निबंध हिंदी साहित्य की अद्यतन श्रेष्ठ विधा है। इसका कारण यह है कि निबंध में काव्य जैसी रमणीयता, भावुकता एवं सरसता होती है, कहानी जैसा विनोदपूर्ण 'बतरस' होता है, नाटक जैसी गतिशीलता, अभिनेयता, संवादात्मकता एवं प्रभावान्विति होती है, जीवनी जैसा आत्मविश्लेषण, निजीपन एवं व्यक्तित्त्व की विवृत्ति होती है, संस्मरण जैसी विवरणात्मकता, निष्पक्षता, मार्मिकता एवं निजता होती है, रेखाचित्र जैसी चित्रात्मकता, आत्मानुभूति, मनोवैज्ञानिकता एवं कल्पना प्रवणता होती है। इतना ही नहीं निबंध को गद्य का श्रृंगार कह सकते है। पं. रामचन्द्र शुक्ल के कथनानुसार "यदि गद्य कवियों की कसौटी है, तो निबंध गद्यकार की कसौटी है।" इसमें संदेह नहीं कि निबंध में ही गद्य के सौंदर्य एवं माधुर्य का पूर्ण विकास होता है, निबंध में ही गद्य की अभिव्यंजना शक्ति का पूर्ण चमत्कार दृष्टिगोचर होता है और निबंध में ही गद्य की उक्ति वैदग्ध्य एवं अर्थ-दीप्ति के दर्शन होते है। अतः निबंध के स्वरूप को देखकर स्पष्ट हो जाता है कि साहित्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा निबंध अभिव्यक्ति का अलग एवं अनोखा रूप है, इतना ही नहीं 'निबंध' साहित्य रूपी उपवन का सुगंधित पुष्प है, जिसमें लेखक के प्रौढ़ चिंतन का परिचय मिलता है।
स्वतंत्रता के बाद जो परिवर्तन आया और जिसका प्रभाव साहित्य की सभी विधाओं पर प्रतिबिंबित होता दिखाई देता है, निबंध भी उससे अछूता नहीं रहा। निबंध के बहुविध तत्त्वों में से एक तत्त्व व्यक्तित्त्व को प्रधान मानकर 'ललित निबंध' जैसी नवीन विधा रूप का निर्माण हुआ ।
ललित निबंध के क्षेत्र में हजारी प्रसाद द्विवेदी से लेकर विद्यानिवास मिश्र और कुबेरनाथ राय का नाम महत्त्वपूर्ण है। कुबेरनाथ राय हिंदी निबंध के क्षेत्र में एक ऐसा नाम है जो केवल ललित निबंध के लिए ही समर्पित है। अतः कुबेरनाथ राय का रस के निपुण आखेटक कहते हैं। राय जी लोक संस्कृति और लोकमानस से जुड़े हुए निबंधकार है। उनको भारतीय संस्कृति के प्रति, भारतीयता के प्रति अटूट लगाव है। भारत की हर बात, हर परंपरा उन्हें लुभाती है। प्राचीनता को पचाकर, छानकर वर्तमान की संतुलित और भविष्य के प्रति दिशा दिग्दर्शन से युक्त उनके निबंध है। तात्पर्य यह है कि ललित निबंधों के हस्ताक्षरों में कुबेरनाथ राय दीपस्तम्भ हैं। अतः कुबेरनाथ राय के निबंध साहित्य का आलोचनात्मक अनुशीलन साहित्य के लिए एक नवीन दिशा का वाहक सिद्ध हो सकता हैं।
शोध विषय की प्रेरणा- अपने विद्यार्थी जीवन में निबंध पढ़ने में मेरी विशेष रुचि रही है, परंतु उस रुचि की कोई विशेष दिशा नहीं थी, जब मैं व्याख्याता के पद पर नियुक्त हुआ तब मुझे तृतीय वर्ष विनयन की कक्षा में अध्यापन करने का सौभाग्य मिला। इत्तफाक से मुझे 'निबंधायन' निबंध संग्रह में संकलित कुबेरनाथ राय का निबंध पढ़ाने का मौका मिला, जिसका शीर्षक था 'राघवः करूणो रसः।' राम के प्रति