रचो साहित्य मानव ऐसा। पावन गंगा धारा जैसा।।
शब्द-शब्द ज्यों अनुपम मोती। ज्ञान-सार नित वर्षा होती ।।
भाव बने सब जन हितकारी। मिटे हृदय की शंका सारी ।।
ईर्ष्या लालच दूर भगाओ। प्रेम भाव की ज्योति जगाओ ।।
जीवन एक रंगमंच है हर व्यक्ति अपना-अपना किरदार निभाता है। जिसको जैसी भूमिका मिलती है उसे आत्मसात करके उसे सफल बनाने का प्रयास करता है। कोई जीत जाता है कोई विपरीत परिस्थितियों का शिकार होकर हार भी जाता है। हार से जो सबक लिया जाता है और हिम्मत, लगन, तल्लीनता, धैर्य और आशा से परिश्रमपूर्वक जीवन को संतोषजनक तरीके से तराशकर जो सार्थकता प्रदान की जाती है वही सफल जीवन की परिभाषा बन जाती है।
कवि कर्म के माध्यम से अपने जीवन अनुभवों को समेटता हुआ अन्तहृदय के भावों को शब्दों का रूप प्रदान करता है और एक कलाकार की भूमिका निभाता हुआ जीवन के हर बीते क्षण को भावनाओं से रेखाओं और रंगो से सुसज्जित सुन्दर शब्द चित्र का निर्माण करता है। जिसमें अपने चारों तरफ घटित घटनाओं का सूक्ष्म वृहद काव्यत्मक रूप में वर्णन बखूबी पाया जाता है।
मेरे इस काव्य संग्रह में कवि हर एक किरदार को सफलता पूर्वक निभाता हुआ दिखाया गया है। राष्ट्र, राष्ट्र भक्त, किसान, मजदूर, सैनिक, शिक्षक, नौजवान, नारी और बालक सभी के प्रति निष्ठावान भूमिका को निभाया गया है। कविताओं में शहरी ग्रामीण वातावरण को दिखाते हुए तीज त्योहारों, रिवाजों की गुणवत्ता पर भी प्रकाश डाला गया है। भारत परम्परागत रूप से देवी-देवताओं के प्रति अटूट श्रद्धावान रहा है। कण-कण में उस अदृश्य, अज्ञात सत्ता के दर्शन पाने का विश्वास हर मन में विद्यमान रहता है। अतः ईश वंदना में आस्था के भक्ति रस पूर्ण पुष्पों से भी कविता को सजाने का प्रयास किया है। जीवन की सुखद-दुखद अनुभूतियों से परिचय कराती कविताओं में अनुपम भाव-व्यंजना करने का प्रयास किया गया है। आशा करती हूँ पाठकों को यह काव्य संग्रह अवश्य प्रभावित करेगा और मेरे काव्य लेखन को समृद्धता का गुण मिलेगा।
को संतोषजनक तरीके से तराशकर जो सार्थकता प्रदान की जाती है वही सफल जीवन की परिभाषा बन जाती है।
काव्य हमारी अनुभूतियों का परिष्कार करता है। काव्य से हमारा मन परिष्कृत और हृदय उदार हो जाता है। काव्य के लिए आवश्यक है कि हमारे भीतर सतोगुण का स्पंदन हो। इस स्थिति में ही हम काव्य रस का आनंद उठा सकते हैं तथा उसे लिख सकते हैं। इससे मनुष्य की भावनाएं कोमल बनती है। उसके भीतर मानवता का विकास होता है। शिष्ट और सभ्यता की ऊंचाइयों को छूता है। इससे ही समाज एवं मानवता कल्याण की ओर मनुष्य बढ़ता व प्रेरित करता है। संस्कृत के प्रसिद्ध आचार्य 'मम्मट' ने अपने "काव्य प्रकाश" में काव्य के प्रयोजन लिखते हुए कहा है :-
काव्यं यशसेअर्थकरे, व्यवहारविदेशिवेतरक्षतये ।
सद्यः परनिवृत्तये कान्ता सम्मिततयो पदेशयुजे ।।
अर्थात यश, धन, व्यवहार कुशलता, अमंगल से रक्षा, आनंद और कान्ता के समान मधुर उपदेश। ये छः प्रयोजन जीवन को सुन्दर बनाने के प्रयोजन हैं। मनुष्य के जीवन में इन सब बातों का बहुत बड़ा महत्व है। हमें एक अच्छा जीवन जीने के लिए इन सबकी नितांन्त आवश्यकता रहती है। एक काव्य से यदि यह सब प्राप्त होता है तो उसके रचयिता के व्यक्तित्व का आकलन करना कोई मुश्किल कार्य नहीं।
"काव्य दर्शन" की रचयिता सेवानिवृत प्रवक्ता वरिष्ठ साहित्यकारा एवं समाजसेविका गाँव पनोह जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश की रहने वाली हैं। बिलासपुर लेखक संघ की सक्रिय वरिष्ठ साहित्यकारा तो हैं ही, अखिल भारतीय साहित्य परिषद हि.प्र. की उपाध्यक्षा भी हैं। कवयित्री शीला सिंह से, मैं पिछले चालीस वर्षों से न केवल परिचित हूँ, अपितु प्रेरित भी हूँ। जब मैंने हिमाचल प्रदेश पुलिस विभाग में सेवा शुरू की थी।
उस समय ये विभाग में, मेरी सीनियर थीं। जिस व्यक्ति ने पुलिस विभाग में सेवा की हो और प्रवक्ता के रुप में सेवा की हो। वह व्यक्ति समाज की रग-रग से परिचित होता है। वही व्यक्तित्व यदि साहित्य की विभिन्न विधाओं में लिखता भी हो तो उसके लेखन की गहराई की थाह पाना या उसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है। बहुमुखी प्रतिभा की स्वामिनी, मानव व साहित्य सेवा को समलपत शीला सिंह के व्यक्तित्व को यदि गहराई से समझना और पढ़ना हो तो इनकी प्रथम गद्य पुस्तक "जीवन मंथन" पढ़ना अनिवार्य है। कई सामाजिक एवं साहित्यिक पुरस्कारों से सम्मानित मातृ शक्ति की दिव्य प्रतिमूलत के लिए कहना चाहूंगा :-
देवी नहीं - शक्ति हो तुम, रस बल का तुम संचार।
संस्कृति की अभिव्यक्ति, सृष्टि-दृष्टि का तुम आधार ।।
Hindu (हिंदू धर्म) (13443)
Tantra (तन्त्र) (1004)
Vedas (वेद) (714)
Ayurveda (आयुर्वेद) (2075)
Chaukhamba | चौखंबा (3189)
Jyotish (ज्योतिष) (1543)
Yoga (योग) (1157)
Ramayana (रामायण) (1336)
Gita Press (गीता प्रेस) (726)
Sahitya (साहित्य) (24544)
History (इतिहास) (8922)
Philosophy (दर्शन) (3591)
Santvani (सन्त वाणी) (2621)
Vedanta (वेदांत) (117)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist