| Specifications |
| Publisher: Pathak Publisher And Distributors | |
| Author Deenbandhu Pandey | |
| Language: Sanskrit and Hindi | |
| Pages: 145 | |
| Cover: HARDCOVER | |
| 9x6 inch | |
| Weight 340 gm | |
| Edition: 2024 | |
| ISBN: 9789391952839 | |
| HBA893 |
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प्रतिमालक्षण एवं वास्तुविद्या के मत्स्यपुराण के प्राचीन अंशों में से प्रतिमालक्षण का तुलनात्मक अध्ययन मूल पाठ के साथ किया गया है । मत्स्य रचित प्रतिमालक्षण के साथ ही शिव रचित प्रतिमालक्षण का एक अंश एवं गर्ग रचित अर्चावैकृत सम्बन्धी अंश भी मत्स्यपुराण में प्राप्त है। शिव एवं गर्ग के अंशों के साथ ही मत्स्यपुराण के अन्य अध्यायों में प्राप्त देवप्रतिमा सम्बन्धी विवरण भी चयन करके एकत्रित किये गए हैं। मत्स्यपुराण के देवातार्चानुकीर्तन का उपयोग मान्सोल्लास, शिल्परत्न, रूपण्डन, चतुर्वगचिन्तामणि, अपराजितपृच्छा आदि कई ग्रंथों में किया गया है जहाँ समान प्रकार के कुछ विवरण या श्लोकों के उद्धरण प्राप्त होते हैं। प्रतिमालक्षण या प्रतिमाविवरण सम्बन्धी अंशों को स्पष्ट करने के लिए सामान्य वर्णनों से उभरने वाले रूप की भी सहायता यत्र तत्र ली गयी है । मात्स्यदेवातार्चानुकीर्तन का आधार लेकर देवता प्रतिमाओं के सन्दर्भ भी विवेचानार्थ ग्रहीत किये गए हैं।
प्रो. दीनबन्धु पाण्डेय (जन्म तिथि 16-12-1942) 'ज्ञान सिन्धु' उपाधि से विभूषित
भारतीय इतिहास एवं संस्कृति के विश्रुत विद्धान्
सदस्य : भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसन्धान परिषद्, भारत सरकार, दिल्ली
वैश्विक अध्यक्ष : शोच निर्देशन मण्डल इण्डोलॉजी फाउण्डेशन, दिल्ली
को-आप्टेड सदस्य : शोध समिति, भारतीय इतिहास अनुसन्धान परिषद्, भारत सरकार, दिल्ली पूर्व विभागाध्यक्ष : कला इतिहास एवं पर्यटन प्रवन्ध, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय स्वर्णपदक से अलंकृत
प्रो. अनन्त सदाशिव अल्तेकर स्वर्ण पदक से विभूषित
बुद्ध महाविद्यालय स्वर्ण एवं रजत पदक प्राप्त
राष्ट्रीय मुद्राशास्त्री सम्मेलन, नागपुर में विशिष्ट मुद्राशास्त्री सम्मान प्राप्त
आजीवन सदस्य : भारतीय इतिहास कांग्रेस
आजीवन सदस्य : भारतीय मुद्रापरिषद्
सम्पादक : संस्कृति-शोध पत्रिका
सम्पादक : स्थापत्यम् Journal of the Indian Science of Architecture and Allied Sciences
सदस्य : राष्ट्रीय परामर्शदात्री समिति, हेरिटेज सोसाइटी, पटना
लन्दन साउथम्पटन एवं हम्बर्ग के अन्तर्राष्ट्रीय विद्वसम्मेलनों में आमन्त्रित
मत्स्य के वास्तुशास्त्र का उल्लेख मत्स्यपुराण में किया गया है। मत्स्य ने अपने वास्तुशास्त्र का ज्ञान वैवस्वत मनु को दिया। मत्स्यपुराण में उसे ही सूत ने प्रस्तुत किया है। मत्स्यपुराण में वास्तुशास्त्र के देवतामूर्ति संबंधी एक स्थान पर संकलित 49 अध्यायों (अध्याय 94, 230 के अतिरिक्त अध्याय 11 से 289) (अध्याय 258-263) कुल अध्यायों की सामग्री प्रस्तुत है प्रतिमालक्षण एवं वास्तुविद्या के प्राचीन अंशों में से प्रतिमालक्षण का अध्ययन मूल पाठ के साथ यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। इस अंश को कुछ अध्याय नामों में देवतार्चानुकीर्त्तन कहा गया है।
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