मेरे नन्हे मित्रो, तुम्हें कहानियाँ अच्छी लगती हैं न! और एक से एक अनोखे चरित्रों तथा उनके मजेदार करतबों से हँसाने वाली कहानियाँ तो शायद सबसे अधिक भाती होंगी। सिर्फ तुम्हें ही क्यों, हास्य-विनोद से भरपूर कहानियाँ पढ़ने में सभी बच्चों को खूब रस और आनंद मिलता है। शायद इसलिए कि इन कहानियों को पढ़ते हुए वे एक निराली ही दुनिया में जा पहुँचते हैं, जिसमें सारे दुख-अभाव, झंझट और परेशानियाँ भूल-भालकर वे कुछ अपनी, कुछ दूसरों की नादानियों पर खूब मजे में खिलखिलाकर हँस लेते हैं। बगैर किसी रोक-टोक के अपने आनंद की दुनिया में मग्न हो जाते हैं।
बच्चों के लिए ये ऐसे हँसी-खुशी और मस्ती भरे पल होते हैं, जिनमें उनके भीतर की सारी चिढ़, कुढ़न, तनाव, यहाँ तक कि बड़ी से बड़ी मुश्किलें भी मानो किसी परी के जादू से फुर्र से उड़ जाती हैं और वे खुद को हलका, स्वस्थ और तरोताजा महसूस करते हैं। एक नई आशा और उम्मीद से भरपूर।
इसीलिए तो मित्रो, अपनी नई किताब 'झटपट सिंह, फटफट सिंह' में मैंने अपनी एक से एक रोचक और मजेदार कहानियों का खिल-खिल हँसाने वाला अनोखा गुलदस्ता तैयार किया है। इसमें एक से एक रोचक हास्य कथाएँ हैं, जिन्हें पढ़ना शुरू करोगे तो हँसते-हँसते तुम्हारा पेट दुखने लगेगा। इनमें कहीं ऐसे हड़बड़िया बच्चे का किस्सा है जो हड़बड़पन में हर काम बिगाड़ता है, तो कहीं अजीब से मिठाई-लोभी बच्चे का किस्सा भी है जो बस किसी मिठाई का नाम सुनते ही फौरन हलवाई की दुकान की ओर दौड़ पड़ता है। जब तक वहाँ से जी भरकर मिठाई न खा ले, उसे चैन नहीं पड़ता।
ऐसे ही डींगें हाँकने वाले शेखीखोर बच्चे का किस्सा है, तो गाँव के एक बहादुर बच्च्चे चंदू की छींक का अजब-गजब किस्सा भी है, जिसे चाहे जितनी भी बार पढ़ो, खूब हँसी आती है। और यही नहीं, इसमें बार-बार चीजों के नाम भूल जाने वाले भुलक्कड़ पापा हैं तो खूब हँसने वाला दोस्त राक्षस भी है, जिससे बच्चों की ऐसी दोस्ती हो जाती है कि वे हर पल उसके साथ ही रहना चाहते हैं।
फिर 'जब गब्बर सिंह ने की पुताई' और 'करामातीलाल की तलवार' तो ऐसी मजेदार हास्य कथाएँ हैं, जिनमें बड़े विचित्र चरित्र उभरते हैं, जिन्हें एक बार कहानी पढ़ने के बाद भूल पाना कठिन है। खासकर 'जब गब्बर सिंह ने की पुताई' कहानी तो ऐसी मस्ती की धुन में लिखी गई है कि पढ़ते जाओ और हँसते जाओ। इसमें जंगल में रहने वाले गब्बर सिंह का मजेदार किस्सा है। एक दिन उसे अपनी झोंपड़ी में पुताई करनी थी तो झोंपड़ी के बाहर बैठे शेर की पूँछ उसके हाथ में आ गई। और फिर क्या-क्या तमाशे हुए, वह तुम इस कहानी में पढ़ोगे।
ऐसे ही 'करामातीलाल की तलवार' कहानी में एक ऐसे अजीबोगरीब करामातीलाल जी हैं, जिन्हें एक किले में घूमते हुए बड़ी पुरानी तलवार मिल गई, तो अचानक उसके भीतर जोश उमड़ पड़ा। फिर तो उन्होंने ऐसे-ऐसे करतब कर दिखाए कि देखने वालों के छक्के छूट गए। इसके अलावा 'निठल्लूपुर का राजा', 'टुनटुनिया राज्य का लंबूलाल', 'ढोल बजा जी, ढोल बजा', 'लो, चली, चली दीवार चली', 'कद्दूमल की घुड़सवारी' समेत ऐसी दर्जनों हास्य कथाएँ इस किताब में हैं, जिनमें हँसी, हँसी और खूब हँसी के गोलगप्पे हैं। खाओ जी भर और खूब हँसो ।
फिर इन कहानियों के भुल्लन चाचा तो ऐसे ग्रेट हैं, जैसे सिर्फ भुल्लन चाचा ही हो सकते हैं। वे अपने गाँव हुल्लारीपुर से दिल्ली आए तो एक दिन घूमने के चक्कर में खो गए। दिल्ली की अजब सी भूलभुलैया में फैसकर आखिर वे कैसे मिले, यह किस्सा 'जब भुल्लन चाचा खो गए' कहानी में बड़े मजेदार ढंग से सामने आता है। इसी तरह 'भुल्लन चाचा कनाट सर्कस देखने गए' भी खूब मजेदार कहानी है। वहाँ वे ग्रैंड अपोलो सर्कस जैसे किसी सर्कस की खोज कर रहे थे। मगर असलियत पता चली, तो बेचारे बुरी तरह झेंप गए।
तो मित्रो, मेरी नई किताब 'झटपट सिंह फटफट सिंह' में शामिल ज्यादातर कहानियाँ ऐसी ही हैं, जिन्हें पढ़कर तुम जी भरकर हँसोगे, खिलखिलाओगे। खूब ठहाके लगाओगे। पर साथ ही इन्हें पढ़कर तुम जिंदगी को पूरे जोशो-खरोश के साथ जीना भी सीखोगे। मुझे पूरा यकीन है कि किस्म-किस्म के रंगों और किस्सागोई से भरी इन अजब-गजब हास्य-कथाओं को एक बार पढ़ने के बाद तुम कभी भूल नहीं पाओगे। बल्कि इन कहानियों को पढ़कर खूब तरोताजा हो जाओगे, और अपनी दिन भर की थकान भूल जाओगे। और सिर्फ बच्चे ही क्यों? बड़े भी चाहें तो इन हास्य कथाओं से हमेशा हँसने और तरोताजा रहने का मंत्र सीख सकते हैं।
अंत में एक बात और। एक से एक रोचक कहानियों की यह सुंदर पुस्तक किसी अनोखे उपहार से कम नहीं। अगर तुम अपने दोस्तों को उनके जन्मदिन पर यह पुस्तक भेंट करोगे, तो उन्हें बहुत खुशी होगी। सच पूछो तो अच्छी कहानियों की पुस्तक से सुंदर उपहार तो कुछ और हो ही नहीं सकता !
इन हास्य-विनोदपूर्ण कहानियों को पढ़कर अगर तुम मन को रिझाने वाली अपनी नन्ही-मुन्नी चिट्ठी लिखोगे, तो मुझे अच्छा लगेगा।
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