नरेश मेहता (1922-2000) एक ऐसे बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार हैं जिन्होंने कविता, प्रबन्ध काव्य, उपन्यास, नाटक, कहानी, निबंध, यात्रा वृत्तांत एवं संपादन जैसी बहुविध विधाओं में अपनी कलम चलाई है। सन् 1951 से लेकर सन् 2000 तक निरंतर प्रवाहमान उनकी दीर्घव्यापी साहित्य साधना विविध विधाओं को अपने में समाहित करती चली है। नरेश जी की सर्जनात्मकता का सर्वाधिक उन्मेष हमें उनकी कविता में देखने को मिलता है। उन्होंने साहित्य की जिस किसी भी विधा को छुआ है, उसे संवेदना की गहराई के साथ-साथ शिल्प की सजगता से संवार कर उत्कृष्ट साहित्य की सृष्टि की है।
नरेश मेहता समकालीन हिन्दी कविता के प्रमुख हस्ताक्षर हैं। उनका काव्य जातीय अस्मिता का प्रतीक है। समकालीन कवियों में उनका नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। वर्तमान समय में जब भी नयी कविता की चर्चा होती है, नरेश मेहता को अवश्य याद किया जाता है। वे एक ऐसे सजग कवि हैं जिन्होंने परंपरा का पालन करते हुए भी नये भावबोध की अभिव्यक्ति के साथ-साथ नये शिल्प विधान की खोज की।
नरेश मेहता सांस्कृतिक चेतना एवं औपनिषदिक आभा के कवि हैं। वे वैष्णवी प्रज्ञा के अप्रतिम हैं जिन्होंने भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं का अध्ययन करते हुए अपराजेय महिमा एवं जीवन मूल्यों का साक्षात्कार किया है। उनका काव्य जातीय अस्मिता, सांस्कृतिक गरिमा, मूल्य-संधान और उसकी प्राण प्रतिष्ठा का पर्याय है।
नरेश मेहता की ऐसी समृद्ध साहित्य सृष्टि में से उनके कवि रूप को केन्द्र में रखकर लिखे गये, हेमचंद्राचार्य उत्तर गुजरात युनिवर्सिटी की पी-एच.डी. की उपाधि के लिए स्वीकृत शोध-प्रबंध 'कवि नरेश मेहता संवेदना और अभिव्यक्ति' का पुस्तक रूप में प्रकाशन करते हुए मैं हर्ष का अनुभव कर रहा हूँ।
नरेश मेहता सूक्ष्म संवेदना के कवि हैं। उनका संवेदन-विश्व गहन एवं व्यापक है। प्रेम, प्रकृति, सांस्कृतिक चेतना, वैष्णवी प्रज्ञा एवं युगबोध की सशक्त अभिव्यक्ति उनके संवेदन-विश्व की अनोखी विशेषताएँ हैं। वे अपने सामयिक परिवेश के प्रति अत्यधिक जागरूक हैं। समयानुकूल नवीनता को वे बड़े उत्साह के साथ अपनाते हैं, नयी प्रयोगशीलता के प्रति आस्था रखते हैं तथा साहित्य में हमेशा नये प्रयोग करने की बात कहते हैं तथा करते भी हैं।
नरेश मेहता नयी पीढ़ी के ऐसे कवि हैं जो सर्वाधिक शिल्प सजग कवि हैं। अभिनव भाषा प्रयोग, परंपरागत एवं मौलिक प्रतीकों की सुन्दर योजना, उत्कृष्ट बिम्ब विधान, सघन अलंकृति और भावानुकूल लयात्मकता कवि नरेश के शैल्पिक संसार की ऐसी विशेषताएँ हैं जो उन्हें समकालीन कवियों में विशिष्ट बनाती हैं। उनकी शिल्प सजगता उनकी प्रबंध कृतियों में हमें विशेष रूप से दिखायी देती है।
आरंभ में प्रगीतात्मक रचनाएँ देने वाले नरेश मेहता की दृष्टि आगे चलकर एक प्रौढ़ कवि की भाँति हमारे मिथकों की ओर उन्मुख होती है। मिथकों का सहारा लेकर कवि ने जिन प्रबंध काव्यों की रचना की है, उनमें हम अपने समय के ज्वलंत प्रश्नों को पाते हैं। हर प्रबंध रचना में शिल्पगत नवीन प्रयोग उनकी प्रबंध सर्जना को विशिष्टता प्रदान करता है।
इस शोधकार्य की निर्देशिका श्रद्धेया गुरु डॉ० मृदुला पारीक (प्राध्यापक, आर्ट्स एवं कॉमर्स कॉलेज ईडर) का मैं हृदय से आभारी हूँ, जिनके स्नेहपूर्ण मार्गदर्शन और सुझावों से यह कार्य सम्पन्न हो सका। उनके सर्जक व्यक्तित्व से मुझे सदैव प्रेरणा मिलती रही है। उनके प्रति में श्रद्धावनत हूँ।
श्रद्धेय डॉ० भोलाभाई पटेल, श्रद्धेय डॉ० रघुवीर चौधरी, आदरणीया डॉ० रंजना अरगड़े, डॉ० बिन्दु भट्ट, डॉ० आलोक गुप्त, डॉ० जी०जी० मकवाणा, डॉ० ओमप्रकाश गुप्ता, डॉ० हसमुख भाई बारोट, डॉ० बी०के० रोहित, प्राचार्य दीपक रावल, प्राचार्य दिनेश पटेल, श्री हर्षद त्रिवेदी का विशेष आभारी हूँ। जिन गुरुजनों ने समय-समय पर मार्गदर्शन के साथ-साथ किसी न किसी रूप में मेरी सहायता की है, उनसे मुझे नयी दृष्टि, नयी समझ और शोध प्रविधि का ज्ञान मिला है, अतः श्रद्धावनत हूँ।
आर्ट्स एवं कॉमर्स कॉलेज, ईडर के ग्रंथपाल आदरणीय श्री घनश्याम सिंह जी परमार, श्री भूपेन्द्र भाई का बहुत आभारी हूँ जिन्होंने दुर्लभ पुस्तकें उपलब्ध कराकर इस कार्य को सरलता प्रदान की।
शहनाज बेगम अकुली, शैलेष वणकर, जयेश मेहता जैसे मित्रों के स्नेह एवं सहयोग को याद करता हूँ।
इस शोध प्रबंध के प्रकाशन के लिए हिन्दी साहित्य अकादमी, गाँधीनगर, गुजरात राज्य की ओर से आर्थिक अनुदान मिला है, अतः मैं गुजरात हिन्दी अकादमी, गाँधीनगर के प्रति अपना आभार व्यक्त करता हूँ।
सुरुचिपूर्ण मुद्रण एवं प्रकाशन के लिए श्री रामसिंह भाई खंगार, चिंतन प्रकाशन का हार्दिक आभारी हूँ।
ऋणी हूँ कवि नरेश मेहता के प्रति जिनकी कविताएँ पढ़कर काव्य की मेरी समझ पैनी हुई और भाव जगत समृद्ध हुआ।
अंत में, नरेश मेहता का काव्य अत्यंत समृद्ध है और मेरी समझ बहुत सीमित । फिर भी अगर मेरा यह प्रयास कवि के किसी एक पक्ष को भी उजागर कर सका तो मैं अपना प्रयास सार्थक समझेंगा।
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist