इस पुस्तक का लेखन डॉ० राजबीर सिंह के द्वारा किया गया है जिन्होंने लगभग 39 वर्षों तक दूरदर्शन के पद पर कार्यभार संभाला है। वह बहुत लम्बे समय से भारतीय विद्या भवन, नई दिल्ली, से जुड़े हुए हैं। डॉ० राजबीर सिंह ने सन् 2005 में ज्योतिष आचार्य की उपाधि भारतीय विद्या भवन से प्राप्त की तथा मेरे एवं अन्य वरिष्ठ अध्यापकों के सहयोग से शोध पूर्ण किया। वर्ष 2006 में डॉ० राजबीर सिंह ने अपनी प्रथम पुस्तक 'ज्येष्ठ संतान' लिखी। और कुछ समय पश्चात् ही दूसरी पुस्तक 'दत्तक पुत्र' भी लिखी। और फिर वर्ष 2010 से वह भारतीय विद्या भवन में ज्योतिष विद्या का ज्ञान बाँट रहे हैं। इंजीनियर होने के नाते इनकी अपने विषयों पर और गणित की गणनों पर एक अच्छी पकड़ है। ज्योतिष विद्या में रुचि और अच्छी पकड़ होने के कारण डॉ० राजबीर सिंह ने 2023-2024 में ज्योतिष विद्या में पी.एच.डी की डिग्री भी प्राप्त की।
मेरी पूरी उम्मीद है कि यह पुस्तक ज्योतिष से जुड़े हुए विद्यार्थियों का ज्ञानवर्धन करेगी और विद्यार्थी इससे लाभाविन्वत होंगे। इस विषय में बहुत अधिक नियम दिए गए हैं।ऐसे अद्भुत थे वैकुण्ठधाम के योगी भास्कर स्वामी जी के श्री मुख से निकला गीता का निम्न श्लोक उनके भक्त कैसे भूल सकते है।
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