लेखक परिचय
देवेन्द्र कुमार मूलतः हरियाणा के हिसार जिले में स्थित जुगलान गाँव के रहने वाले हैं। उनकी आरम्भिक शिक्षा गाँव के सरकारी स्कूल में हुई। तदुपरान्त उन्होंने बी.ए. (अंग्रेजी ऑनर्स) डी. एन. कॉलेज, हिसार और अंग्रेजी साहित्य में एम. ए., एम. फिल. और पीएच.डी. कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र (हरियाणा) के अंग्रेजी विभाग से की। कुछ वर्षों तक राजकीय महाविद्यालय, भट्ट कलाँ, जिला फतेहाबाद (हरियाणा) में अंग्रेजी प्राध्यापक के रूप में कार्य करने के उपरान्त 2008 में उनका चयन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी (उ.प्र.) के अंग्रेजी विभाग, कला संकाय में प्राध्यापक के रूप में हो गया। वर्तमान में वह इसी विभाग में असोशिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। कई शोध-पत्रों के प्रकाशन के अतिरिक्त इन्होंने हरियाणवी लोकगीतों के अंग्रेजी अनुवाद से सम्बन्धित एक पुस्तक 'The Unknown voices: A Translation of Folk song songs of South Haryana' के लिये सह-लेखन का कार्य भी किया है।
पुस्तक परिचय
आज लगभग सभी पारम्परिक समाओं में सदियों से प्रवाहमान लोक संस्कृति की धारा लुप्त होने के कगार पर है। ऐसे संक्रमण काल में इत्त लुप्त होती संस्कृति के विभिन्न घटकों को भावी पीढ़ियों के लिये सहेजने की आवश्यकता है। प्रस्तुत पुस्तक जकड़ी हरियाणवी महिलाओं के सर्व-सुलभ लोकगीत इस दिशा में एक छोटा-सा प्रयास है। हरियाणवी महिलाओं में लोकप्रिय जकड़ी' नामक लोकगीत लोकविदों की दृष्टि में प्रायः उपेक्षित ही रहे हैं। उनका अधिकतर ध्यान संस्कार-गीतों पर ही केन्द्रित रहा है। प्रस्तुत पुस्तक जकड़ी जैसी लोकविद्या का पहला स्वतन्त्र और विस्तृत अध्ययन है। 'जकड़ी' जैसे लोकगीतों की सांस्कृतिक और समाजशास्त्रीय उपादेयता इस तथ्य में निहित है कि ये लोकगीत एक हरियाणवी स्त्री के जीवन के सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव की सटीक अभिव्यक्ति है। स्त्री के जीवन का यह पड़ाव है-उसके रजस्वला होने से लेकर उसके पुत्रवती होने तक का समय। यही वह समय है जिस दौरान उसके जीवन में आने वाले स्त्रीजन्य बदलाव एक झंझावात की तरह आते हैं। देखा जाए तो हरियाणवी महिलाओं द्वारा गायी जाने वाली जकड़ियों एक स्त्री के विवाहोपरान्त होने वाले विस्थापन और पुनः स्थापन के बीच के अत्यन्त महत्वपूर्ण कालखंड की मुखर अभिव्यक्ति हैं। इस दौरान उसे कितनी ही तरह की पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भौगोलिक संरचनाओं की दुरुहता से दो-चार होना पड़ता है, यह केवल एक स्त्री-मन ही जान सकता है। जकड़ियाँ इन्हीं जटिल संरचनाओं के बीच एक स्त्री की मनोवैज्ञानिक यात्रा की सामूहिक एवं कलात्मक अभिव्यक्ति हैं। समग्र रूप से कहा जा सकता है कि जकड़ियों का संसार इन्हें गाने वाली हरियाणवी महिलाओं के 'आंतरिक संसार' की ही भाँति विविधताओं से भरा हुआ है। एक स्त्री के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण अवस्था का चित्रण करने के साथ-साथ जकड़ियाँ सम-सामयिक राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक घटनाओं को भी अपने में समाहित करती रही हैं। यदि किसी को इन घटनाओं के संबंध में लोक की यथार्थवादी टिप्पणी देखनी हो, तो जकड़ी से बेहतर स्रोत शायद ही कोई मिले।
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