भूमिका
बुजुर्गों से क्षमा चाहते हुए 1997 में मेरी अपनी बंदिशों की एक छोटी सी पुस्तक 'गुश्ताखी मुआफ' लिखी। इस पुस्तक की सौ-डेढ़ सौ कापियाँ मैंने अपने शिष्यों-प्रशिष्यो को भेंट की। पिछले दस-बारह सालों में मेरी रचनाओं में भी वृद्धि हुई। तबले के अध्ययनकर्ताओं को 'गुश्ताखी मुआफ' पसन्द आयी। अनेकों ने उसकी रचनाओं को अपनाया। मैंने सोचा की 'गुश्ताखी मुआफ' के बाद बुजुर्गोंकी इजाजत लेकर मेरी लिखी हुई आज तक की बंदिशों की पुस्तक प्रकाशित की जाए। तो यही वह 'इजाजत' पुस्तक आप सब अध्येता तबलावादकों को मैं अर्पण कर रहा हूँ। मेरे ही एक ज्येष्ठ शागिर्द ने मुझसे एक बार पूछा, "इतनी सुंदर रचनाएँ आपको कैसी सूझती हैं?" तब मुझे उस्ताद अमीर हुसेन खाँ और मशहूर संगीत दिग्दर्शक सज्जाद हुसेन का किस्सा याद आया । सज्जाद हुसेन एक लाजवाब रचनाकार थे । मेंडोलिन पर उनकी हुकूमत असाधारण थी । अभिजात भारतीय संगीत की रागदारी मिंड, गमक के साथ वे इस कठीन वाद्य पर सहजतासे बजाते । अमीर हुसेन खाँसाहब को वे बहुत ही मानते । एक बार खाँसाहब के घर में गपशप करते समय उन्होंने खाँसाहब से पूछा, "खाँसाहब, आप हजारों पुरानी बंदिशें बजाते हैं, आपकी याददाश्त बेहतरीन है, लेकिन आपकी खुद की बंदिशें भी लाजवाब हैं, बताइये ये सब नयी-नयी बंदिशें आपको कैसे सुझती हैं?" तब खाँसाहब बोले, "बेटा, आप भी तो फिल्म म्युझिक के नामचीन डायरेक्टर हैं ! आप को ये कैसे सूझता है? फिल्म का डायरेक्टर एखाद गीतकार का गीत आपको देता है फिल्म में किस जगह यह गीत डालना है उस घटना से आपको वाकिफ कर देता है, कौनसा रस है, मूड है यह चीज समझाता है और आप तर्ज कंपोझ कर लेते है? - या उस गीत के मुताबिक रिदम चुन लेते हो?' "खाँसाहब, आपने ऐसे सवाल पूछे हैं कि हमारी फिल्म की दुनिया से आप अच्छे वाकिफ है, आपका तजुर्बा काफी बढ़िया है। मेरे बारे में भी ऐसाही होता है। सिनेमा की घटना के अनुसार गीतकार गीत लिख कर देता है, या मैं पहले ही तर्ज बना लेता हूँ और गीतकार से इस छंद पर गीत लिखने के लिए कहता हूँ। तो यह सारा मेरा सिलसिला है ।" खाँसाहब का आगे का कथन और गौर करने योग्य है। वे बोले, "संगीत या तबले की कोई भी बंदिश हो, बनानेवाले को उस विषय का पुरा ज्ञान होना जरूरी है। तबले की भाषा का वह अच्छा जानकार हो । उसका व्याकरण अच्छा होना चाहिए और उसका अच्छा वादक भी होना आवश्यक है। तबले-बाये के हुरुफ, बोल, लंगर और लडगूथ उसकी बंदिश में ऐसी होनी चाहिए कि बजाते वक्त किसी की उंगलियों में रुकावट पैदा न हो । नहीं तो बेमतलब बंदिशें बाँधनेवाले दुनिया में कम नहीं हैं। कोई भी बंदिश अगर हाथ से निकलती नहीं तो उसका क्या फायदा? बंदिश खूबसूरत होनी चाहिए, दायें-बायें का अच्छा मेल बनानेवाली । कवि कविता करता है, शायर शायरी करता है; अच्छे दिमाग के साथ आलाह दर्जे की कल्पनाशक्ति भी होनी चाहिए। इन लोगों को भाषा के अर्थ और भावार्थ की बड़ी सहायता मिलती है। लेकिन बेटा, तबले की भाषा से कोई अर्थ नहीं पैदा होता, तो तबले की बंदिशकारों को लय, रिदम और छंद-वृत्त इन चीजों की ही मदद लेनी पडती है । तेज नजर, अच्छी परख और प्रकृति में घडी घडी सुनने में आनेवाले अलग-अलग किस्म के चलन; इन्हीं से अच्छी-अच्छी बंदिशें बनती हैं । बुजुर्गों ने हमें ऐसी बेहतरीन बंदिशें दी हैं कि सुभानल्लाह ! उन्होंनेही अपनी तबले की भाषा आलाह दर्जे की बना दी है। तो बेटा, यही सबक है तबले का अच्छा बंदिशकार बनने का ।" उस्ताद अमीर हुसन खाँ के इस विवेचन के बाद नयी-नयी रचनाएँ कैसे सूझती हैं इसका पता अध्येताओं को लग जाएगा । गति अथवा चाल यह तबले की पूर्वनिबद्ध रचनाओं की आत्मा है। हमारी रोजाना जिन्दगी में अनेक घटनाएँ घटित होती हैं। कहीं से रेडिओ पर पुराने गाने की धुन सुनाई देती है, तो कभी कमरे का पुराना पंखा चकराते समय उसमें निर्माण दोष से विशिष्ट जगह पर उसका ब्लेड अटकता है तो उसमें से अलग किस्म के लयबंध का चलन अपने आप निर्माण हो जाता है।
पुस्तक परिचय
तबला वादन की कला को अनेक कलाकारों ने बड़ी साधना के साथ बरकरार रखा है। सभी घरानों के बुजुर्ग रचनाकारों ने अपनी अतुलनीय कल्पनाशक्ति के बल पर तबले के साहित्य को समृद्ध बनाया है, इसी परंपरा को उस्ताद अमीर हुसेन खाँसाहब के जेठे शागीर्द अरविंद मुलगांवकर ने बड़ी समर्थता के साथ बरकरार रखा है। उनके द्वारा रचित रचनाओं में से चुनिंदा 'कायदे, रेले, गत, गततोड़े' आदि को प्रस्तुत ग्रंथ में समाविष्ट किया है। सौंदर्यपूर्ण भाषा का प्रयोग, काव्य की अनुभूती, विभिन्न बाजोंपर आधारित रचनाएँ यह प्रस्तुत ग्रंथ की विशेषताएँ कही जा सकती हैं। यह ग्रंथ तबला सीखनेवाले छात्र, अध्यापक तथा कलाकारों को निश्चित रूप से मार्गदर्शक सिद्ध होगा
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