'पत्रकारिता' समाज के सत्य को उद्घाटित करती है। समाज में जो भी घटित हो रहा हो, उसे सामने लाकर जनता को सच दिखलाने का प्रयास पत्रकारिता करती है। पत्रकारिता हमारी भीतर की अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है। इसी ने औपनिवेशिक ताकतों की जड़ों को हिलाने का काम किया है। आज इसी के माध्यम से लोक-कल्याणकारी राष्ट्र की स्थापना हुई है। पत्रकारिता के बल पर ही सामाजिक, सास्कृतिक व आर्थिक विकास संभव होता है। पूर्व में पत्रकारिता लोक-शिक्षण व बदलाव का माध्यम रही है। आज पत्रकारिता के आयाम निरंतर बदले हैं। यह उस समय समाज को चेताने वाले, समाज को जागरूक करने वाले पहरुवे की भांति रही है। सामाजिक कुरीतियों और शासन की नीतियों से संबद्ध समाचारों को अधिक महत्त्व देते थे और प्रत्येक घटना के तात्कालिक एवं दूरगामी परिणामों की संभावना से समाज व शासन को अवगत कराना अपना दायित्त्व समझते थे। पत्रकारिता अपने आप में बहुत बड़ी चीज है। इसीलिए अकबर इलाहाबादी ने कहा भी है-'खींचो न कमान, न तलवार निकालो। जब तोप मुकाबिल हो. तो अखबार निकालो।' पत्रकारिता समाज को अभिव्यक्ति देती है। वह जनता के हितों का ध्यान रखती है। पत्रकारिता समाज सेवा का व्यवसाय है। यह जनता की सेवा करती है, समाज को दिशा देती है। यदि पत्रकारिता नहीं होती तो हमारा समाज नहीं जाग पाता। हमें कभी इस विश्व के विराट दर्शन नहीं हो पाते। हमें सत्य घटनाओं की जानकारी नहीं हो पाती और हम यथार्थ से परिचय नहीं प्राप्त कर पाते। हमें विश्व का ओर छोर नहीं दिखलाई पड़ता। पत्रकारिता का इतिहास भी बहुत सुंदर रहा है। परतंत्र भारत में हमारी पत्रकारिता ने राष्ट्रीय भावना उजागर की है।
आज पत्रकारिता के माध्यम बदल गये हैं। आज न तो कड़े प्रतिबंध हैं और न ही ब्रिटिश शासन की तरह पत्रकारिता पर अंकुश, लेकिन फिर भी आज जिस तरह से स्वतंत्र अभिव्यक्ति के नाम पर कुछ भी कह देने का प्रचलन चल गया है, वह चिंतनीय व सोचनीय है। आज मुद्रण माध्यम, इलैक्ट्रॉनिक माध्यमों ने बहुत बड़ा काम कर दिया है। अब साइबर मीडिया का जमाना आ गया है। सोशल मीडिया ने भी पत्रकारिता को एक धरातल प्रदान किया है। आज की पत्रकारिता नये दौर में पहुँच गयी है। जिस गति से उसमें विस्तार हुआ है वहीं उसमें परिवर्तन भी हुए है। कई आरोप-प्रत्यारोप पत्रकारिता और पत्रकारों पर लगते आ रहे हैं, लेकिन पत्रकारिता तो समाज की सेवा है। निःस्वार्थ भाव से सेवा करना ही पत्रकारिता का प्रथम उद्देश्य है। आज आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक सांस्कृतिक आदि क्षेत्रों में पत्रकारिता और ईमानदार पत्रकारों की जरूरत है। ऐसे में मीडिया क्षेत्र में प्रतिभावान और गभीर प्रकृति के कर्मियों की आवश्यकता महसूस हुई है। इसके लिए शिक्षण द्वारा मीडिया के छात्रों को समाज के लिए खड़ा किया जा सकता है। उसी पक्ष को ध्यान में रखते हुए प्रस्तुत पुस्तक 'पत्रकारिता एवं उसके विविध स्वरूप' की रचना की गयी है, जिसको नौ अध्यायों में विभक्त किया गया है।
प्रथम अध्याय 'संचार अर्थ और परिभाषा है, जिसमें संचार की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए उसकी अर्थ एवं परिभाषाओं को सामने प्रस्तुत किया है। संचार हमारे जीवन के लिए आवश्यक है। बिना संचार के हम जीवित नहीं रह सकते। आज संचार परम्परागत माध्यमों से नवीन माध्यमों तक पहुँच गया है। पहले वार्ता, लोककथा, लोकगाथा, मेले, उत्सव लोकनाट्य, शिलालेखों आदि से संचार होता था, लेकिन नवीन संचार माध्यमों के आगमन से संचार और संचार प्रक्रिया और अधिक सरल हो गयी है। द्वितीय अध्याय 'पत्रकारिता एवं पत्रकार के संबंध में विस्तार से दृष्टि डाली गयी है। पत्रकारिता क्या है? तथा पत्रकार कौन है? भारत में पत्रकारिता का इतिहास क्या रहा है? आदि इन प्रश्नों का उत्तर स्पष्ट किया गया है। साथ ही पत्रकारिता के महत्त्व को भी स्पष्ट किया गया है। तृतीय अध्याय संवाददाता एवं उसके उत्तरदायित्व में समाचार संकलन करने वाले रिपोर्टर और विभिन्न क्षेत्रों में फैले संवाददाताओं के कार्यों, जिम्मेदारियों में विस्तार से प्रकाश डाला गया है। चतुर्थ अध्याय 'समाचार का अर्थ व परिभाषा में समाचार के संदर्भ में प्रकाश डाला गया है। समाचार कैसे प्राप्त किये जाते हैं, समाचार में कौन से तत्त्व विद्यमान हैं, समाचार-पत्र किसे कहते है? उसके क्या उद्देश्य व कर्तव्य हैं और समाचार के स्रोत क्या है? समाचारों के प्रकार क्या है? इन सब पर दृष्टि डाली गयी है। पंचम अध्याय समाचार समितियाँ में भारत तथा विदेशी समाचार समितियों पर प्रकाश डाला गया है। समाचार संकलन करना काफी मशक्कत का कार्य है।
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