महाकवि कालिदास का साहित्य पिछली अनेक सदियों से अध्ययन, मनन और चिन्तन का विषय रहा है। उनके नाटकों की ख्याति विश्व रंगमंच तक पहुँची है। सिर्फ संस्कृत और हिन्दी ही नहीं, उनके नाटकों को लोक बोलियों में भी मंचित किया गया है। महाकवि कालिदास ने ज़ो अप्रतिम साहित्य रचना की है, उसने उन्हें प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और परम्परा का सर्वोच्च प्रतिनिधि बना दिया है। भारत वर्ष की सनातन वाणी कालिदास के ग्रन्थों के माध्यम से आज भी मुखरित हो रही है।
मध्यप्रदेश की प्रसिद्ध उज्ञ्जयिनी नगरी, जहाँ महाकाल विराजते हैं और जो इतिहास प्रसिद्ध विक्रमादित्य की नगरी भी है, महाकवि कालिदास ने इसी नगरी में विक्रमादित्य के नवरत्नों में अपनी जगह पायी थी। उनका 'मेघदूत' काव्य प्राचीन विदिशा और उज्जयिनी नगरियों के प्राकृतिक सौन्दर्य से भरापूरा है। इन नगरियों के तत्कालीन जनजीवन की झाँकी उसमें मिलती है।
प्रयोग पक्ष के विषय में कालिदास का नाम सर्वप्रथम परिगणित होता है। कालिदास भारतीय साहित्य की सर्वश्रेष्ठ विभूति हैं। कालिदास प्राचीन भारतीय इतिहास की अन्तरात्मा के प्रतिनिधि हैं और उनकी कृतियों में हमारी संस्कृति के प्राणतत्व सुरक्षित रहेंगे। वास्तव में जातीय प्रतिमा ने सत्यं, शिवं और सुन्दरम के अनुसंधान में जो बहुमूल्य मणिरत्न प्राप्त किये हैं, वे सभी कालिदास की रचनाओं में एकत्र समाविष्ट है।
डॉ० भावना श्रीवास्तव द्वारा 'कालिदास के रूपकों के में आङ्गिक अभिनय का स्वरूप' जैसे अत्यन्त मूल्यवान विषय पर संस्कृत में लिखी गई यह पुस्तक स्तुत्य है। पुस्तक महाकवि कालिदास के रूपकों के व्यावहारिक पक्ष पर आधारित है। मुझे पूरा विश्वास है कि यह पुस्तक रंगमंच से जुड़े रंगकर्मियों और नाटकों के सहृदयों के लिए कालिदास के नाट्य कौशल को गहराई से समझ पाने में मददगार सिद्ध होगी। मुझे आशा है कि कालिदास के रूपकों की अभिनय प्रणाली को खोजने और बरतने की दिशा में भी यह पुस्तक निश्चय ही मार्गदर्शक बनेगी।
हिन्दी में भरत मुनि के नाट्यशास्त्र के आङ्गिक अभिनय के भेदों को आधार बनाकर कालिदास के रूपकों में आङ्गिक अभिनय पर शोध और अन्वेषण निश्चय ही मेरी दृष्टि में एक सर्वथा मौलिक प्रयत्न है। शोध आधारित यह पुस्तक आने वाले समय में नये शोधकर्ताओं का भी मार्ग प्रशस्त करने में सहायक बनेगी। इस पुस्तक के लिए साधुवाद।
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