पुस्तक परिचय
बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों में जयशंकर प्रसाद के नाटकों से हिन्दी नाटकलेखन के एक नये अध्याय की शुरुआत होती है, और उनके निबन्धों से एक नयी रंगदृष्टि से परिचय मिलता है। नाटकलेखन में उन्होंने ऐतिहासिक शोध के भीतर से जीवन्त मानव की संघर्ष-यात्रा के अनेक पड़ावों का अंकन किया है। और अपने निबन्धों में उन्होंने हिन्दी रंगमंच की जातीय पहचान को पाने के लिए प्रेरित किया-ऐसा रंगमंच जो भारतीय सन्दर्भों में शास्त्रीय, पारम्परिक और पश्चिमी नाट्यों के व्यवहार और तत्त्वों के मेल से भारतीय नाट्यधर्मी शैली के एक नये मुहावरे को रेखांकित करे। इस प्रक्रिया में पारसी थिएटर और शेक्सपियर के अनेक रंगतत्त्व मिलते हैं, परन्तु संस्कृत नाटकों और पारम्परिक नाट्यों तथा इनके तत्त्वों में जो समानता है उससे ये तत्त्व आरोपित नहीं हैं, वरन् इस नयी रंगशैली को प्रदर्शनात्मक (थिएट्रिकल) आकर्षण के साथ गढ़ते हैं।
लेखक परिचय- 1
ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न की ला ट्रोब यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान और शान्तिवादी विचारों के अध्यापक रहे विद्वान् शोधकर्ता थॉमस वेबर ने 20 से ज्यादा वर्षों तक महात्मा गांधी के जीवन और विचारों पर गहन शोध किया। उन्होंने पूरे भारत की कई यात्राएँ भी की, जिनमें महात्मा गांधी की प्रसिद्ध दाण्डी यात्रा के मार्ग की 1983 में की गयी यात्रा भी शामिल है। उन्होंने गांधी के साथ उस यात्रा, और उसमें शामिल तथा तब तक जीवित बचे 17 यात्रियों के संस्मरणों की एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक समेत गांधी के जीवन और विचारों पर दस से ज्यादा किताबें लिखी हैं। 75 की उम्र पार कर चुके थॉमस वेबर अब सेवानिवृत्त होकर मेलबर्न के बाहरी इलाके में अपने परिवार और अपनी पुस्तकों के साथ जीवन बिता रहे हैं।
लेखक परिचय- 2
देवेन्द्र राज अंकुर: दिल्ली विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से निर्देशन में विशेषज्ञता के साथ नाट्य-कला में डिप्लोमा। बाल भवन, नयो दिल्ली के वरिष्ठ नाट्य-प्रशिक्षक। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमण्डल के सदस्य। भारतेन्दु नाट्य अकादमी, लखनऊ में नाट्य-साहित्य, रंग स्थापत्य और निर्देशन के अतिथि विशेषज्ञ। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, दिल्ली; क्षेत्रीय अनुसन्धान व संसाधन केन्द्र, बेंगलुरु के निदेशक। 'सम्भव', नयी दिल्ली के संस्थापक सदस्य और प्रमुख निर्देशक। नयी विधा 'कहानी का रंगमंच' के देवेन्द्र राज अंकुर प्रणेता। भारत की सभी भाषाओं और रूसी भाषा में रंगकर्म का अनुभव।
प्रधान सम्पादक की ओर से
सर्वश्रेष्ठ नाट्यश्रृंखला के अन्तर्गत पाँच हिन्दी नाटककारों और अन्य नाटककारों के पाँच नाटकों के चुनाव में एक ही आधार रहा है- समय और समाज के स्वरों का अन्तर्लोक और उसको दृश्य में ढालने की सम्भावनाएँ। लेखों के चयन में यह कोशिश रही कि लेख नाटककार या नाटक को रंगकर्मियों/पाठकों के इतना नज़दीक ले आएँ कि वे नाटकों के भीतरी रंगमंच की व्याख्या पर संवाद कर सकें। साथ ही उनके विवेचन में नाटकलेखन और प्रदर्शन की नयी जिज्ञासाओं, विफलताओं और सफलताओं की गूंज सुनाई दे।
भारतेन्दु ने अनेक रंगपरम्पराओं को पचाते हुए ऐसी विशिष्ट रंगशैली गढ़ी है जो राजनीति, धर्म, बाजार आदि ताक़तों की टकराहट में दर्शकों को प्रदर्शन का हिस्सा बनाती है। इस अनोखी रंगशैली के कारण डेढ़ सौ साल बाद भी 'अन्धेर नगरी' नाटक बच्चों और बड़ों के लिए आकर्षण का आधार बना हुआ है। इनके बाद जयशंकर प्रसाद ने (1906 और 1933 के बीच) कला के अनेक अनुशासनों से गुजरकर, महाकाव्यात्मक स्तर पर, राष्ट्रीय सुरक्षा के जरूरी सवालों के साथ राजनीति और व्यक्ति के टकराव को नये धरातलों पर पेश किया है। यह अलग बात है कि उनसे उभरती गैरयथार्थवादी शैली को तत्कालीन रंगकर्मी नहीं पहचान सके। हाँ, उनका 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक शौक्रिया रंगमंच पर हमेशा चर्चा का विषय बना रहा।