की सदस्य हैं। राष्ट्रीय एवं उत्तर प्रदेश की इतिहास समिति की सदस्य हैं। क्षेत्रीय इतिहास लेखन में सक्रिय कानपुर इतिहास लेखन समिति के उपाध्यक्ष है। आपके निर्देशन में चार छात्र क्षेत्रीय इतिहास लेखन पर शोध कार्य कर रहे हैं।
कन्नौज भारत का एक प्राचीनतम नगर है। जो उत्तर प्रदेश में पतित पावनी मां गंगा, काली एवं गम्भीरी नदियों के संगम स्थल पर स्थित है। यह नगर गंगा एवं यमुना दोआब के केंद्र बिंदु के रूप में विख्यात है। यह रामायण एवं महाभारत काल के सुत्पुरुषों का निवास स्थान रहा है। विभिन्न काल खण्डों के अभिलेखों एवं साहित्य में इस नगर को कान्यकुब्ज, महोदय, कुसुमपुर, गाधि ापुर, एवं कुशस्थल आदि अनेक नामों से अभिहित किया गया है। कान्यकुब्ज का उल्लेख रामायण में मिलता है, जिसमें कहा गया है कि पवन देव ने क्रुद्ध होकर यहाँ की राज कन्याओं को शाप दिया जिससे उनका गात्र टूट गया (भग्ना कन्या) तथा उन्हें कूबड निकल आया (कुब्जा) जिससे यह नगर कान्यकुब्ज नाम से विख्यात हुआ जो अब कन्नौज के रूप में जाना जाता है। वहीं एक अन्य कथा में कहा गया है कि अपने राज्याभिषेक के बाद श्रीरामचन्द्र जी ने एक यज्ञ किया। उस यज्ञ में ब्राहमणों को आमंत्रित किया अतः यहाँ से दो ब्राह्मण भाई अपने नगर के अन्य ब्राह्मणों के साथ अयोध्या गये। जो कान्य और कुब्ज थे। जब ये यज्ञ स्थल पर पहुँचे तो कुब्ज ने विचार किया कि श्री रामचन्द्र ने ब्राह्मण बध किया है (रावण ब्राह्मण था)। अतः हमें दान नहीं लेना चाहिए। कान्य को वहीं छोड़कर कुब्ज अपने घर आ गये और कान्य वहीं रुक गये। उन्हे श्रीरामचन्द्र जी ने दान में सरयू नदी पार ग्राम दक्षिणा में दिये। भाईयों के बहिष्कार के कारण वह वापस नहीं लौटे अपितु सरयू के पार जाकर बस गये। कुब्ज जो बिना दान लिए लौट आये थे उनके वंशजों को कान्यकुब्ज ब्राहमण कहा गया और जो अभी भी प्रचलित है। कान्य जो सरयूपार गये उनके वंशज सरयूपारी ब्राह्मण कहलाए जिन्हें सानाढ्य भी कहते है।
उक्त कथन का उल्लेख विलियम कुक ने 1890 ई में प्रकाशित अपनी पुस्तक "Ethnographical Hand book for north-western province and oudh" के पृ० सं. 57 में उल्लिखित किया है। वाल्मीकि ने कान्यकुब्ज देश का वर्णन किया है। सोन नदी के तट पर श्री रामचन्द्र जी विश्वामित्र से पूछते हैं कि यह समृद्ध देश कौन सा है? मुनि ने कहा कि यह प्रसिद्ध कान्यकुब्ज देश है। वाल्मीकि ने पश्चिमी सीमा का भी उल्लेख किया है जहाँ पर यमुना टेढ़ी (आगरा के समीप) हो जाती हैं वहाँ पर कान्यकुब्ज की सीमा है। यह कान्यकुब्ज ब्रह्मर्षियों द्वारा सेवित है अर्थात यहाँ ब्रह्मर्षि निवास करते है। कन्नौज का दूसरा नाम महोदय था जिसका अर्थ है 'उच्च समृद्धि से भरा हुआ। गाधिपुर का सम्बन्ध पुराणों के अनुसार गाधि नामक शासक से किया गया है। कुशस्थल की पहचान राजा कुश से की जाती है। कुसुमपुर का उल्लेख ह्वेनसांग ने किया है।
पुष्यभूति वंशज महाराज प्रभाकरवर्धन के पुत्र हर्षवर्धन अपनी बहन राज्यश्री की ओर से कन्नौज के राज्यसिंहासन पर बैठे। 'सकलोत्तरापथनाथ सम्राट हर्ष का युग स्वर्णयुग था। हर्ष ने ब्राह्मण बौद्ध एवं जैन धर्म का समन्वय किया। हर्ष प्रत्येक पांचवें वर्ष 'महामोक्षपरिषद' का आयोजन किया करते थे। कन्नौज का प्रसिद्ध मंदिर बाबा गौरीशंकर उस युग का प्रत्यक्ष प्रमाण है। चीनी यात्री ह्वेनसांग उसी स्वर्ण युग में कन्नौज आये थे। ह्वेनसांग ने कन्नौज की कीर्ति को उजागर किया था। हर्ष के मरणोपरांत कन्नौज प्रायः सतत् चलते रहने वाले युद्धों और महत्वाकांक्षी शक्तियों का अखाड़ा बन गया। कन्नौज में यशोवर्मन ने शासन किया, किन्तु आठवीं शताब्दी में सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना घटी वह थी तीन शक्तिशाली राज्यो गुर्जर प्रतिहार, पाल और राष्ट्रकूट का उदय एवं कन्नौज पर स्वामित्व के लिए त्रिदलीय संघर्ष। यह संघर्ष आठवीं शताब्दी के उत्तरार्दध से दसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक चलता रहा। कन्नौज मे गुर्जर प्रतिहारों की साम्राज्य की स्थापना से परिवर्तन आया कि एक सुव्यवस्थित शासन का रूप दिखाई देने लगता है। प्रतिहार युग में भारतीय संस्कृति और कला-कौशल का केन्द्र कन्नौज ही था।
Hindu (हिंदू धर्म) (13440)
Tantra (तन्त्र) (1003)
Vedas (वेद) (715)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2077)
Chaukhamba | चौखंबा (3185)
Jyotish (ज्योतिष) (1544)
Yoga (योग) (1154)
Ramayana (रामायण) (1335)
Gita Press (गीता प्रेस) (724)
Sahitya (साहित्य) (24559)
History (इतिहास) (8930)
Philosophy (दर्शन) (3592)
Santvani (सन्त वाणी) (2615)
Vedanta (वेदांत) (115)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist