भारत की सभ्यता और संस्कृति विश्व की प्राचीनतम और समृद्ध संस्कृतियों में से एक मानी जाती है। इसका मूल आधार वैदिक ज्ञान परम्परा रही है, जो न केवल आध्यात्मिक और दार्शनिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है, बल्कि विज्ञान, गणित, चिकित्सा, खगोलशास्त्र और विभिन्न कलाओं में भी इसका व्यापक प्रभाव रहा है। वैदिक काल में शिक्षा को अत्यन्त उच्च स्थान प्राप्त था, जहाँ ज्ञानार्जन को जीवन का परम उद्देश्य माना जाता था।
प्राचीन भारत में शिक्षा की पद्धति गुरुकुल प्रणाली पर आधारित थी। गुरुकुलों में विद्यार्थी ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए वेदों, उपनिषदों, धर्मशास्त्रों और अन्य शास्त्रों का अध्ययन करते थे। यह शिक्षाप्रणाली केवल पुस्तकीय ज्ञान तक सीमित नहीं थी, बल्कि इसमें नैतिकता, अनुशासन, आत्मनिर्भरता और समाज सेवा का भी विशेष महत्त्व था। विद्यार्थी न केवल विद्वान् बनते थे, बल्कि वे समाज में नेतृत्व प्रदान करने में सक्षम होते थे। आज जब हम आधुनिक शिक्षाप्रणाली की ओर देख रहे हैं, तो यह आवश्यक हो जाता है कि हम अपनी प्राचीन वैदिक-शिक्षा-प्रणाली और ज्ञान-परम्परा को समझें और उसकी प्रासंगिकता को स्वीकार करें। भारतीय वैदिक ज्ञान परम्परा न केवल भारत के बौद्धिक उत्थान का प्रमाण है, बल्कि यह विश्व को एक समृद्ध दार्शनिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रदान करने में भी सहायक रही है।
इस पुस्तक की जानकारी विभिन्न धार्मिक ग्रंथों, विद्वानों की पुस्तकों और विभिन्न लेख और इंटरनेट के स्रोतों से संकलित की गई है। यदि अनजाने में कोई त्रुटि रह गई हो, तो इसके लिए लेखक एवं संकलक क्षमाप्रार्थी हैं। धर्मप्रेमी पाठकों को अपनी संस्कृति, परम्परा और धर्म के प्रति सजग करना ही हमारा सच्चा प्रयास और सफलता है।
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