'किन्नर' पैदा नहीं किया जा सकता, वह स्वतः पैदा होता है। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसमें किसी का दोष नहीं है। कोई भी माँ-बाप यह नहीं चाहता कि उनका बच्चा हिजड़ा पैदा हो या किसी कारणवश बाद में वह हिजड़ा बन जाये। माता-पिता का सबसे बड़ा दोष यही है कि वह इन जन्मजात हिजड़ों या बाद में किसी कारणवश बने हिजड़ों को अपने से दूर कर देते हैं। हिजड़ों को शाप या अंधविश्वास से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। माँ-बाप ही इन्हें उचित शिक्षा न देकर और उनका यथेष्ठ लालन-पालन न करके एक नरकीय जीवन जीने के लिए छोड़ देते हैं। आज इस तृतीय प्रकृति को कोई भी जोर-जबरदस्ती माँ-बाप से छीनकर अपने समुदाय में शामिल नहीं कर सकता। 'हिजड़े' को किन्नर कहना एक सम्मान जनक शिष्ट व्यवहार है और हमें इस वर्ग के व्यक्ति के लिए किन्नर शब्द का ही इस्तेमाल करना चाहिए। ताकि यह वर्ग एक सम्मान जनक व्यवहार महसूस कर सके। एक सामान्य व्यक्ति और किन्नर में केवल लिंग-भेद ही है इसके अलावा कुछ नहीं। परन्तु मानवीय संवेदना के चलते हमने उसे इंसान मानने से इंकार कर दिया है। निश्चित तौर पर जब किसी वर्ग के प्रति समाज उदासीन हो जाता है तो उसके साथ अछूतों जैसा व्यवहार होने लगता है। वह समाज के हाशिये पर आ जाता है। ऐसे हाशिये वर्ग की समाज जब हँसी उड़ाने लगता है, उसका मजाक बनाने लगता है तब यह समझ लेना चाहिए कि हमारे अन्दर की मानवता और संवेदना खत्म हो चुकी है।
इस विषय पर शोध अभी भी शैशवास्था में है। समाज में कई ऐसे विषय अभी भी अछूते हैं जिन पर शोध-साहित्य न के बराबर हुआ है। आज भी इस वर्ग पर शोध अधूरा ही है। इसकी सबसे बड़ी वजह है किन्नर साहित्य-सामग्री का अभाव होना। मेरे द्वारा इस विषय को छूना एक लम्बी कहानी को व्यक्त करता है और वो यह है कि मेरा भाई एक ट्रांसजेण्डर है, किन्नर है। पहले जो एक पूर्ण पुरुष था, परन्तु बाद में स्त्री गुण होने के कारण उसने अपना लिंग परिवर्तन करवा लिया और किन्नर समाज-सम्प्रदाय में दीक्षित हो गया। यह आवश्यक नहीं है कि किन्नर कोख से ही पैदा हो वह बाद में भी अपने जीवन में परिवर्तन कर सकता है। इस किन्नर भाई से बार-बार मिलने और इनके डेरे पर जाने से बहुत सी ऐसी बातें सामने आई जो सामान्य जन-जीवन से बहुत अलग होती हैं।
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