मेरी आस्था तो पहले से ही 'रामचरितमानस' के कारण विशेष थी, पर कुबेरनाथ राय की भाषा तत्सम् शब्दावली युक्त तथा सामासिक-सी लगी, जो मुझे मेरी सीमा से बाहर लग रही थी, परिणामस्वरूप मैंने शब्दकोष का सहारा लिया और उसके माध्यम से कठिन शब्दों के अर्थ जाने, इसी प्रक्रिया में मुझे विद्वानों की भाषा हस्तगत होती गई और मैं धीरे-धीरे कुबेरनाथ राय के निबंधों में प्रयुक्त वाक्यों के संकेतार्थ आत्मसात करने लगा, फलस्वरूप मेरी रुचि विषय वस्तु की गहराई में डूबने उतरने लगी, फिर यह पूरा निबंध स्वयं पढ़ने के बाद, पढ़ाने के लिए कौन-सा तरीका अपनाया जाय इस विषय में थोड़ा चिंतन किया तो राम के मर्यादा पुरुषोत्तम व्यक्तित्व की उस विशेषता से प्रभावित हुआ, जो मुझे राजतिलक के समय वनवास मिलने पर भी उनके व्यक्तित्व में भोगवृत्ति विशेष दिखाई न दी, जिसका निर्देश 'ईशावास्य' उपनिषद में भी किया गया है।
कुबेरनाथ राय के निबंधों के इसी सांस्कृतिक पहलू से मैं प्रभावित हुआ और उनके निबंधों में आलोचनात्मक दृष्टिकोण को केन्द्र में रखकर शोधकार्य करने का निश्चय किया। इस हेतु शोध निर्देशक को लेकर मैं उलझा हुआ था, तब मेरा मार्गदर्शन अपने मित्र डॉ. एम.जी. गाँधी ने किया। जिसके माध्यम से डॉ. एच.टी. ठक्कर साहब से मेरी मुलाकात हुई और मैंने उनके समक्ष शोध-कार्य करने का प्रस्ताव रखा। गुरुवर ठक्कर साहब ने मुझसे शोध कार्य का विषय पूछा, मैंने अपनी रुचि निबंध साहित्य पर बताई और उन्होंने मेरे मन की बात जान ली और मुझे कुबेरनाथ राय पर शोध करने का विषय दिया "कुबेरनाथ राय के निबंध साहित्य का आलोचनात्मक अनुशीलन।" यह शोच प्रबंध का मूल शीर्षक है, जिसे अब परिष्कृत रूप में "कुबेरनाथ राय के निबंधों का आलोचनात्मक अनुशीलन" नाम से प्रकाशित कराया है। शोध-प्रबंध का महत्त्व कुबेरनाथ राय के ललित निबंधों का फलक विस्तृत है। राय जी के लोक संस्कृति विषयक निबंध एक ओर जहाँ आर्येत्तर लोक जीवन को स्थापित करते हैं। वहीं संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में उनके अवदान एवं समन्वय को रेखांकित भी करते हैं। कुबेरनाथ राय भारतीय जीवन को संस्कृति की जीवनधारा से जोड़कर देखने वाले रचनाकार है। उनके ललित निबंधों में एक ओर जीवन की अस्मिता को मानवीय मूल्यों के संदर्भ में आँकने का प्रयास है तो दूसरी ओर जीवन की औपचारिक समस्याओं की अपेक्षा जीवन मूल्यों की सहजता का विस्तार है। अपने भारतीय संस्कारों और ठेठ उत्तर भारतीय परिवेश से एक पल भी मुक्त हुए बिना कुबेरनाथ राय ने जिस जीवन दर्शन को अपने निबंधों में प्रस्थापित किया है, उसमें एक अपनत्व भरा सम्मोहन है। अतीत को निचोड़कर मानव मनोराग के स्वरूप में वर्तमान को एक नई पहचान देने वाले सक्षम रचनाकार हैं।
