| Specifications |
| Publisher: Sangeet Karyalaya, Hathras | |
| Author: लक्ष्मी नारायण गर्ग: (Lakshmi Narayan Garg) | |
| Language: Hindi | |
| Pages: 170 | |
| Cover: Paperback | |
| 9.5 inch X 6.0 inch | |
| Weight 240 gm | |
| Edition: 2012 | |
| ISBN: 8185057982 | |
| HAA235 |
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प्रकाशक के स्वर
लता के अमर गीत पाठकों की सेवा में प्रस्तुत है । दीर्घकाल से लोग चाहते थे कि लता मंगेशकर के श्रेष्ठतम गीतों को एकत्र करके स्वरलिपि सहित प्रकाशित किया जाए, ताकि लता के प्रेमी उन्हें शुद्ध रूप में गा बजा सकें ।
उपर्युक्त माँग को ध्यान में रखते हुए हमने लता के पचास ऐसे गीतों का चयन किया है, जो लोक के कण्ठ का हार बने हुए हैं । नई पीढ़ी भी उन गीतों को सुनने पर मुग्ध हो जाती है । जब नया संगीत उबाऊ और कानों के लिए कष्टकारक होने लगता है, तब लता के गीत ही महलम का काम करते हैं ।
स्वर साम्रागी लता मंगेशकर ले हमारे युग में जन्म लिया है, यह हमारे लिए गौरव की बात है । विश्व में शायद ही ऐसा कोई मिनट जाता हो, जब कन्हीं न कही लता का स्वर न गूँज रहा हो । हम उन्हें साक्षात्( सरस्वती का अवतार मानते हुए उन्ही को अपली यह तुच्छ भेंट लता के अमर गीत अर्पित कर रहे है। अब तक लता ने हज़ारों गीत गाये हैं । उनमें कौन सा गीत अमर है और कौन सा नहीं, यह कहना कठिन है। फिर भी बड़ी कठिनाई से हमने ऐसे पचास गीतों का चुनाव किया है, जो बालक, युवा और वृद्ध सभी की जुबान पर सदैव थिरकते रहते हैं। आशा है, स्वर प्रेमी पाठक इस ग्रन्थ से लाभान्वित होंगे।
फ़िल्म नामानुक्रम
| 1 | अगर तुम न होते (हमें और जीने की आर० डी० बर्मन) | 164 |
| 2 | अदालत ( यूं हसरतों के दाग मदन मोहन) | 48 |
| 3 | अदालत (उनको ये शिकायत है मदन मोहन) | 44 |
| 4 | अनपढ़ (है इसी में प्यार की आबरू मदन मोहन) | 34 |
| 5 | अनपढ (आपकी नज़रों ने समझा मदन मोहन) | 31 |
| 6 | अनपढ़ (जिया ले गयो जी मदन मोहन) | 154 |
| 7 | अनारकली (ये ज़िंदगी उसी की है अज्ञात) | 74 |
| 8 | अनुपमा (कुछ दिल ने कहा हेमत कुमार) | 111 |
| 9 | अभिमान (अब तो है तुमसे एस० डी० बर्मन) दई | 97 |
| 10 | अभिमान (नदिया किनारे हेराय आई एस० डी० बर्मन) | 92 |
| 11 | अमर (न मिलता राम तो बरबादी नौशाद) | 51 |
| 12 | आँखें ( मिलती है जिन्दगी में रवि) | 59 |
| 13 | आखिरी खत (बहारो मेरा जीवन खय्याम) | 115 |
| 14 | आपकी परछाइयां (अगर आपसे मुहब्बत है मदन मोहन) | 109 |
| 15 | आह (राजा की आएगी बरात शंकर जयकिशन) | 106 |
| 16 | 1942 ए लव स्टोरी (कुछ न कहो, कुछ भी न आर० डी बर्मन) | 133 |
| 17 | कंगन (मुस्कराओ कि जी नहीं लगता चित्रगुप्त) | 71 |
| 18 | कभी कभी (मेर घर आई एक नन्ही परी खय्याम) देय, | 25 |
| 19 | गाइड (पिया, तोसे नैना लागे रे एस डी० बर्मन) | 19 |
| 20 | घटना (हज़ार बातें कहे जमाना रवि) | 177 |
| 21 | छलिया (तेरी राहों मे खड़े पै कल्याणजी आनंदजी) | 171 |
| 22 | छोटी बहन (भैया मेरे राखी के बंधन शंकर जयकिशन) | 186 |
| 23 | छोटे नवाब (घर आजा, घिर आए राहुल देव वर्मन) | 150 |
| 24 | जुर्माना (सावन के झूले पड़े हैं अज्ञात) | 124 |
| 25 | टैक्सी ड्राइवर (जाएं तो जाएँ कहाँ एस डी० जर्मन) | 117 |
| 26 | ताजमहल (जुर्मे उल्फत पे हमें रोशन) | 37 |
| 27 | दस्तक (हम हैं मता ए कूचा ओ बाजार मदन मोहन) | 55 |
| 28 | दाग (जब भी जी चाहे लक्ष्मीकांत प्यारेलाल) | 174 |
| 29 | देख कबीरा रोया (तू प्यार करे या ठुकराए मदन मोहन) | 89 |
| 30 | देवर (दुनियाँ मे ऐसा कहां रोशन) | 184 |
| 31 | दो आँखें बारह हाथ (ऐ मालिक तेरे बन्दे हम वसंत देसाई) | 181 |
| 32 | नई दिल्ली (मुरली बैरन भई शकर जयकिशन) | 101 |
| 33 | नागिन (सुन रसिया हेमन्त कुमार) | 158 |
| 34 | बैजू बावरा (मोहे भूल गयो सांवरिया अज्ञात) | 16 |
| 35 | भाभी को चूडियौं (ज्योति कलश छलके सुधीर) | 12 |
| 36 | ममता (रहते थे कभी जिनके दिल में रोशन) | 42 |
| 37 | मुग़ले आजम ( मोहे पनघट पे नदलाल नौशाद) | 9 |
| 38 | मुग़ले आज़म (बेकस पे करम कीजिए नौशाद) | 64 |
| 39 | मैं चुप रहूंगी (तुम्हीं हो माता, पिता तुम्हीं हो चित्रगुप्त) | 29 |
| 40 | मैं तुलसी तेरे आँगन की (मैं तुलसी तेरे आँगन की लक्ष्मीकांत प्यारेलाल) | 137 |
| 41 | मैंने प्यार किया (दिल दीवाना राम लक्ष्मण) | 145 |
| 42 | मौसम (रुके रुके न कदम मदन मोहन) | 130 |
| 43 | रजनीगंधा (रजनीगंधा फूल तुम्हारे सलिल चौधरी) वय | 85 |
| 44 | राम तेरी गम। मैली (इक राधा, इक मीरा रवीन्द्र जैन) | 140 |
| 45 | शबाब (जो मैं जानती बिसरत हैं सैंया नोशाद) । | 161 |
| 46 | शबाब (मरना तेरी गली में नौशाद) | 82 |
| 47 | संजोग (वो भूली दास्तां, लो फिर मदन मोहन) | 120 |
| 48 | सत्यं शिवं सुंदरम् (भोर भए पनघट पे लक्ष्मीकात प्यारेलाल) | 167 |
| 49 | हकीकत (ज़रा सी आहट होती है मदन मोहन) | 67 |
| 50 | हीर राँझा (डाली बढ़ते ही हीर ने मदन मोहन) | 189 |








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