इस पुस्तक के विषय में प्रवेश करूं, इससे पूर्व मैं आपके समक्ष एक बात स्पष्ट कर देना चाहूँगा, वो यह कि मेरे पास मैनेजमेंट की डिग्री नहीं है। मैं कोई पेशेवर मैनेजर नहीं अपितु एक संन्यासी हूँ। सच तो यह है कि मेरा जीवन एवं कार्यक्षेत्र एक असाधारण जगदुरु के निर्देशन में है। वो अपनी इस विश्वव्यापी संस्था का, सुरूपांकित प्रबन्धन-नियमों पर आधारित, सञ्चालन कर के स्वयं एक आदर्श प्रस्तुत करती हैं।
वो मात्र चौथी कक्षा तक पढ़ी हैं, केवल अपनी मातृभाषा अर्थात मलयालम बोलती हैं। उनकी भाषा सरल, साधारण है। फिर भी, वो विश्व भर से, जीवन के हर क्षेत्र के, शिक्षा तथा अनुभव के प्रत्येक स्तर तथा हर जाति-धर्म के लोगों से सम्पर्क स्थापित करती हैं। उनका जो इस दुनियाँ, दुनियाँ के लोगों तथा मानव-मन के विषय में ज्ञान है, वह अद्भुत है, चौंका देने वाला है। पेचीदा से पेचीदा विषयों को, वो सरल उदाहरणों तथा कहानियों की सहायता से स्पष्ट कर देती हैं।
गत ३४ वर्षों से मैं उनसे सीखता आ रहा हूँ और आज भी उनका छात्र हूँ, शिष्य हूँ। उनका नाम है श्री माता अमृतानन्दमयी देवी! उनके विश्व भर में फैले अनुयायी तथा प्रशंसक प्यार से उन्हें 'अम्मा' कह कर पुकारते हैं और वो अपने से मिलने आने वाले लोगों का जिस अनोखी रीति से, गले लगा कर स्वागत करती हैं, उसके लिए वो सुप्रसिद्ध हैं। उन्होंने लोकोपकारी गतिविधियों; जैसे अस्पतालों, शैक्षणिक संस्थाओं, सामाजिक परिवर्तन हेतु शोध-कार्यों, आपदा-राहत कार्यक्रमों, व्यावसयिक प्रशिक्षणों, पर्यावरण-सम्बन्धी कार्यक्रमों, गरीब लोगों के लिए मुफ़्त घरों, अनाथाश्रमों आदि का एक विशाल तन्त्र खड़ा कर दिया है।
यह पुस्तक विश्व के सबसे बड़े NGO में अम्मा की अनूठी प्रबन्धन (मैनेजमेंट) शैली से आप लोगों को परिचित कराने का प्रयास है। इसका सारा श्रेय अम्मा को ही जाता है क्योंकि इस कार्य के पीछे वही तो एकमात्र प्रेरणा-स्त्रोत तथा मार्गदर्शिका हैं। मेरे लिए यह एक चिरकालिक स्वप्न सत्य होने जैसी बात थी। मुझे आज भी स्पष्ट याद है-अम्मा की पचासवीं वर्षगाँठ (अमृतवर्षम ५०) के तत्काल बाद मेरे मन में ऐसी एक पुस्तक लिखने की इच्छा का अंकुर फूटा था। मैंने अम्मा के सामने इस इच्छा को अभिव्यक्त किया तो उन्होंने कहा, अच्छी बात है, लिखो। तब से, यदा-कदा अम्मा मुझसे पूछती रहीं, तुम्हारी पुस्तक का क्या हुआ? यह विचार तो बहुत वर्षों से मन के किसी कोने में पड़ा था। वास्तव में, मैं पिछले पांच वर्षों से इस पुस्तक को लिखने की मानसिक तैयारी करता आ रहा हूँ; पुस्तकें व लेख पढ़ कर जानकारी एकत्रित कर के, और विषेशतया - अम्मा को एक CEO (Chief Enlightened Overseer) के परिप्रेक्ष्य में देख कर, क्योंकि आख़िरकार एक असाधारण मार्गदर्शक के रूप में उन्हीं के दृष्टान्तों ने ही तो इस प्रक्रिया को त्वरा प्रदान कर, मेरे सपने को सच किया।
अम्मा की सन्निकटता तथा उनके निरन्तर अवलोकन से उनकी अद्वितीय निपुणताओं की श्रृंखला सामने आती है - प्रत्येक स्थिति एवं परिस्थिति से जूझने की अम्मा की शांत तथा करुणापूर्ण शैली; उनकी अथाह धैर्य एवं समानुभूति सहित सबकी बात सुनने की क्षमता; उनकी विनम्रता एवं समत्व; लोगों से घुल-मिल जाने तथा सम्पर्क साधने की वो अनौपचारिक रीति; सबके प्रति अभिव्यक्त होने वाले उनके प्रेम एवं चिन्ता का मिश्रण तथा उनकी अनन्त ऊर्जा। प्रबंधकों तथा नेताओं को, उनसे बहुत कुछ सीखने को मिल सकता है।
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