अतः कुबेरनाथ राय के निबंध साहित्य का आलोचनात्मक अनुशीलन के पीछे मेरा ध्येय यह है कि संस्कार शून्य आज का जनसमूह यदि कुबेरनाथ राय के निबंध पढ़ेगा, समझेगा और उस पर मनन करेगा तो मैं निःसंदेह मानता हूँ कि वह सांस्कृतिक मूल्यों को आत्मसात् भी करेगा। यह शोध-प्रबंध आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन करता रहेगा ।
शोध-प्रबंध का उद्देश्य- हिंदी ललित निबंध विधा के सक्षम हस्ताक्षर कुबेरनाथ राय अपने व्यक्तित्व तथा कृतित्व की लालित्यमयी आलोचना से उपेक्षित रहे हैं। हिन्दी साहित्य के खोजी अनुसंधाताओं ने भी इनकी ओर अत्यल्प ध्यान दिया है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, पंडित विद्यानिवास मिश्र की परम्परा को शीर्ष तक पहुँचाने का कार्य राय जी ने किया है। परन्तु उन्हें इन दोनों का सा सम्मान नहीं मिला। जबकि वे इसके पूरे हकदार थे। हिन्दी के ऐसे अल्पज्ञात लेखक एवं हिन्दी की नूतन विधाओं को सहृदय पाठकों, शोधकर्ताओं तथा उच्च कक्षाओं के छात्रों तक रसमयी, सघन, सरल आलोचना प्रणाली के माध्यम से पहुँचाने के उद्देश्य से यह शोध-प्रबंध "कुबेरनाथ राय के निबंधों का आलोचनात्मक अनुशीलन” के रूप में आपके सम्मुख प्रस्तुत है।
दूसरा उद्देश्य कुबेरनाथ राय के बहुआयामी व्यक्तित्व एवं उनकी साहित्यिक सेवा से पाठकों को अवगत कराना है। मैंने कुबेरनाथ राय के ललित एवं व्यक्तिव्यंजक निबंधों को अपने अध्ययन का विषय बनाया है और यथा संभव उनका मूल्यांकन करने का प्रयास किया है।
हिंदी निबंध साहित्य को अपनी अलग पहचान देने वालों में हजारी प्रसाद द्विवेदी और विद्यानिवास मिश्र के बाद कुबेरनाथ राय का नाम ही आता है। राय जी न केवल हजारी प्रसाद द्विवेदी की परम्परा को आगे बढ़ाते है, बल्कि उसे नया आयाम देते हुए उत्कर्ष तक ले जाते है। इस कारण राय जी का ऐतिहासिक महत्त्व भी है।
अपने निबंधों में राय जी ने अपनी अनूठी शैली का जो परिचय दिया है उसका तथा उनके निबंधों में व्यक्त विचारों का जितनी गहराई से मूल्यांकन होना चाहिए था, उतना अभी नहीं हुआ है। अतः हिंदी निबंध साहित्य को गौरवान्वित करने वाले कुबेरनाथ राय के दृष्टिकोण और शैली का समुचित मूल्यांकन करना भी इस शोध-प्रबंध का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है।
सामग्री संकलन के सूत्र- सामग्री का संकलन करना काफी कठिन कार्य है। शोध सामग्री जितनी पूर्ण, प्रामाणिक एवं वैज्ञानिक हो शोध कार्य उतना ही ठोस व स्तरीय बनता है। कुबेरनाथ राय पर अध्ययन करने के साथ ही उनके समग्र साहित्य को प्राप्त करने का प्रश्न उपस्थित हुआ । मैंने विविध प्रकाशनों की सूची मँगवाकर राय जी के निबंध संग्रह मँगवायें । ललित निबंध संबंधी आलोचनात्मक पुस्तकें मुझे एच. एल. पटेल आर्ट्स एण्ड कॉमर्स कॉलेज, भायावदर, म्युनि आर्ट्स एण्ड कॉमर्स कॉलेज उपलेटा, के.ओ. शाह कॉलेज धोराजी, गुजरात विद्यापीठ अहमदाबाद, सौराष्ट्र विश्वविद्यालय पुस्तकालय, राजकोट, जोशीपुरा महिला कॉलेज, जूनागढ़ से प्राप्त हुई ।
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