पुस्तक परिचय
रिमझिम बावली की फुहार उमड़ते घुमाते मधा के सा कोन्हा बनवारी बनवारी मुरलीकृष्णया के झूला झूलने और मूलाने के चोल वाले गीतों की किलकारियों टपकती है। कजरी के आंचलिक स्वरूप को देखें तो हिन्दी भाषी लगभग सभी प्रदेशों में वर्षा काल के ऋतु गीत अर्थात पावस के गीत को नाम से इरी पाया जाता है। कजरी में चौमासा के साथ-साथ बारहमासा कजरी गीत का प्रचलन भी सुनने को मिलता है जिसका अंश समाहित है। वर्षा ऋतु के प्रारम्भ होते ही, काले काले धने, बावली की धनधार घटायें आसमान को कजरारे आभा मण्डल से ढक लेती है कृषि जीवि संस्कृति में रोजमर्रा के कार्यों में लगे कृषक मजदूर तथा चरवाहे मस्ती में अलाप मारते हैं। महिलाएं कार्य के साथ साथ जिस संयोग एंव वियोग की राग छेड़ती है उसी विधा का नाम 'कजरी" अर्थात परिमार्जित भाषा में कजली को इंगित करता है। भारत एक कृषि प्रधान देश है यहाँ की विविध बोली भाषा में ऋतु परिवर्तनों की प्राकृतिक संरचना में इस कजरी लोक गायन शैली के खास तौर पर हिन्दी भाषी प्रदेशों में 20 से 24 प्रकार की कजरी गीतों के बोल नर-नारी द्वारा एकल तथा समूह में गायन करने की परंपरा रही है जिसके अन्तर्गत छंद-विधान, निर्गुण सगुण, एवं पौराणिक प्रसंगों के साथ-साथ सम सामयिक मुद्दों पर जैसे स्वतंत्रता, देश प्रेम, बहेज विरोध आदि के बोल भी शूक्ष्म रूप से प्राप्त होते हैं। कजरी में आखाड़ों की परंपरा का एक बड़ा महत्व है बुनमुनियों कजरी की पारंपरिक मान्यता तथा हाजिर जवावी कजरी गीतों के रोमांचकारी मुकाबलों ने आम जनमानस के साथ साथ हिन्दी जगत के विद्वानों को भी आकर्षित किया जिसमें भारतेन्दु जी, चौ. बद्री नारायण "प्रेमधन", प्रमुख रहे महाराजा काशी नरेश व पं. मदन मोहन मालवीय जी लवीय जी पावस ऋतु में इसका आयोजन स्वान्तः सुखाय हेतु करवाते रहे। इस की सरस श्रृंगारिक माधुर्यता सबको सम्मोहित कर लेती है। इस लोक गायन शैली को चाहने वालो की संख्या उत्तर भारत के काशी प्रांत तथा देश के कोने-कोने में आज भी है। इस पुस्तक में छन्दों के बारे में चित्र सहित वर्णन है जैसे-कमलबंद, धनुष बंद, नागफाँस बंद, डमरू बंद, त्रिशूल बंद, मुट्ठी बंद, दो अक्षर की कजरी, एक अक्षर की कजरी तथा नी दल, दस दल, वीस दल के कमल पुष्प की आकृति के साथ पुस्तक सुसज्जित है। त्रिभंगी छंद, करखा छंद, हरिप्रिया छंद, सारंगी छंद व अष्टव्यूह मण्डल की अति प्राचीन लेखन परंपरा का ज्ञान भावी पीढ़ी को होगा तथा जिससे लोक संगीत एवं कला प्रेमियों, गायकों, कवियों, लेखकों, लोक साहित्य विषय के शोधार्थियों, छात्रों तथा लोक संस्कृति कर्मियों व भारतीय संस्कृति की लोक परंपरा को समझने वाले सुधिजनों को एकत्रित सामग्री अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी।
लेखक परिचय
नागः डॉ भन्नू यादव "कृष्ण" पिता का नाम: श्री रम्मन यादव माता का नाम: श्रीमती गुलाब देवी जन्म तिथी: जून 1972, ग्राम काशीपुर, पुरूषोत्तमपुर, चुनार, मीरजापुर, उ.प्र. 231305. स्थायी निवास: हरिओमनगर कॉलोनी, सामनेघाट, लंका, वाराणसी, उ.प्र. 221005 शिक्षा: एम. काम., एल. एल. बी. एम. एड्. पी-एच. डी. संगीत प्रभाकर, एम. ए. (लोक संगीत) पुरस्कार : उस्ताद बिस्मिल्लाह खान राष्ट्रीय युवा पुरस्कार 2007, भारत सरकार, संगीत नाटक अकादमी द्वारा सम्मानित । : अकादमी पुरस्कार 2013. संगीत नाटक अकादमी उ.प्र. सरकार तत्कालिन राज्यपाल द्वारा सम्मानित : उ.प्र. सरकार द्वारा आयोजित संयुक्त लोक संगीत प्रतियोगिता विजेता (प्रथम स्थान), 2009-2010 : विलासा कला सम्मान 2009 बिलासपुर छत्तीसगढ़ : कैमूर अलंकरण सम्मान 2009 पूर्वांचल प्रेस क्लब उ.प्र. लोक भूषण सम्मान 2012 वीवारलो ग्रामीण एसोसिएशन द्वारा निखारी ठाकुर सम्मान 2019 आरा बिहार : गोवर्धन श्री सम्मान 2019 श्री गोवर्धन पूजा समिति वाराणसी, उ.प्र गायन शैली बिरहा, लोरिकी, कजरी, चैता, कहरवा, पूर्वी छपरहिया, लचारी, नकटा, पिडिया, पंचरा, आल्हा विभागीय सम्बद्धता: भारत सरकार आकाशवाणी व दूरदर्शन से बी. उच्च स्तर प्राप्त, संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली, उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, प्रयागराज, उ.प्र. । रचनायें: बिरहा दर्शन प्रकाशित। लोरिक काव्य खंड, लालिमा छंद संग्रह, उत्तर भारत के लोकधुन, प्रकाशाधीन फिल्म : हिन्दी फिल्म "मुहल्ला अस्सी" में पार्श्व गायन बिरहा के निर्गुण धुन 2012. भोजपुरी फिल्म "रखवाला" में सह अभिनेता की भूमिका 2012.
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