भारतीय संस्कृति का प्रभाव विश्वभर में प्राचीन काल से देखने को मिलता है। कला, साहित्य, धर्म, और दर्शन जैसे क्षेत्रों में भारत की समृद्ध परंपराएँ सीमाओं से परे जाकर विभिन्न सभ्यताओं से संवाद करती रही हैं। दक्षिण एवं मध्य एशिया में भारतीय संस्कृति नामक यह पुस्तक इस सांस्कृतिक यात्रा की गहन पड़ताल करती है, जिसमें यह बताया गया है कि कैसे भारत की सांस्कृतिक धरोहर ने वैश्विक मंच पर अपना स्थान बनाया और विभिन्न समाजों को प्रभावित किया। प्रस्तुत ग्रंथ में अफगानिस्तान, मध्य एशिया, चीन, तिब्बत, नेपाल, भूटान, कोरिया एवं जापान में भारतीय संस्कृति के विविध अवयवों के साहित्यिक एवं भौतिक अवशेषों की विद्यमानता पर संक्षिप्त प्रकाश डाला गया है।
प्रथम अध्याय में अफगानिस्तान में भारतीय संस्कृति के तत्वों पर प्रकाश डाला गया है। द्वितीय अध्याय मध्य एशिया में भारतीय संस्कृति के विविध पक्षों का मूल्यांकन करता है। चीन में भारतीय संस्कृति के प्रभाव की समीक्षा तृतीय अध्याय की विषय वस्तु है। चतुर्थ अध्याय में तिब्बत में प्रचलित बौद्ध संस्कृति पर प्रकाश डाला गया है। पंचम अध्याय नेपाली समाज पर भारतीय संस्कृति के प्रभाव को दर्शाता है। छठे अध्याय में भूटान में बौद्ध धर्म के स्वरूप पर प्रकाश डाला गया है, वहीं सप्तम अध्याय कोरिया में बौद्ध धर्म की स्थिति को दर्शाता है। अंतिम एवं आठवें अध्याय में जापानी समाज पर भारतीय संस्कृति के प्रभाव का मूल्यांकन किया गया है। ग्रंथ के अंत में एक समृद्ध संदर्भ ग्रंथ-सूची दी गई है, साथ ही पुस्तक को अद्यतन स्वरूप प्रदान करने हेतु यथा स्थान तालिकाएँ, आरेख-चित्र एवं छाया-चित्र तथा मानचित्र भी संलग्न किया गया है। भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रसार के बारे में जानने हेतु जिज्ञासु पाठकों के निमित्त यह ग्रंथ अत्यंत ही उपयोगी सिद्ध होगा, ऐसी लेखकों की अभिलाषा है।
भारतीय संस्कृति के वैदेशिक यात्रा के क्रम में भारत के पश्चिमोत्तर में स्थित अफगानिस्तान में भारतीय संस्कृति के विविध पक्ष, यथा-धर्म, भाषा, लिपि एवं साहित्य तथा कला एवं स्थापत्य का प्रवेश तृतीय शती ईस्वी पूर्व में ही हो चुका था जिसका श्रेय सम्राट अशोक को जाता है। प्रथम शती ईस्वी में कुषाण राजवंश के शासकों के प्रयास से मध्य एशिया में भी भारतीय धर्म एवं संस्कृति के विविध पक्षों का प्रचार-प्रसार हुआ। इसी समय मध्य एशिया एवं भारतीय विद्वानों के प्रयास एवं चीनी तीर्थयात्रियों के सदप्रयासों से चीन में भी बौद्ध धर्म के विविध पक्ष पहुँचे। तिब्बत जो प्राकृतिक अवरोधों से परिपूर्ण था, वहाँ भी सातवीं- आठवीं शती में बौद्ध धर्म ने अपनी जड़े जमा ली। लगभग यही समय था जब भूटान भी बौद्ध धर्म के प्रकाश से आलोकित हुआ। चीन से बौद्ध धर्म कोरिया पहुँचा तथा वहाँ से जापान। इस प्रकार तृतीय शती ईस्वी पूर्व से लेकर दसवीं- ग्यारहवीं शती ईस्वी तक सम्पूर्ण मध्य एवं दक्षिण एशिया भारतीय संस्कृति से प्रभावित रहा।
यूँ तो उपरोक्त वर्णित राष्ट्रों पर अलग-अलग कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें भारतीय संस्कृति के प्रभाव को दर्शाया गया है किन्तु एक ही पुस्तक में इन सभी राष्ट्रों में प्रचलित भारतीय संस्कृति के विविध पक्षों को समाहित करने वाली पुस्तक का सर्वथा अभाव था। हिन्दी भाषी छात्रों के लिए तो यह एक अविश्वसनीय स्वपन जैसा था जिसे इस ग्रंथ के लेखकों ने साकार रूप प्रदान किया है। सम्पूर्ण मध्य एवं दक्षिण एशिया पर भारतीय संस्कृति के प्रभाव को दर्शाने वाली हिन्दी भाषा में संभवतः यह प्रथम पुस्तक होगी जिसे पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने में इस ग्रंथ के लेखकों को अतीव प्रसन्नता हो रही है।
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