विष्णुपुराण-प्रतिपादित अट्ठारह विद्याओं में चरम स्थान पर पठित अर्थशास्त्र का तात्पर्य समाज-व्यवस्था, राज्यसञ्चालन, दण्डनीति आदि होता है; जैसा कि शब्दरत्नावली में कहा भी गया है-
बृहस्पतिप्रभृतिभिः प्रणीताचार्थशास्त्रकम् । तत्रैव दण्डनीतिः स्यादथ ज्ञेयौ नयानयौ ।।
सम्प्रति उपलब्ध अर्थशास्त्रीय ग्रन्थों में कौटिल अर्थशास्त्र अन्यतम है, जिसका प्रथम प्रकाशन मैसूर ग्रन्थालय द्वारा रामशास्त्रि-कृत अंग्रेजी अनुवाद के साथ सन् १९०९ में किया गया था। पुरा काल में प्रखर पाण्डित्य-सम्पन्न विष्णु-गुप्त, कौटिल्य अथवा चाणक्य नाम से एक ही ख्यात व्यक्तित्व को अभिहित किया गया है, जो कि अर्थशास्त्र के प्रणेता, राजाओं के लिये शासन-प्रणाली के निर्माता, कुख्यात मगध सम्राट् नन्द की जंजीरों में जगड़ी हुई पृथिवी के उद्धारक आदि के रूप में इतिहास में प्रख्यात हैं। कौटिल्य का पितृ-प्रदत्त नाम तो वास्तव में विष्णुगुप्त ही था, जिसका संकेत लगभग ४०० ई० में प्रणीत कामन्दकीय नीतिसार में प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त संस्कृत के कतिपय कोषग्रन्थों में भी विष्णुगुप्त के पर्यायनामों का उल्लेख प्राप्त होता है। कोषग्रन्थों में विष्णुगुप्त, कौटिल्य एवं चाणक्य के अतिरिक्त अनेक अप्रचलित नाम भी उपलब्ध होते हैं, उदाहरणार्थ- हेमचन्द्र की निम्न पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं-
विष्णुगुप्तस्तु कौटिल्यश्चाणक्यो द्रामिलो गुलः ।
वात्स्यायनो मल्लनागः पाक्षिलस्वामिनावपि।।
वात्स्यायनो मल्लनागः कौटिल्यश्चणकात्मजः ।
द्रामिलः पाक्षिलः स्वामी विष्णुगुप्तो गुलश्च सः ।।
विष्णुगुप्त के अतिरिक्त चणक का पुत्र होने के कारण चाणक्य एवं कुटिल राजनीतिज्ञ होने के कारण कौटिल्य नाम से भी ये लोक में ख्यात हैं। आचार्य कौटिल्य का अलौकिक व्यक्तित्व एक सर्वश्रेष्ठ राजनीतिज्ञ के रूप में मौर्य-साम्राज्य के धवल यश के साथ एकाकार होकर जहाँ एक ओर भारतवर्ष के राजनीतिक इतिहास में अपनी यशोगाथा को अक्षुण्ण बनाते हैं, वहीं दूसरी ओर अपनी अलौकिक अद्भुत कृति के फलस्वरूप संस्कृत साहित्य के इतिहास में अपने-आपको अपने विषय का एकाकी विद्वान् भी सिद्ध करते हैं। अपने अ-साधारण वैशिष्ट्य के कारण ही आचार्य कौटिल्य का नाम पुराण-काव्य-नाटक एवं कोषग्रन्थों में परिव्याप्त है। आचार्य कौटिल्य द्वारा नन्दवंश का विनाश एवं मर्यिवंश की प्रतिष्ठापना से सम्बद्ध इतिवृत्त को पुरा काल में इस प्रकार अंकित किया गया है-
महाभदन्तः तत्पुत्राश्चैकं वर्षशतमवनीपतयो भविष्यन्ति नवैव। तान्नन्दान् कौटिल्यो ब्राह्मणः समुद्धरिष्यति। तेषामभावे मौर्याश्च पृथ्वीं भोक्ष्यन्ति। कौटिल्य एव चन्द्रगुप्तं राज्येऽभिषेक्ष्यति। तस्यापि पुत्रो बिन्दुसारो भविष्यति। तस्याप्य-शोकवर्धनः ।
स्पष्ट है कि नन्दवंश के पश्चात् चन्द्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी, जिसे आचार्य चाणक्य का वरदहस्त प्राप्त था। मौर्य साम्राज्य की स्थापना का काल लगभग ३२१ ई०पू० था। अतः आचार्य कौटिल्य का स्थितिकाल भी उक्त ही रहा, इसमें कोई विचिकित्सा नहीं होनी चाहिये।
आचार्य कौटिल्य-कृत अर्थशास्त्र की लेखन शैली पर कल्पसूत्रों की शब्दावली एवं उनकी रचना-शैली का प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित दिखाई देता है। इससे स्पष्ट होता है कि अर्थशास्त्र-विषयक ग्रन्थों का प्रणयन कल्पसूत्रों के प्रणयन के पश्चात् ही आरम्भ हो गया था। अर्थशास्त्र की प्राचीन परम्परा का अनुशीलन करने पर यह स्पष्ट होता है कि तत्कालीन समय में दण्डनीति एवं शासन-सम्बन्धी कार्यों का उल्लेख भी अर्थशास्त्र के लिये ही प्रचलित था, किन्तु कौटिल्य के उपरान्त अर्थशास्त्र से मात्र जनपद-सम्बन्धी कार्यों का ही विधान होने लगा था। 'अर्थ' शब्द की विवेचना करते हुये कौटिल्य ने कहा भी है कि अर्थ का अभिप्राय है- वह प्रदेश, जहाँ मनुष्य निवास करते हों। अर्थशास्त्र उस शास्त्र को कहते हैं, जिसमें राज्य की प्राप्ति और उसके पालन के उपायों का वर्णन हो।
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