भारत को स्वतंत्र हुए 75 वर्ष हो चुके हैं। ऐसे में इस पुस्तक में भारत की आजादी से लेकर वर्तमान समय तक घटित कुछ ऐसी घटनाओं के बारे में विवरण एवं जानकारी देने का प्रयास किया गया है, जिन्होंने भारत के लोकतंत्र के विकास में अहम भूमिका निभाई है। ऐसे घटनाक्रमों के बारे में बताया गया है, जिन्होंने भारत के लोकतंत्र को एक सकारात्मक दिशा देने में निर्णायक भूमिका निभाई है। पुस्तक में भारत के संविधान के निर्माण से लेकर देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में सकारात्मक बदलाव लाने के उद्देश्य से आयोजित किये गए विभिन्न जनांदोलनों जैसे सभी विषयों को विस्तार के साथ समझाया गया है।
किसी भी देश की राजव्यवस्था को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए कुछ नियमों-कानूनों की आवश्यकता पड़ती है। भारतीय संविधान नियमों-कानूनों का ऐसा ही एक संग्रह है, जिसमें देश के सुचारु रूप से चलाने के लिए विभिन्न नियमों-कानूनों की व्यवस्था की गई है। भारत का संविधान देश में विधि का सर्वोच्च स्रोत है। भारत के संविधान का निर्माण आंशिक रूप से चुनी हुई संविधान सभा द्वारा 2 साल 11 महीने एवं 17 दिनों में किया गया, और 26 जनवरी 1950 को पूरे देश में लागू हुआ। भारतीय संविधान में लोकतंत्र के लिए आवश्यक समानता, स्वतंत्रता एवं न्याय के सिद्धांतों को स्थापित किया गया है। इन सिद्धांतों को सक्रिय राजनीति में जीवंत बनाए रखने के लिए संविधान में मौलिक अधिकारों का प्रावधान किया गया है। भारतीय संविधान द्वारा राज्य विधायिका एवं लोकसभा के चुनाव के लिए सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को अपनाया गया है। वयस्क मताधिकार लोकतंत्र के सिद्धांत को आधार देने के साथ-साथ, नागरिकों में समानता की भावना को भी पुष्ट करता है।
संविधान में दिए गए प्रावधानों के आधार पर स्वतंत्र भारत में पहली बार चुनाव कराए गए। संविधान में चुनाव संबंधी कुछ विषयों पर विशेष प्रावधान न होने के कारण जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 अधिनियमित किया गया। हालाँकि, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 में भी चुनाव संबंधी सभी पहलुओं को लेकर दिशा-निर्देश एवं प्रावधान नहीं दिए गए थे। चुनाव संबंधी कुछ विषयों पर प्रावधान न होने के कारण जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 अधिनियमित किया गया। संसद के दोनों सदनों एवं राज्य विधायिकाओं के लिए चुनाव, लोकसभा एवं राज्यसभा के लिए उम्मीदवारों की योग्यता, मतदान व्यवहार, चुनाव में भ्रष्ट आचरण तथा अन्य निर्वाचन संबंधी विवादों पर निर्णय करने के लिए जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 बनाया गया था।
आजादी के बाद, स्वतंत्र भारत में पहला आम चुनाव संपन्न कराने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग को दी गई थी। चुनाव आयोग ने सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर पूरे भारत में चुनाव आयोजित कराए। चुनाव आयोग द्वारा, मतदान देने योग्य देश के सभी वयस्क नागरिकों का नाम मतदाता सूची में शामिल किया गया। हालाँकि, इस काम में चुनाव आयोग को अनेक चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा। विविधता से परिपूर्ण भारत जैसे बृहत देश में निर्वाचन क्षेत्रों का सीमांकन करना एवं देश के प्रत्येक कोने से मतदान योग्य व्यक्तियों का नाम मतदाता सूची में शामिल करना किसी चुनौती से कम नहीं था। भारत में चुनाव आयोजित कराना अत्यंत ही दुरूह काम था। चुनाव आयोग द्वारा सभी राजनीतिक दलों का पंजीकरण किया गया एवं उन्हें चुनाव चिन्ह वितरित किए गए। अंततः 25 अक्तूबर, 1951 से 21 फरवरी, 1952 के बीच, भारत के प्रथम लोकतांत्रिक चुनावों का आयोजन सफलतापूर्वक संपन्न कराया गया। भारत के पहले चुनाव में कुल वोटर टर्नआउट 45.7% रहा। वैध महिला मतदाताओं में से कुल 40% महिलाओं ने वोट देकर अपने मताधिकार की शक्ति का प्रयोग किया। पढ़ा-लिखा ना होने के बावजूद भी भारत की जनता ने पूरे उत्साह से पहले आम चुनाव में भाग लिया, और सही ढंग से वोट देकर अपनी चुनावी जानकारी का परिचय दिया। चुनावों के परिणामों के पश्चात पंडित जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने। केंद्र में एवं सभी राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनी।
1970 के दशक तक आते-आते भारतीय राजनीति में अस्थिरता बढ़ने लगती है। राजनीतिक दलों के बीच संघर्ष एवं वैमनस्य की भावना बढ़ने लगी। 1973 से 1975 के बीच आए बदलावों की परिणति देश में 'आपातकाल' लागू करने के रूप में हुई। भारत में 25 जून, 1975 को आपातकाल की घोषणा कर दी गई। आपातकाल की घोषणा के दिन, आधी रात में ही देशभर के सभी बड़े अखबारों के दफ्तरों की बिजली काट दी गई थी। समाचार पत्रों के लिए कुछ भी छापने से पहले सरकार की अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया।
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